राजा बाज बहादुर के नाम जानी जाने वाली उधम सिंह नगर जिले की बाजपुर विधानसभा सीट नैनीताल और काशीपुर के बीच स्थित है. राम मंदिर आंदोलन हो या फिर मोदी लहर, यहां हर सियासी घटना का असर देखने को मिलता है. बाजपुर, उत्तराखंड की उन चुनिंदा विधानसभा सीटों में है जो सूबे में राजनीति का गढ़ कही जाती है. बीजेपी के यशपाल आर्य लगातार दूसरी बार यहां से विधायक हैं. नैनीताल से 60 किलोमीटर की दूरी पर बसी यह विधानसभा एक समय सफाखाने के नाम से जानी जाती थी. यहां का सफाखाना (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) और अंग्रेजों द्वारा बनाया गया डाक बंगला आज भी पुराने शहर की याद दिलाते हैं.
बाजपुर का नाम राजा बाज बहादुर के नाम पर पड़ा था. राजा बाज बहादुर यहां शिकार करने आया करते थे. बाजपुर में शहीद-ए-आजम भगत सिंह का परिवार भी रहता है. बाजपुर विधानसभा सीट राजधानी देहरादून से 185 किलोमीटर, जबकि उधमसिंह नगर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां पर पंजाबी और हिंदी भाषा बोली जाती है. बाजपुर विधानसभा क्षेत्र में बुक्सा और पंजाबी जाति का दबदबा है.
बाजपुर विधानसभा की राजनीतिक पृष्ठभूमि
बाजपुर विधानसभा क्षेत्र उत्तराखंड के 70 विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. बाजपुर विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है. उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद 2002 के विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन आदेश से ये सीट अस्तित्व में आई. 2017 में इस क्षेत्र में कुल 1,36,192 मतदाता थे. यहां के मौजूदा विधायक यशपाल आर्य हैं जो कि सूबे के कैबिनेट मंत्री हैं. बाजपुर विधानसभा में अब तक 4 बार चुनाव हो चुके हैं.
बाजपुर का इलाका पहले काशीपुर विधानसभा सीट के अंतर्गत था, लेकिन फरवरी वर्ष 2002 में परिसीमन के बाद काशीपुर विधानसभा से हटाकर बाजपुर विधानसभा कर दिया गया. पहली बार बाजपुर विधानसभा के विधायक चुने गए थे अरविंद पांडे जो कि मौजूदा शिक्षा मंत्री हैं. दूसरी बार भी अरविंद पांडे विधायक चुने गए.
2012 में बाजपुर विधानसभा पर कांग्रेस का कब्जा रहा और यशपाल आर्य विधायक हुए. वे कांग्रेस शासन काल में कैबिनेट मंत्री बने. 2017 में ये सीट बीजेपी ने कब्जा ली लेकिन विधायक यशपाल आर्य ही रहे क्योंकि वे कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी में आ गए. आर्य इस शासन सरकार में भी कैबिनेट मंत्री हैं.
इससे पहले ये बाजपुर, काशीपुर और जसपुर तहसीलें एक ही विधानसभा में थीं. बाद में जसपुर, काशीपुर और बाजपुर अलग अलग विधानसभा सीटें बन गईं. 1952 से 1969 तक ऊंचाहार के लोगों ने सलोन विधानसभा सीट के लिए वोट किया. इस दौरान सलोन में सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस के बीच मुकाबला होता रहा है. 1971 के परिसीमन के बाद ऊंचाहार का इलाका सलोन सीट से काटकर डलमऊ विधानसभा सीट में शामिल कर दिया गया.
2002 में बाजपुर सीट पर बीजेपी का कब्जा
हालांकि, 2002 में बाजपुर सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा. उस समय कांग्रेस के दिग्गज कहलाए जाने वाले महेंद्र जीत सिंह राणा को हार का मुंह देखना पड़ा था. उसके बाद 2007 में भी बीजेपी ने इस सीट से जीत हासिल की और बहुचर्चित नेता पंडित जनक राज शर्मा की पत्नी को हार का मुंह देखना पड़ा. इन दोनों चुनावों में अरविंद पांडे ने जीत हासिल की थी.
बाजपुर सीट की वजह से ही सूबे में बीजेपी की सरकार काबिज हुई थी और भुवन चंद्र खंडूरी मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए थे. सरकार बनाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस को मात्र एक सीट की जरूरत थी और बाजपुर सीट जीत कर बीजेपी ने सरकार बनाई थी. अरविंद पांडे की जीत के दम पर ही भुवन चंद्र खंडूरी मुख्यमंत्री बने थे.
विधानसभा चुनाव 2012 में बाजपुर सीट आरक्षित हो गई थी, जिससे अरविंद पांडे को अपनी सीट बदलनी पड़ी. कांग्रेस की ओर से सूबे में दलित समुदाय का बड़ा चेहरा माने जाने वाले यशपाल आर्य और बीजेपी से राजेश कुमार मैदान में उतरे. कांग्रेस से यशपाल आर्य ने जीत हासिल की और कैबिनेट मंत्री बने. हालांकि, 2017 के चुनाव में यशपाल आर्य कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए और बाजपुर विधानसभा सीट बीजेपी के कब्जे में आ गई. इस जीत ने यशपाल आर्य को एक बार फिर कैबिनेट मंत्री बनाया. बीजेपी सरकार में उन्हें परिवहन मंत्री बनाा गया है.
कांग्रेस से बीजेपी में आए यशपाल आर्य कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष से लेकर अहम पदों पर काबिज रहे और जब जब चुनाव लड़े तब तब उन्होंने चुनाव जीता. लेकिन इसी बीच सियासत में नया मोड़ आया और यशपाल आर्य ने बीजेपी का दामन थाम लिया.
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद फरवरी 2002 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए थे. जिसमें बाजपुर भले ही बीजेपी ने जीती थी, लेकिन सरकार कांग्रेस की बनी थी. इसके बाद 2007 में भी ये सीट बीजेपी ने जीती लेकिन 2012 में सीट आरक्षित होने की बजह से कांग्रेस ने बाजी मार ली. यशपाल आर्य विधायक बने और हरीश रावत सरकार में कैबिनेट मंत्री हुए.
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2017 के आंकड़ों के अनुसार, बाजपुर क्षेत्र में कुल 1,36,192 मतदाता हैं, जिनमें 53.15 फीसदी पुरुष और 46.84 फीसदी महिलाएं हैं. जातीय समीकरण के लिहाज से देंखे तो सबसे ज्यादा आबादी सिख मतदाताओं की है. इसके बाद बुक्सा जनजाति समुदाय के लोग हैं. यहां करीब 25 प्रतिशत एससी, 9 प्रतिशत बुक्सा, करीब 10 प्रतिशत सिख, 8 प्रतिशत ब्राह्मण, 2 प्रतिशत राजपूत, 22 प्रतिशत मुस्लिम, करीब 8 प्रतिशत ओबीसी, 5 प्रतिशत पंजाबी, 5 प्रतिशत ठाकुर, 6 प्रतिशत बनिया और 3 प्रतिशत अन्य जातियों के वोट हैं.
2017 का जनादेश
2017 के विधानसभा चुनाव में बाजपुर सीट पर कुल 5 प्रत्याशी मैदान में थे, लेकिन मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच रहा. 76.67 फीसदी मतदान हुआ था. 2017 के चुनाव में जब यशपाल आर्य ने कांग्रेस छोड़ दी और बीजेपी के टिकट पर खड़े हुए तो उनका मुकाबला कांग्रेस की सुनीता टम्टा से हुआ. यशपाल आर्य को 54965, जबकि सुनीता टम्टा को 42329 वोट मिले. यशपाल आर्य 12636 वोट से जीत गए.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
यशपाल आर्य मौजूदा उत्तराखंड सरकार में परिवहन, समाज कल्याण और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हैं. उनका जन्म 08 जनवरी, 1952 को नैनीताल के रामगढ़ में हुआ था. उन्होंने ग्रेजुएशन तक की शिक्षा हासिल की है. वे 1978 में हल्द्वानी के एक महाविद्यालय में चीफ चीफ प्रॉक्टर रहे. 1984 में हल्द्वानी के ग्राम छडायल सुयाल के ग्राम प्रधान रहे. इसके बाद 1984 से 1989 तक वे नैनीताल जिला युवक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. 1989 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए. 1993 से 1996 तक दूसरी बार उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए.
1996 से 2000 तक जिला कांग्रेस कमेटी, उधमसिंह नगर के अध्यक्ष रहे. 2002 के चुनाव में उत्तराखंड विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए और राज्य की प्रथम निर्वाचित विधानसभा के अध्यक्ष बने. अक्टूबर 2007 में उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चुने गए. अक्टूबर, 2010 में फिर से प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने. विधानसभा चुनाव 2012 में बाजपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने और राजस्व, आपदा, सिंचाई, ग्रामीण अभियंत्रण, जलागम एवं सहकारिता मंत्रालय का प्रभार संभाला.
2017 में पुनः बाजपुर से विधायक निर्वाचित हुए. मार्च, 2017 से अब तक उत्तराखंड सरकार में परिवहन, समाज कल्याण एवं अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हैं.
यशपाल आर्य अलग अलग सम्मेलनों और विभिन्न कार्यों के लिए नामिबिया, नीदरलैंड, अमेरिका, श्रीलंका, बांग्लादेश, न्यूजीलैंड, मलेशिया, फिजी, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर और चीन की यात्रा कर चुके हैं.
राजनीतिक तौर पर काफी सक्रिय यशपाल की अपने क्षेत्र में अच्छी खासी पकड़ है. यहां जातीय समीकरण भी उनके पक्ष में है. मंत्री रहते हुए यशपाल आर्य ने क्षेत्र में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम किया. एक नर्सिंग कॉलेज, एक आईआईटी कॉलेज और दो पॉलिटेक्निक कॉलेज बनवाए. क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछाया. युवाओं के लिए एक स्टेडियम सहित क्षेत्र के विकास में अधिक से अधिक काम किए.
विविध
यशपाल आर्य ने छात्र जीवन से ही राजनीति में कदम रखा और कांग्रेस पार्टी के साथ रहे. लेकिन 2017 में सूबे के सबसे बड़ा घोटाला सामने आया जो उधम सिंह नगर में ही हुआ था. आरोप था कि एनएच 74 भूमि मुआवजा घोटाला लगभग 500 करोड़ रुपये का हुआ था. उस वक्त यशपाल आर्य, हरीश रावत सरकार में राजस्व मंत्री थे. ये भी आरोप के घेरे में रहे. इस मामले में अधिकारियों पर गाज गिरी जिसमें दर्जनों अधिकारी और कर्मचारी जेल गए.
एनएच 74 मामले में खुद को घिरता देख यशपाल आर्य ने अपना पाला बदला और कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया. बीजेपी ने उन्हें 2017 में बाजपुर विधानसभा का प्रत्याशी घोषित कर दिया और वे चुनाव जीतकर मौजूदा सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं.