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Tarabganj Assembly Seat: बीजेपी का गढ़ रहा है तरबगंज, क्या अपनी सीट बचा पाएंगे प्रेम नारायण पांडेय?

तरबगंज विधानसभा क्षेत्र में 154 ग्राम सभाएं हैं और यहां की आबादी 6 लाख 8 हजार 440 है. इसमें महिलाओं की संख्या 2 लाख 93 हजार 699 है. तरबगंज विधानसभा क्षेत्र में 3 लाख 52 हजार 968 मतदाता है, जिसमें 1 लाख 61 हजार 790 महिला वोटर हैं जबकि अन्य पुरुष वोटर हैं.

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बीजेपी का गढ़ रहा है तरबगंज विधानसभा सीट
बीजेपी का गढ़ रहा है तरबगंज विधानसभा सीट
स्टोरी हाइलाइट्स
  • तरबगंज विधानसभा सीट पर बीजेपी का रहा दबदबा
  • 2017 में बीजेपी के टिकट पर प्रेम नारायण पांडे ने जीता था चुनाव

सरयू नदी के तट पर जहां एक तरफ रामनगरी अयोध्या है, वहीं दूसरे तट पर गोंडा का तरबगंज (299) विधानसभा क्षेत्र है. तरबगंज हर साल बाढ़ का प्रकोप झेलता है. महर्षि पतंजलि की जन्मभूमि तरबगंज पहले डिक्सिर विधानसभा के नाम से जाना जाता था. यहां  की बोली-भाषा रहन सहन अवधी है. उमरी बेगमगंज में  मां बरही देवी का मंदिर आस्था का केंद्र है, जहां नवरात्र में दूर-दूर से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं. तरबगंज कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है.

सामाजिक ताना-बाना 

तरबगंज  विधानसभा क्षेत्र में 154  ग्राम सभाएं हैं और यहां की आबादी 6 लाख 8 हजार 440 है. इसमें महिलाओं की संख्या 2 लाख 93 हजार 699 है. तरबगंज विधानसभा क्षेत्र में 3 लाख 52 हजार 968 मतदाता हैं, जिसमें 1 लाख 61 हजार 790 महिला वोटर हैं जबकि अन्य पुरुष वोटर हैं. तरबगंज को ओबीसी बाहुल्य है क्षेत्र माना जाता है और यहां दूसरे नंबर पर ब्राह्मण वोटर हैं. यहां बड़ी संख्या में पिछड़ा और मुस्लिम समुदाय के भी वोटर हैं. 

राजनीतिक पृष्ठभूमि 

तरबगंज विधानसभा में 1952 से 1969 तक लगातार कांग्रेस का वर्चस्व रहा. 1952 में इस सीट से कांग्रेस पार्टी के रघुराज प्रताप सिंह विधायक चुने गए, जबकि 1957 से 1969 तक लगातार 3 बार कांग्रेस से शीतला प्रसाद सिंह ने चुनाव में जीत दर्ज की.

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1974 में जनसंघ और 1977 में जनता पार्टी से रमापति शास्त्री ने लगातार दो बार जीत दर्ज कर इस इलाके का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया. 1980 और 1985 में कांग्रेस के बाबूलाल ने यहां से जीत दर्ज की थी. 1989 से 1996 तक फिर से इस सीट पर बीजेपी ने अपना कब्जा जमाए रखा और रमापति शास्त्री विधायक चुने जाते रहे.

रमापति शास्त्री 2 बार यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. हालांकि साल 2002 में यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई और बाबूलाल वहां से एक बार फिर विधायक चुने गए. 2007 के चुनाव में तरबगंज के लोगों ने बसपा प्रत्याशी रमेश गौतम को मौका दिया और वो चुनाव जीत गए. 

हालांकि साल 2012 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने यह सीट सपा ने छीन ली और अवधेश कुमार सिंह उर्फ़ मंजू सिंह चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर इस सीट पर अपना कब्जा जमाया और प्रेम नारायण पांडेय ने बाजी मारी.

2017 का जनादेश

2017 में हुए विधानसभा चुनाव में तरबगंज से कुल 10 उमीदवारों ने अपनी किस्मत आजामाई थी. हालांकि जीत का सेहरा बीजेपी उम्मीदवार प्रेम नारायण पांडेय के सिर बंधा. उन्हें 1 लाख 294 वोट मिले, जबकि  दूसरे नंबर पर सपा उम्मीदवार विनोद कुमार सिंह उर्फ़ पंडित सिंह रहे थे जिनको 61 हजार 852 मतों से संतोष करना पड़ा था. बसपा के इंद्र बहादुर उर्फ़ पप्पू परास तीसरे नंबर पर रहे थे और उन्हें 29 हजार 332 वोट मिले थे.

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विधायक का रिपोर्ट कार्ड 

बीजेपी विधायक प्रेम नरायण पांडेय इंटर पास हैं और वो इसी विधानसभा क्षेत्र के निवासी है. पांडेय ने इससे पहले 2012 में भी बीजेपी के टिकट पर इसी सीट से भाग्य आजमाया था, लेकिन वो जीत दर्ज नहीं कर पाए थे.

कृषि ही है आय का मुख्य स्रोत

सरयू नदी के तलहटी पर बसे तरबगंज में ज्यादातर लोगों की आमदनी का मुख्य स्रोत कृषि है. यहां के किसान गन्ने की खेती को वरीयता देते हैं, लेकिन चीनी मिलों से  भुगतान को लेकर परेशान रहते हैं.

इस इलाके में सरकारी डिग्री कॉलेज का अभाव है. जनप्रतिनिधियों की उदासीनता की वजह से यहां उद्योग नहीं है. यही वजह है कि नौकरी के लिए यहां के युवा दिल्ली-मुंबई जैसे शहर पलायन के लिए मजबूर हैं.

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