उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के बीच सीधी टक्कर है. मुख्यमंत्री हरीश रावत के समक्ष अपनी सत्ता को बचाने की, तो भाजपा के सामने दोबारा से सत्ता में काबिज होने की बड़ी चुनौती है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या पीएम मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के प्लान को हरीश रावत फेल कर पाएंगे?
अगर इस चुनाव में भाजपा को बहुमत मिलता है, तो निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए बड़ा झटका होगा. ये चुनाव हरीश रावत के राजनीतिक भविष्य भी तय करने वाले साबित होंगे. अगर इससे पहले के घटनाक्रम में नजर दौड़ाएं, तो कांग्रेस में बगावत को लेकर हरीश रावत पर सवाल उठ चुके हैं.
2014 में उत्तराखंड के सातवें मुख्यमंत्री बनने से पहले कांग्रेस नेता हरीश रावत का राजनीतिक सफर बेहद दिलचस्प रहा. अल्मोड़ा के चौनलिया के राजपूताना परिवार में 27 अप्रैल 1948 को जन्मे हरीश रावत ने अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत ब्लाक प्रमुख और ग्राम प्रधान के रूप में की. 1980 में यूथ कांग्रेस जिला अध्यक्ष चुने गए.
लखनऊ विश्वविद्यालय से बीए और एलएलबी की पढ़ाई करने वाले रावत पहली बार 1980 में कांग्रेस की टिकट से अल्मोड़ा-पिथौड़ागढ़ लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए. उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी को शिकस्त दी थी.
वह चार बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा के लिए चुने गए. 2014 में उत्तराखंड के सातवें मुख्यमंत्री चुने जाने से पहले 2009 से 2011 तक वह केंद्रीय श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री भी रहे. इसके अलावा 2011-2012 में संसदीय, कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण मामलों के राज्यमंत्री और 2012 से 2014 तक जल संसाधन मंत्री रहे. साथ ही रावत कई संसदीय समितियों के सदस्य रह चुके हैं.
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