फेमस म्यूजिक डायरेक्टर जोड़ी नदीम श्रवण के श्रवण राठौड़ का निधन हो गया है. उन्हें तबीयत खराब होने के बाद मुंबई के के एल राहेजा अस्पताल में भर्ती कराया गया था. श्रवण कोरोना वायरस से पीड़ित थे.
कहते हैं जोड़ियां ऊपर वाला बनाता है. हालांकि वो जोड़ी रोमांटिक हो ऐसा जरूरी नहीं है. फिल्मी दुनिया में संगीत की बड़ी एहमियत रही है और संगीत ही वो माध्यम है, जिसने हमें बेहतरीन लेजेंड से रूबरू करवाया है. हिंदी सिनेमा की म्यूजिक इंडस्ट्री ने कंपोजर्स की कई जोड़ियां देखीं, लेकिन नदीम अख्तर सैफ और श्रवण कुमार राठौड़ जैसी कोई नहीं थी. दोनों को नदीम श्रवण के नाम से जाना जाता रहा है.
90s से लेकर 2000s तक नदीम श्रवण, बॉलीवुड के सबसे सफल म्यूजिक डायरेक्टर्स थे. दोनों ने कई बड़ी फिल्मों में गाने दिए और सफलता की ऊंचाईयों को भी छुआ. हालांकि एक समय ऐसा भी आया जब दोनों ने अपने रास्तों को जुदा करने का फैसला किया. क्या है दोनों की कहानी, हम बता रहे हैं.
नदीम और श्रवण की मुलाकात साल 1973 में एक फंक्शन के दौरान हुई थी. दोनों का पहला असाइनमेंट भोजपुरी फिल्म दंगल (1973) थी, जिसमें मन्ना डे का गाय फेमस गाना काशी हिले, पटना हिले दिखाया गया था. दोनों की पहली हिंदी फिल्म मैंने जीना सीख लिया थी. हालांकि करियर के शुरुआती दिनों में नदीम श्रवण को कोई सीरियस नहीं लेता था. दोनों को मुश्किल से ही कोई काम मिल रहा था.
लगभग आधे दशक तक स्ट्रगल करने के बाद, 1980 के अंत तक आते-आते दोनों की किस्मत ने करवट ली और उन्हें बड़े प्रोजेक्ट्स हाथ लगने शुरू हुए. साल 1989 में दोनों ने तीन बड़ी फिल्मों- इलाका, हिसाब खून का और लश्कर को साइन किया था. लेकिन ये फिल्में आगे चलकर बड़ी फ्लॉप साबित हुईं और फिल्मों के म्यूजिक को दर्शकों और आलोचकों ने मिलकर रिजेक्ट कर दिया था. अच्छी बात ये थी कि दोनों के नाम को नोटिस जरूर कर लिया गया था.
दोनों को अच्छे प्रोजेक्ट्स मिलने शुरू हुए तो नदीम श्रवण ने अपने काम को और बेहतर बनाना शुरू किया और हिट म्यूजिक प्रोड्यूस करने लगे. 1990 में आई फिल्म आशिकी दोनों के लिए बड़ी साबित हुई. इसी फिल्म ने नदीम श्रवण की जोड़ी को लाइमलाइट में लाकर खड़ा किया. इस जोड़ी को ये गुलशन कुमार की बदौलत मिली थी. आशिकी की एल्बम की 20 मिलियन यूनिट्स बिके थे, जिसकी वजह से यह बॉलीवुड की ऑल टाइम बेस्ट सेलिंग एल्बम बनी.
इस सफलता को नदीम श्रवण ने फिल्म साजन, दिल है की मानता नहीं, सड़क, सैनिक, दिलवाले, राजा हिंदुस्तानी और फूल और कांटे में भी जारी रखा. नदीम श्रवण हर तरह का म्यूजिक बना सकते थे, चाहे वो रोमांटिक हो, फास्ट ट्रैक, इमोशनल या फिर आइटम नंबर. लेकिन उनकी खासियत मेलोडी थी. उनकी ज्यादातर कम्पोजीशन फिल्मी गजल जॉनर में आती थीं, जो गजलों या क्लासिकल म्यूजिक से प्रेरित होती थीं.
जब फिल्म परदेस की म्यूजिक एल्बम को रिलीज किया गया था, तब देखा गया कि इस एल्बम में कई अलग-अलग तरह के गाने हैं. क्रिटिक्स इसे नदीम श्रवण की सबसे बेस्ट एल्बम बताया था. उन्होंने समीर, आनंद बक्शी, हसरत जयपुरी, रानी मलिक संग कई बढ़िया गीतकारों के साथ काम किया. जब उन्होंने म्यूजिक की दुनिया में कदम रखा, तब वो दौर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और आनंद-मिलिंद का हुआ करता था. हालांकि नदीम श्रवण की मेहनत रंग लाई और वो एक के बाद एक हिट देने में कामयाब रहे.
1997 में गुलशन कुमार के मर्डर के बाद दोनों के करियर को बड़ा झटका लगा था. कुछ समय तक दोनों के पास कोई काम नहीं था. नदीम पर तो गुलशन की मौत का इल्जाम भी लगाया गया था. हालांकि उस समय नदीम देश से बाहर थे. इसके बाद नदीम ने लंदन में लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी थी. इसके बाद उन्होंने ब्रिटिश नागरिकता लेकर लंदन से ही काम करना शुरू किया. वह श्रवण के साथ मिलकर लंदन से ही म्यूजिक बनाते रहे. दोनों का करियर फिल्म धड़कन (2000) के म्यूजिक के साथ दोबारा पटरी पर आया था.
साल 2005 में इस जोड़ी ने अलग होने का फैसला किया था. नदीम ने दुबई में अपनी बैग और परफ्यूम की कंपनी खोली और श्रवण अपने बेटों संजीव और दर्शन के म्यूजिक पर ध्यान देने लगे. एक इंटरव्यू में नदीम ने कहा था कि उनके और श्रवण के बीच कोई लड़ाई नहीं थी. साल 2013 में दोनों ने साथ काम करने का ऐलान किया था. वह फिल्म इश्क फॉरएवर के लिए म्यूजिक देने वाले थे, हालांकि बाद में दोनों के बीच अनबन हो गई और दोनों दोबारा अलग हो गए. इश्क फॉरएवर के लिए नदीम ने अकेले म्यूजिक बनाया, लेकिन वह नहीं चला.