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समाजवादी कुनबे में कलह के बाद मुसलमानों में असमंजस, रुझान को लेकर बंटे धर्मगुरु

मुसलमानों की हितैषी होने का दावा करने वाली समाजवादी पार्टी के मुखिया के घर में मचे सियासी घमासान ने उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है. समाजवादी पार्टी दावा कर रही है पार्टी में सब ठीक है. मुसलमानों में भ्रम के कोई हालात नहीं हैं और मुसलमान उतनी ही मजबूती से समाजवादी पार्टी के साथ खड़ा है जितना पहले खड़ा था.

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समाजवादी पार्टी की कलह पर बंटे मुसलमान
समाजवादी पार्टी की कलह पर बंटे मुसलमान

मुसलमानों की हितैषी होने का दावा करने वाली समाजवादी पार्टी के मुखिया के घर में मचे सियासी घमासान ने उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है. समाजवादी पार्टी दावा कर रही है पार्टी में सब ठीक है. मुसलमानों में भ्रम के कोई हालात नहीं हैं और मुसलमान उतनी ही मजबूती से समाजवादी पार्टी के साथ खड़ा है जितना पहले खड़ा था. लेकिन समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े मुस्लिम चेहरे आजम खान की चिठ्ठी ने मुसलमानों के बीच इस असमंजस को और बढ़ा दिया है. सिर्फ सियासतदां ही नहीं बल्कि मुस्लिम धर्मगुरु भी इस मुद्दे पर बंटे हुए है.

समाजवादी पार्टी की पहली चिंता अपने कुनबे को बचाने की है तो दूसरी और सबसे अहम चिंता अपने कोर वोटबैंक को भी छिटकने से बचाने की है. लखनऊ के पार्टी दफ्तर में पारिवारिक कलह के बाद अब राजनीतिक चहल-पहल दिखने लगी है. समाजवादी पार्टी दफ्तर में इन दिनों मुसलमानों को लेकर लगातार बैठकें हो रही हैं. पार्टी का अल्पसंख्यक मोर्चा लगातार कोई न कोई कार्यक्रम कर रहा है. गुरुवार को पार्टी दफ्तर में अलपसंख्यक मोर्चे का एक कार्यक्रम था जिसमें पार्टी के लोग तो आए लेकिन दफ्तर की कुर्सियां तक नहीं भरी थी, लेकिन इस कार्यक्रम में भी मुस्लिम वोटों को लेकर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी. अल्पसंख्यक मोर्चे के शिवपाल गुट के नए अध्यक्ष ने कहा कि मुसलमान किसी सूरत में पार्टी को नहीं छोड़ेगा लेकिन उनके पास इसे कहने का कोई मजबूत तर्क नहीं है.

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उधर आजम खान ने पीलीभीत में कहा कि वो इस मामले पर कुछ नहीं बोलेंगे और उन्हें जो लिखना और कहना था कह दिया. समाजवादी भले ही दावा करे कि पार्टी में मुसलमानों को लेकर सब ठीक-ठाक है. उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के अगर बड़े उलेमाओं और धर्म गुरुओं की भी माने तो कुनबे की इस कलह ने समाजवादी पार्टी का बड़ा नुकसान किया है. कुछ उलेमा अब भी अखिलेश के पीछे मुसलमानों के खड़े होने की बात करते हैं तो कुछ का मानना है कि मुसलमान वेट और वॉच की स्थिति में है और वक्त आने पर फैसला लेंगे.

शिया समुदाय के नेता मौलाना युसुफ अब्बास कहते हैं मुसलमान वेट एन्ड वॉच की हालत में है और सियासत पर अपनी पैनी नजर बनाए हुए हैं, पहली नजर में आज भी शियाओं के लिए अखिलेश ही पहली पसंद हैं लेकिन मुसलमान इस डर में नहीं जी रहा कि अगर बीजेपी आई तो क्या होगा या फिर शिया बीजेपी को रोकने जैसी किसी भावना के साथ अपने सियासी फैसले नहीं लेगा. वहीं मौलाना कल्बे जव्वाद की राय इनसे बिल्कुल मुख्तलिफ है ये शिया नेता कहते हैं कि मुसलमान समाजवादी पार्टी से अलग हो चुका है और वो वक्त आने पर तय करेगा कि किसे वोट देना है.

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लेकिन सुन्नी मुसलमानों की राय सियासी तौर पर सबसे ज्यादा मायने रखती है क्योंकि इनकी तादात सबसे ज्यादा है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की शाइस्ता अंबर कहती हैं कि मुसलमानों में एक असमंजस की स्थिति जरूर है और अगर हालात नहीं सुधरे तो मुसलमान बीएसपी या कांग्रेस की ओर भी रुख कर सकता है. देवबंद जो मुसलमानों के सामाजिक, निजी और सियासी फैसलों का सबसे बड़ा केन्द्र है वहां भी मुसलमान फिलहाल वेट एन्ड वॉच की स्थिति में हैं, कई मौलानाओं की माने तो वहां भी मुसलमानों की राय अलग है पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फनगर दंगे, दादरी सरीखी घटनाओं ने मुसलमानों को समाजवादी पार्टी के खिलाफ सोचने को मजबूर किया है और मुसलमान बीएसपी की ओर देख रहा है लेकिन फिलहाल ये समुदाय इंतजार कर रहा है.

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