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"उड़ता" नैनीताल! उत्तराखंड के युवाओं को तबाह कर रहा‌ नशा

उत्तराखंड में पिछले कुछ सालों में चरस की खेप जिले जिले गांव गांव पहुंचने लगी है. पिथौरागढ़ चंपावत बागेश्वर और अल्मोड़ा में चरस का कारोबार अपने पैर पसार रहा है तो वहीं अल्मोड़ा और पकौड़ी जैसे इलाकों में गांजे के तस्कर युवाओं को अपना शिकार बना रहे हैं. 

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उत्तराखंड के युवाओं को तबाह कर रहा‌ नशा
उत्तराखंड के युवाओं को तबाह कर रहा‌ नशा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • उत्तराखंड के युवाओं को तबाह कर रहा‌ नशा
  • जनता का सबसे बड़ा मुद्दा, नेताओं की चुप्पी

नशे के काले कारोबार और नशे की दुनिया में डूब रही जवानी के लिए अब तक पंजाब ही बदनाम था लेकिन किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि जिस राज्य को देव भूमि कहा जाता है, जहां गंगा यमुना की उत्पत्ति होती है, जहां से अध्यात्म और शास्त्र ज्ञान की गंगा बहाते हैं, अब वही उत्तराखंड नशे का शिकार हो रहा है. राज्य के कई जिले नशे की गिरफ्त में है और इन जिलों में राज्य की अगली पीढ़ी बर्बाद हो रही है. इन सब में सबसे ज्यादा प्रभावित है जिला नैनीताल. 

नशे की चपेट में पहाड़ी राज्य

अपनी खूबसूरत झील, घने जंगल और ऊंचे बर्फीले पहाड़ों के लिए नैनीताल पूरे उत्तराखंड में मशहूर है. देशभर से सैलानियों की पहली पसंद है नैनीताल. 12 महीने यहां पर्यटकों की भीड़ रहती है. पर्यटन के चलते नैनीताल की रोजी रोटी चलती है लेकिन रोजी रोटी से हटकर भी उत्तराखंड के इस जिले के सामने आज की तारीख में एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है जो इस कदर गंभीर और संगीन है जिससे सिर्फ नैनीताल ही नहीं बल्कि इस पूरे पहाड़ी राज्य का भविष्य खतरे और अंधकार में दिखाई देता है. उत्तराखंड के इस मशहूर जिले को नशा अपनी चपेट में ले रहा है.‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌. जिले के तराई इलाके में हालात ज्यादा गंभीर हैं. 

दरअसल उत्तराखंड में पिछले कुछ सालों में चरस की खेप जिले जिले गांव गांव पहुंचने लगी है. पिथौरागढ़ चंपावत बागेश्वर और अल्मोड़ा में चरस का कारोबार अपने पैर पसार रहा है तो वहीं अल्मोड़ा और पकौड़ी जैसे इलाकों में गांजे के तस्कर युवाओं को अपना शिकार बना रहे हैं. 

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नैनीताल के रामनगर काठगोदाम हल्द्वानी जैसे इलाकों में भी चरस और स्मैक बच्चों और युवाओं को तबाह कर रहा है. शहर की गलियों में, ‌ सुनसान कोनों में नैनीताल के युवा चरस की कश‌ और हाथों में सुईया चुभा कर अंधकार को गले लगा रहे हैं. ‌ काठगोदाम की कई गलियों में ऐसी तस्वीरें आम हैं. 
  
यहां के स्थानीय नागरिक ओम ठाकुर बताते हैं कि कई बार उन्होंने बच्चों को नशा करते पकड़ा है और इलाके का शायद ही कोई ऐसा कोना है जहां युवा नशा करते नहीं दिखाई देते हैं, बहुत आसानी से ड्रग्स बच्चों को मुहैया हो रही है. ओम ठाकुर बताते हैं यहां रहने वाले लोगों के लिए नशा सबसे बड़ा मुद्दा है, क्योंकि अगर यह मामले बढ़ते रहे तो कल को महिलाओं की सुरक्षा भी संकट में होगी. ‌

वहीं काठगोदाम के सरकारी स्कूल के प्रधानाध्यापक फातिमा बताती हैं कि पिछले कुछ सालों में नशा बहुत तेजी से फैला है और अक्सर उनके स्कूल में लड़के नशा करने आते हैं और नशे की गिरफ्त में आ कर या तो दीवारों पर अपशब्द लिखते हैं या तोड़फोड़ कर देते हैं जिसके खिलाफ उन्होंने मुकदमा भी लिखवाया है. प्रशासन को जानकारी भी दी है और अपने विभाग से भी शिकायत की है. 

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राज्य में कैसे सक्रिय ड्रग्स रैकेट?

ड्रग से जूझ रहे उत्तराखंड में नशे के खिलाफ आवाज उठा रहे सामाजिक कार्यकर्ता नीरज जोशी बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में यह नशा फैलने लगा है जिसमें चरस और दूसरे सिंथेटिक ड्रग्स बड़ी आसानी से बच्चों तक पहुंच रहे हैं. नीरज जोशी कहते हैं कि राज्य में नशा मुक्ति केंद्रों की संख्या बेहद कम है और नशे के खिलाफ जैसा अभियान छेड़ा जाना चाहिए, कार्रवाई उस अनुपात में नहीं हो रही है. नीरज कहते हैं कि स्मैक की खपत बढ़ रही है जिसमें पेडलर्स पहले बच्चों को नशे की लत देते हैं और बाद में अच्छे घर के भी बच्चों को भी नशे के कारोबार से जोड़ देते हैं. ऐसे में मुसीबत तब होती है जब नशे से पीड़ित भी वही बच्चा होता है जो बाद में पेडलर या तस्कर बन जाता है. 

काठगोदाम के बाद अब आपको हल्द्वानी लिए चलते हैं. यहां कई इलाके ऐसे हैं जो नशाखोरी और तस्करों का अड्डा है. हाल फिलहाल में नशे की लत से उभरे एक युवा ने हमें हल्द्वानी शहर के बीचो-बीच प्रमुख बाजार के पास एक सुनसान इलाके में वह जगह दिखाएं जहां धुएं में युवा उड़ रहे हैं. जर्जर इमारत के अंधेरे में दवाई की खाली शीशियां, इंजेक्शन और स्मैक पेपर के टुकड़े जहां-तहां पड़े दिखाई पड़ते हैं. 

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हल्द्वानी में शहर के बाहरी इलाकों में अगर आप जाएं तो तस्वीर और भयावह दिखाई पड़ती है. ‌ राजमार्ग के किनारे झाड़ियों के बीच बड़ी संख्या में सिरिंज इंजेक्शन खाली बोतलें सब कुछ जहां-तहां बिखरी दिखाई पड़ती हैं. इससे पता चलता है कि नैनीताल में नशा किस कदर अपने पैर पसार रहा है. 

नाम न बताने की शर्त पर इसी जगह पर हमारी मुलाकात कुछ युवाओं से हुई जिन्होंने बताया कि वह चरस का नशा करते हैं जो 200 से ₹500 में खुलेआम तस्करों से मुहैया होता है. पहचान छुपाने की शर्त पर इन युवाओं ने कहा कि पुलिस कई बार उन्हें ही पकड़ ले जाती है और तस्करों को छोड़ देती है. इन युवाओं ने हमें बताया कि कैसे सुनसान इलाकों में सैकड़ों युवा सूइयां चुभोकर नशे के आगोश में जहां-तहां झाड़ियों में पड़े रहते हैं. 

कार्रवाई हो रही, जमीन पर असर कम

ऐसा भी नहीं है कि इस नशे के मकड़जाल की जानकारी प्रशासन को नहीं है. नैनीताल पुलिस द्वारा हासिल जानकारी के मुताबिक अकेले दिसंबर महीने में एनडीपीएस एक्ट के तहत 24 मामले दर्ज हुए हैं. नैनीताल के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस पंकज भट्ट बताते हैं कि ‌‌‌‌‌नशा नैनीताल के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है जिसके लिए पुलिस की ओर से लगातार कार्रवाई भी हो रही है साथ ही जन जागरूकता अभियान भी चल रहा है, उसके साथ ही तस्करों के खिलाफ गुंडा एक्ट के तहत भी कार्रवाई की जा रही है. पंकज भट्ट कहते हैं कि पुलिस इन स्रोतों के खिलाफ क्रैकडाउन तो कर रही है लेकिन नशे के स्रोत बाहर के हैं. 

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आपको हल्द्वानी के नशा मुक्ति करण केंद्र भी लिए चलते हैं. कई बच्चे अंधेरे से निकलकर उजाले की ओर कदम बढ़ाना चाहते हैं जिनके लिए ऐसे नशा मुक्ति केंद्र संजीवनी हैं. गायत्री मंत्र से लेकर योगाभ्यास तक, अपनी दिनचर्या में बच्चे नशे से निकलने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं. 

कई मां बाप अपने बच्चों को लेकर ऐसे नशा मुक्ति केंद्रों की ओर आ रहे हैं ताकि वह अपने बच्चों का भविष्य नशे से बचा सकें. कुछ युवा ऐसे केंद्रों पर इलाज करवा कर ठीक हो चुके हैं और अब वह खुद यहां वॉलिंटियर बन गए हैं ताकि दूसरे बच्चों की मदद कर सकें. हर्षित उन युवाओं में से एक हैं जिन्होंने नशे से निजात पाई है और पिछले ढाई साल से वह नशा निवारण केंद्र से जुड़ गए. हर्षित बताते हैं कि पहले उन्होंने इंजेक्शन लेना शुरू किया. फिर धीरे-धीरे लत बढ़ती गई तो जरूरत पूरा करने के लिए घर से पैसों की चोरी करने लगे. हर्षित बताते हैं कि घर में वह हिंसक हो गए, लड़ाई झगड़े करने लगे और तोड़फोड़ भी.  हर्षित को अपने उस अंधकार भरे जीवन से पश्चाताप है और अब वह नई रोशनी की ओर आगे बढ़ना चाहते हैं. 

बिखरी जिंदगी को समेटना युवाओं की चुनौती

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नैनीताल के रहने वाले रोहित की कहानी भी कुछ ऐसी है जो कहते हैं जिज्ञासा के तहत उन्हें नशा पहली बार हल्द्वानी में मिला. रोहित ने कहा कि जब धीरे-धीरे नशे की चपेट में आया तब जरूरतें पूरा करने के लिए आर्थिक स्थिति सही होने के बावजूद भी अपने मां के सोने के गहने और घर के सामान बेचने के साथ-साथ अपना फोन भी गिरवी रखना पड़ा. रोहित कहते हैं कि नशे के कारण मैंने बहुत कुछ सहा है लेकिन अब अपनी बिखरी जिंदगी को समेटना चाहता हूं.

नैनीताल के रहने वाले संतोष कहते हैं कि मेरे घर के पास ही पेडलर्स ड्रग बेचते थे और उसी संगत में मैंने पहली बार ड्रग्स शुरू की जिसके बाद अब मैं नशे की चपेट में आ गया. ‌ संतोष कहते हैं कि जब नशे की लत लगी तो घर में लड़ाई झगड़ा करना आम बात हो गई. पैसों के लिए चोरी तक करनी पड़ी. संतोष को सबसे बड़ा दुख इस बात का है कि उन्होंने अपने घर वालों का भरोसा खो दिया है और अब जब वह रिकवर हो रहे हैं, घर वालों का भरोसा जीतने की पूरी कोशिश करेंगे और समाज के मुख्यधारा में दूसरे सामान्य लोगों की तरह ही जिएंगे.

नशे का एक काला साया पिछले कुछ सालों में ही उत्तराखंड के ऊपर मंडरा रहा है लेकिन हालात बद से बदतर हो रहे हैं ऊपर से सरकार और राजनीति है कि इसकी सुध ही नहीं लेती, इसे मुद्दा ही नहीं समझती. सियासत से चलने वाले इस देश के पहाड़ी राज्य में बर्बाद हो रही युवा पीढ़ी के सामने खड़ी सबसे बड़ी चुनौती को ही सियासत बड़ा मुद्दा नहीं मान रही लेकिन जनता के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है. फिलहाल यही सबसे बड़ा मुद्दा है क्योंकि बात उनके अपने बच्चों की है उनके भविष्य की है. 

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