
'का कहीं ए चाची, बाभन घरे ई करिया मुसरी जनमल बिया...' (क्या कहूं चाची, ब्राह्मण के घर ये काली चुहिया पैदा हुई है). अपनी नवजात बच्ची के लिए जब एक मां ये शब्द कह रही है तो उसके चेहरे का दुख एकदम स्पष्ट रूप से नजर आता है. ये सीन कुछ ही दिनों में रिलीज होने के लिए तैयार भोजपुरी फिल्म 'करियट्ठी' के ट्रेलर का है.
इस सीन के बाद ट्रेलर में दिखाया गया है कि चमड़ी के काले रंग की वजह से उस बच्ची को 'करियट्ठी' बुलाया जाने लगता है. जिस लड़की को उसके अपने घर में अपने पिता और सगे संबंधियों से, अपने तन के रंग को लेकर ताने मिलते रहे, एक यंग मास्टर को उससे प्यार होता है. शादी भी हो जाती है, लेकिन तभी कहानी में एक ट्विस्ट आता है और सभी दुख में नजर आते हैं. ट्विस्ट क्या है, ये आपको 31 जनवरी को पता चलेगा जब डायरेक्टर नितिन चंद्रा की फिल्म 'करियट्ठी' भारत सरकार के ओटीटी प्लेटफॉर्म वेव पर रिलीज होगी.

नितिन चंद्रा की पहली फिल्म 'देसवा' माइग्रेशन की समस्या पर बेस्ड थी और इंडिया इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (IFFI) के लिए चुनी गई थी. नितिन ने बिहार में युवाओं के लिए रोजगार की समस्या को अपनी दूसरी फिल्म 'मिथिला मखान' में हाईलाइट किया. मैथिली में बनी उनकी इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड मिला. उनकी तीसरी फिल्म 'जैक्सन हॉल्ट' (मैथिली) थी जिसे खूब सराहा गया. 'करियट्ठी' नितिन की चौथी फिल्म है और इस बार वो भोजपुरी में कहानी कह रहे हैं.
मुश्किल है भोजपुरी में 'अलग' फिल्म बनाना
रंगभेद की बात करती 'करियट्ठी' का ट्रेलर लोगों को इमोशनल कर रहा है. भोजपुरी भाषी जनता सोशल मीडिया पर इस फिल्म की चर्चा कर रही है. एक बड़ी वजह ये है कि बेहद सतही फिल्ममेकिंग वाली, मसाला फिल्मों के लिए पहचाने जाने वाले भोजपुरी सिनेमा में 'करियट्ठी' एक बोल्ड प्रयोग भी है.
ट्रेलर से फिल्म अच्छी नजर आ रही है और इसे नेशनल अवॉर्ड विनिंग फिल्म बना चुके डायरेक्टर ने डायरेक्ट किया है. ऐसे में क्या इसे थिएटर्स में नहीं रिलीज होना चाहिए था? इस सवाल का जवाब देते हुए नितिन ने पूर्वांचल, बिहार और झारखंड में थिएटर्स के हाल की तरफ इशारा किया.
उन्होंने बताया, 'थिएटर हैं ही नहीं. पटना छोड़ के बिहार के किसी जिले में दो से ज्यादा सिनेमाघर नहीं हैं. झारखंड में भी कुछ बड़े शहर छोड़ दीजिए तो सिनेमाघर नहीं हैं. इसी तरह पूर्वी उत्तरप्रदेश में भी गोरखपुर को छोड़कर बाकी जगहों पर ऐसा ही हाल है, बहुत सिनेमाघर हैं नहीं, बंद होते जा रहे हैं. बिहार के सिनेमाघरों में सबसे पहले साउथ की हिंदी डब फिल्में चल रही हैं, फिर हॉलीवुड की हिंदी डब फिल्में, इसके बाद बॉलीवुड की बड़ी हिंदी फिल्में, जिसमें री-रिलीज भी शामिल हैं और फिर भोजपुरी के बड़े और पुराने प्रोड्यूसर्स की फिल्में हैं. हम लोग तो बहुत बाद में हैं.'
नितिन ने आगे कहा कि वो भोजपुरी में बहुत अच्छा कंटेंट बनाना चाहते हैं. लेकिन बहुत बार ये संभव भी नहीं हो पाता क्योंकि इन्वेस्टर ही नहीं मिलते. 5-6 लोगों को जोड़कर इन्वेस्टमेंट जुटानी पड़ती है. उनकी लेटेस्ट फिल्म 'करियट्ठी' का बजट सिर्फ 90 लाख रुपये है. नितिन ने बताया, 'कभी-कभी तो मैंने 25 लोगों से धनराशी इकठ्ठा करके फिल्म बनाई है'. नितिन ने अपनी बहन, जानीमानी बॉलीवुड एक्ट्रेस नीतू चंद्रा का शुक्रिया अदा किया जिन्होंने 2010 में अपना प्रोडक्शन हाउस, चंपारण टॉकीज शुरू किया था. 'करियट्ठी' भी इसी प्रोडक्शन हाउस की फिल्म है.
कैसे मिली 'करियट्ठी' की कहानी?
नितिन ने बताया कि उन्होंने 2018 में सरोज सिंह का लिखा भोजपुरी कहानी संग्रह 'तेतरी' पढ़ा. इसमें आखिरी कहानी थी 'करियट्ठी', जो लंबे समय तक नितिन के दिमाग में रही. उन्होंने तय किया कि इसे वो एक फिल्म की शक्ल देंगे और इसका स्क्रीनप्ले लिखा.
रंग के आधार पर लोगों के साथ होने वाले भेदभाव के बारे में बात करते हुए नितिन ने कहा, 'मैंने अपने घरों में देखा है, मोहल्लों में देखा है, स्कूल-कॉलेज में देखा है. मैं फिल्म लाइन में हूं, मोस्टली मुम्बई में रहता हूं. जो कास्टिंग वाले हैं, डायरेक्टर्स हैं-प्रोड्यूसर्स हैं वो इस तरह बोलते हैं कि 'इसे मत ले बहुत काला है या ये बहुत काली है'. आप मेट्रिमोनियल के पेज देखिए, सबको गोरी लड़की चाहिए, गोरा लड़का चाहिए.'

'ये सब मैं रोजाना देखता हूं और ये भेदभाव लड़कों के साथ भी होता है. लड़का अगर काला है तो उसकी शादी नहीं हो रही. ऑफिस में लोग उसके नाम रख देते हैं 'कलुआ-कलुए'. मजाक जब बार-बार हो तो वो अब्यूज बन जाता है, स्टीरियोटाइप हो जाता है. जैसे 'बिहारी' शब्द या उत्तरप्रदेश वालों के लिए मुंबई में इस्तेमाल होने वाला 'भैया'. पचास लोग जब आपका नाम भूलकर आपको 'ओए बिहारी' बोलने लगते हैं, तो वो एक 'क्रूर मजाक' बन जाता है. ये धीरे-धीरे आपको कचोटने लगता है.'
फिल्म को लोगों तक पहुंचाना है चैलेंज
जब नितिन से पूछा गया कि उन्हें अपनी दर्शकों से अपनी फिल्म के लिए कैसा रिस्पॉन्स मिलने की उम्मीद है? तो उन्होंने कहा, 'लोग देखें तो पहले. सबसे पहला चैलेंज यही है. भोजपुरी में फिल्म है तो 99% लोग पहले ही उसको ऐसे ट्रीट करते हैं कि 'अरे यार भोजपुरी में फिल्म है...'
उन्होंने आगे कहा, 'भोजपुरी को सबसे ज्यादा इग्नोर भोजपुरी भाषी लोगों ने ही किया है. उनकी भी गलती है नहीं. आज जो 40 साल के आसपास के लोग हैं वो बचपन से ही ऐसे माइंडसेट में रहे, अब जब सेनिसिटाईज हो रहे हैं, समझ आ रही है तो उन्हें नॉस्टैल्जिया हो रहा है. उन्हें अब अपनी चीजें याद आती हैं. 'करियट्ठी' का का सब्जेक्ट मैटर बहुत सेंसिटिव है. ये फिल्म लोगों तक पहुंचेगी, देखेंगे-समझेंगे... तो उन्हें ये बहुत अंदर तक छुएगी भी. हमने दिल से पूरी फिल्म बनाई है, दिमाग को साइड में रखकर.' यहां देखिए 'करियट्ठी' का ट्रेलर:
बिहार से ही है फिल्म की अधिकतर कास्ट और क्रू
'करियट्ठी' में अन्नू प्रिया, दीपक सिंह, सुषमा सिन्हा और संजय सिंह जैसे कलाकार मुख्य भूमिकाओं में हैं. फिल्म से, जानीमानी सिंगर मेघा डाल्टन का गाया बिदाई गीत बहुत पॉपुलर हो रहा है. चंदन तिवारी और ऋचा वर्मा जैसी जानीमानी आवाजों ने 'करियट्ठी' के गीतों को आवाज दी है. फिल्म में म्यूजिक प्रभाकर पांडे और आदित्य रंजन का है.
फिल्म के डायरेक्टर नितिन चंद्रा ने बताया कि वो अपनी सभी फिल्मों में बिहार में बेस्ड कास्ट और क्रू के साथ ही काम करते आए हैं. 'हमारी ये भी एक कोशिश है कि जितना काम करें वो बिहार में ही करें. कारण ये भी है कि मेरी फिल्मों से रोजगार हो लोकल एक्टर्स के लिए. कोशिश रहती है कि बाहर से या मुंबई से ना लाना पड़े किसी को क्योंकि वहां तो रोजगार है ही. हम चाहते हैं कि अपने यहां के जो लोग हैं पूर्वांचल, बिहार या झारखंड के, उन्हें काम मिले.'