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Nahid Hasan Kairana: पढ़ाई से परिवार और सियासत से विवाद तक... कैराना से सपा उम्मीदवार नाहिद हसन की पूरी कहानी

Nahid Hasan biography: चौधरी नाहिद हसन का परिवार कैराना का एक बड़ा राजनीतिक रसूख वाला परिवार रहा है. नाहिद के दादा सांसद रहे, पिता सांसद और विधायक रहे, मां भी सांसद रहीं. राजनीति में इस परिवार का जितना नाम है, अब नाहिद हसन उतना ही विवादों में भी हैं.

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नाहिद हसन, सपा प्रत्याशी, कैराना
नाहिद हसन, सपा प्रत्याशी, कैराना
स्टोरी हाइलाइट्स
  • नाहिद हसन ने ऑस्ट्रेलिया से BBA की पढ़ाई की
  • 2012 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा, हारे
  • 2014 का लोकसभा चुनाव भी नाहिद हसन हारे

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जितनी चर्चा सीएम उम्मीदवारों की है, उससे कम चौधरी नाहिद हसन की भी नहीं है. यूं तो नाहिद हसन पश्चिमी यूपी के कैराना से महज एक विधायक हैं और आगामी चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी हैं. लेकिन उनके नाम के साथ विवाद भी काफी हैं. इसके अलावा उनके पास एक बड़ी राजनीतिक विरासत भी है. 

नाहिद और उनके परिवार का लंबा राजनीतिक इतिहास है. नाहिद के दादा से लेकर माता-पिता, चाचा-चाची और कजिन तक, सब लोकल चुनाव से लेकर सांसद और विधायक तक निर्वाचित होते रहे हैं. पूरा कुनबा सियासी है. यूपी से हरियाणा तक की पॉलिटिक्स में नाते-रिश्तेदारों का दबदबा रहा है.

मौजूदा यूपी चुनाव के लिए सपा के उम्मीदवारों (Samajwadi party candidate list 2022) की पहली सूची में जब नाहिद हसन का नाम आया तो सियासी बवाल बच गया. भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कैराना का पलायन और मुजफ्फरनगर दंगों (Muzaffarnagar Riots) का जिक्र छिड़ गया. इसी बीच नाहिद हसन गैंगस्टर केस में जेल भी चले गए. उनका एक वीडियो भी हर तरफ दिखाई दिया, जिसने विरोधियों को उनके खिलाफ एक और बड़ा हथियार दे दिया. 

बहरहाल, अब आपको थोड़ा पीछे लिए चलते हैं और बताते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई करने वाले नाहिद हसन कैसे नेता बने, कैसे उनके साथ विवाद जुड़ते गए और कैसे वो गैंगस्टर केस के मुजरिम बन गए.

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राजनीतिक परिवार में हुआ नाहिद का जन्म

नाहिद हसन के पिता चौधरी मुनव्वर हसन की शादी सहारनपुर की बेगम तबस्सुम से 1986 में हुई थी. नाहिद अपने घर में बड़े हैं. उनकी एक छोटी बहन चौधरी इकरा हसन (iqra Hasan kairana) हैं, जो 2021 में ही इंटरनेशनल लॉ में लंदन से पढ़ाई करके लौटीं हैं. 

देखें- भाई नाहिद और कैराना से अपने नामांकन पर क्या बोलीं इकरा हसन?

34 साल के नाहिद हसन ने जिस मुस्लिम गुर्जर परिवार में जन्म लिया, वहां राजनीति उनसे पहले ही दस्तक दे चुकी थी. नाहिद हसन के दादा चौधरी अख्तर हसन कैराना लोकसभा सीट से 1984 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने थे. वो नगरपालिका के चेयरमैन भी रहे थे. चौधरी अख्तर की विरासत को नाहिद के पिता चौधरी मुनव्वर हसन ने आगे बढ़ाया. 

नाहिद हसन की छोटी बहन इकरा

चारों सदन में रहे चौधरी मुनव्वर हसन

चौधरी मुनव्वर हसन (Chaudhary Munawwar Hasan) ने 1991 और 1993 के विधानसभा चुनाव में कैराना सीट पर जीत दर्ज की. उन्होंने दोनों चुनाव में जनता दल के टिकट पर लड़ते हुए  हुकुम सिंह को हराया. हुकुम सिंह तब कांग्रेस में हुआ करते थे. इस सबके बीच यूपी में हालात बदल गए और मुलायम सिंह यादव ने जनता दल से अलग होकर समाजवादी पार्टी का गठन कर लिया. लगातार कैराना विधानसभा से दो बार विधायक निर्वाचित होने के बाद अब मुनव्वर हसन सपा में आ गए और 1995 में कैराना (kairana) लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता. हालांकि, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में वो लगातार दो बार हारे. इस बीच वो 1998-2003 तक राज्यसभा सांसद रहे और फिर MLC रहे. 2004 में जब लोकसभा चुनाव हुआ तो मुनव्वर हसन को सीट बदलनी पड़ी. कैराना सीट से आरएलडी के टिकट पर अनुराधा चौधरी लड़ीं और जीत गईं. जबकि मुनव्वर हसन सपा के टिकट पर मुजफ्फरनगर सीट से विजयी हुए. 

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पिता की मौत से खाली हुआ वैक्यूम

पश्चिमी यूपी की जाट बेल्ट में चौधरी परिवार की राजनीतिक वर्षों से बोल रही थी. इसी बीच देश की राजनीति में हलचल हुई, इंडो-यूएस न्यूक्लियर डील के विरोध में लेफ्ट ने मनमोहन सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और यूपीए पर बहुमत साबित करने की नौबत आई. सपा तब यूपीए के साथ थी. लेकिन चौधरी मुनव्वर हसन ने सपा सांसद होते हुए भी क्रॉस वोटिंग की, जिसके बाद उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया. इसके बाद वो बसपा की तरफ चले गए.

हालांकि, इसी बीच चौधरी परिवार को एक बड़ा झटका लगा. दिसंबर 2008 में हरियाणा के पलवल में एक सड़क हादस में चौधरी मुनव्वर हसन की 44 साल की उम्र में जान चली गई. इतनी कम उम्र में ही मुनव्वर हसन लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधानपरिषद यानी चारों सदनों के सदस्य रहे.

ऑस्ट्रेलिया से पढ़ाई के बाद लौटे नाहिद

मुनव्वर हसन की जब मौत हुई, तब नाहिद हसन ऑस्ट्रेलिया में बीबीए की पढ़ाई कर रहे थे. वो अपने पिता के जनाज़े में शामिल होने आए और बाद में वापस लौटकर पढ़ाई पूरी की. ऑस्ट्रेलिया जाने से पहले नाहिद ने दिल्ली के अलग-अलग स्कूलों से पढ़ाई की थी. 

विदेश से पढ़ाई पूरी करने के बाद 2011 में नाहिद हसन वापस वतन लौटे. उनके लौटने से पहले ही परिवार की सियासी विरासत को मां बेगम तबस्सुम हसन ने संभाल लिया था. 2009 के लोकसभा चुनाव में वो बसपा के टिकट पर कैराना से लड़ीं और जीतीं. 2018 के उपचुनाव में भी तबस्सुम हसन कैराना सीट से सांसद बनीं.

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दूसरी तरफ, नाहिद हसन के चाचा और परिवार के दूसरे लोग भी राजनीति में सक्रिय रहे. नाहिद के चाचा अनवर हसन फिलहाल नगरपालिका के चेयरमैन हैं. इनके दूसरे चाचा-चाची जिला पंचायत भी रहे हैं. मां भी जिला पंचायत सदस्य रही हैं. एक चाचा अरशद हसन भी विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. नाहिद की मौसी के बेटे अकरम खान हरियाणा सरकार में मंत्री रहे हैं और मुख्यमंत्री के ओएसडी भी रहे हैं. यानी नाहिद हसन जब युवा हो रहे थे तो अपने आसपास पूरा सियासी माहौल देख रहे थे. 

2012 में लड़ा पहला विधानसभा चुनाव 

अब जब चौधरी नाहिद हसन की उम्र हो गई तो वो चुनावी मैदान में उतर गए. 2012 में सहारनपुर की गंगोह सीट से बसपा ने उन्हें प्रत्याशी बना दिया, लेकिन चुनाव से ऐन पहले बसपा ने नाहिद का टिकट काट दिया और शगुफ्ता खान को दे दिया. नाहिद हसन ने निर्दलीय चुनाव लड़ा. वो चुनाव हार गए. कांग्रेस के प्रदीप कुमार यहां से जीते. नाहिद हसन को 33,288 वोट मिले और वो चौथे नंबर पर रहे. इस तरह नाहिद हसन अपना पहला ही चुनाव ही बुरी तरह हार गए.

अखिलेश राज में बढ़ा सियासी कद

2012 में प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा की सरकार बनी और मायावती सत्ता से बेदखल हो गईं. सत्ता बदलते ही नाहिद ने भी पाला बदल लिया. वो सपा के खेमे में चले गए. 2014 का लोकसभा चुनाव कैराना सीट से सपा के टिकट पर लड़ा. ये वो वक्त था जब 2013 का मुजफ्फरनगर दंगा हो चुका था. और नाहिद हसन भी सक्रिय हो गए थे. हालांकि, नाहिद हसन के कैराना विधानसभा क्षेत्र या बिल्कुल नजदीक के गांव में हिंसा नहीं हुई लेकिन मुजफ्फरनगर के पड़ोसी होने का असर यहां भी दिखाई दिया. एक तरफ दंगे का असर, ध्रुवीकरण और मोदी लहर, कैराना सीट से बीजेपी के टिकट पर दिग्गज नेता हुकुम सिंह चुनाव जीत गए. यानी ये दूसरा चुनाव भी नाहिद हसन हार गए. 

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अखिलेश यादव और अपनी मां के साथ नाहिद हसन

हुकुम सिंह कैराना विधानसभा से विधायक भी थे, लिहाजा जब वो मई में सांसद बन गए तो कैराना विधानसभा सीट खाली हो गई. और इसी साल के आखिर में कैराना विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ. इस उपचुनाव में नाहिद हसन फिर सपा के टिकट पर लड़े और इस बार जीत दर्ज कर ली. नाहिद ने बीजेपी प्रत्याशी अनिल चौहान को हरा दिया.

इस पहली जीत और मुजफ्फरनगर दंगों की आंच के साथ ही नाहिद हसन और विवादों का नाता भी शुरू हो गया. नाहिद हसन इलाके की राजनीति और सामाजिक गतिविधियों में खुलकर सामने आने लगे. 2017 का विधानसभा चुनाव भी सपा के टिकट पर कैराना सीट से जीता. हालांकि, प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी.

नाहिद हसन का आपराधिक ग्राफ क्या है?

नाहिद हसन ने नामांकन के वक्त चुनाव आयोग के समक्ष जो हलफनामा दायर किया है, उसमें उनके ऊपर लंबित मामले 16+ एक NCR दर्शाए गए हैं.  एक मामले को शून्य बताया गया है, जिसमें न्यायालय ने कोई संज्ञान नहीं लिया है. ये भी बताया गया है कि अब तक किसी भी मामले में नाहिद हसन पर दोष सिद्ध नहीं हुआ है. 

ये हैं मुकदमे

1-ऐसा कार्य जिससे वैमनस्य फैलती हो
2- रेलवे सम्पत्ति की हानि
3-आपराधिक साजिश
4-सार्वजनिक शांति कि विरुद्ध अपराध 
5-वाद-विवाद
6-शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना
7-लोक सेवक के आदेश की अवमानना
8-स्वेच्छा से चोट पहुंचाना
9-सार्वजनिक शांति के विरुद्ध अपराध
10-महामारी अधिनियम की अवहेलना
11-महामारी अधिनियम की अवहेलना
12-गिरोहबन्द अधिनियम (गैंगस्टर एक्ट)
13-भीड़ में शामिल होकर उपद्रव करना
14-आचार संहिता उल्लंघन
15-लोक सेवक के आदेश की अवहेलना
16-भीड़ में शामिल होकर उपद्रव करना
17-शून्य

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ये वो 17 केस हैं जिनके बारे में हलफनामे में बताया गया है. नाहिद हसन के इन मामलों को समझने के लिए aajtak.in ने उनके एडवोकेट राव मैराजुद्दीन से बात की. एडवोकेट राव का दावा है कि नाहिद हसन के खिलाफ पलायन या मुजफ्फरनगर दंगे की घटना से जुड़ा कोई भी मुकदमा नहीं है. 

एडवोकेट राव ने बताया कि ''कुल 17 मुकदमों से एक मुकदमा ऐसा है जिसमें कोई संज्ञान नहीं लिया गया, सिर्फ एनसीआर है. एक मुकदमे में फाइनल रिपोर्ट लग चुकी है. तीन मुकदमों में जांच चल रही है, अब तक कोई चार्जशीट नहीं हुई है. सात मुकदमे ऐसे हैं जो आचार संहिता उल्लंघन जैसे जनरल मुकदमे हैं और दो मुकदमे महामारी अधिनियम के हैं.'' 

एडवोकेट राव मैराजुद्दीन का कहना है कि 2017 में योगी सरकार आने से पहले नाहिद हसन पर जितने भी केस थे, उनमें ज्यादातर आचार संहिता उल्लंघन और जन आंदोलन से जुड़े हुए थे. जबकि एक केस सरकारी कर्मचारियों से बदसलूकी का था. एडवोकेट राव का कहना है कि 2017 से पहले नाहिद हसन पर सात मुकदमे थे और ये सभी वो थे जो आमतौर पर नेताओं पर सार्वजनिक जीवन में हो जाते हैं.

पुलिस प्रशासन पर लगाया आरोप

नाहिद हसन के एडवोकेट का कहना है कि ''2017 में बीजेपी सरकार आने के बाद पुलिस ने सख्ती दिखाने के लिए एनकाउंटर शुरू किए. शामली में पांच लोगों को भी एनकाउंटर में मार दिया गया. ये सभी मुस्लिम थे. इन लोगों की पैरोकारी नाहिद हसन ने की. पीड़ित परिवारों का सहयोग किया. इस घटना के बाद से स्थानीय पुलिस और नाहिद हसन के बीच टेंशन शुरू हो गई. पुलिस-प्रशासन के खिलाफ नाहिद हसन आवाज उठाते रहे और इसी कड़ी में उनपर कुछ न केस लगते रहे.''

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हालांकि, एडवोकेट राव ने बताया कि एक केस ऐसा था जिसमें दो पक्षों का झगड़ा सुलझाया गया था, दोनों पक्ष मुस्लिम गुर्जर थे, लेकिन उनमें से एक पक्ष ने दबाव बनाकर फैसला कराने का मुकदमा नाहिद हसन पर लिखवाया जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा. 

इस केस में नाहिद हसन को फरवरी 2020 में जेल जाना पड़ा था और मार्च में लॉकडाउन से पहले वो जमानत पर बाहर आए थे. 

इसके बाद फरवरी 2021 में नाहिद हसन और उनकी मां तबस्सुम हसन समेत 40 लोगों के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट लगाई गई. जब नाहिद हसन और उनकी मां ने सरेंडर नहीं किया तो नॉन बेलेबल वॉरंट जारी हो गया. कैराना सीट से टिकट घोषित होते ही नाहिद हसन को गिरफ्तार कर लिया गया. फिलहाल, वो जेल में हैं. 

नाहिद हसन के एडवोकेट राव का कहना है कि नाहिद हसन पर जितने भी केस किए गए उनमें ज्यादातर केस में वादी पुलिस ही है. कैराना के इंस्पेक्टर रहे प्रेमवीर सिंह को भी वो इस पूरे मामले में एक बड़ा किरदार बताते हैं. बता दें कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी नाहिद हसन के सवाल पर बचाव में यही तर्क देते रहे हैं. वो लगातार कह रहे हैं कि अधिकारियों ने गलत तरीके से नेताओं को निशाना बनाया है. आजम खान के खिलाफ केस को भी वो राजनीतिक दबाव वाले केस बताते हैं. 

नाहिद पर निशाना साधने वाले क्या कहते हैं?

यूपी के चुनावी माहौल में भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से लेकर छोटे कार्यकर्ता तक, हर किसी के निशाने पर नाहिद हसन हैं. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक ट्वीट में कहा है, ''कैराना से तमंचावादी पार्टी का प्रत्याशी नाहिद हसन धमकी दे रहा है, यानी गर्मी अभी शांत नहीं हुई है! मार्च के बाद गर्मी शांत हो जाएगी.''

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा है कि सपा दंगा फैलाने वाले नाहिद हसन जैसे लोगों को टिकट दे रही है. केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा है कि नाहिद हसन जैसे माफिया सपा के ब्रांड एंबेसडर हैं. वहीं, नाहिद हसन के खिलाफ बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं मृगांका सिंह का कहना है कि नाहिद हसन के बयान बेहद ही साम्प्रदायिक हैं और उनके बयान की वजह से ध्रुवीकरण होता है. इनके अलावा कई नेता कैराना से हिंदुओं के पलायन का जिक्र करते हुए भी नाहिद हसन को घेरते हैं. 

बहरहाल, इन तमाम सियासी आरोप-प्रत्यारोप के बीच नाहिद हसन का नामांकन स्वीकार कर लिया गया है और चुनावी मैदान में हैं. नाहिद के खिलाफ स्वर्गीय हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह हैं. कैराना की राजनीति में इन दोनों परिवारों का ही चार दशकों से दबदबा रहा है. 

एक और दिलचस्प बात ये है कि दोनों परिवारों के पूर्वज भी एक ही बताए जाते हैं. कहा जाता है कि हुकुम सिंह और चौधरी मुनव्वर हसन का परिवार कलसान गोत्र से है. करीब 200 साल या उससे कुछ ज्यादा वक्त पहले मुनव्वर हसन के पूर्वजों ने इस्लाम कबूल कर लिया था. लेकिन आज भी कैराना में दोनों परिवारों के बीच एक अदब और रिश्ता नजर आता है. चौधरी मुनव्वर हसन हुकुम सिंह को चाचा कहते थे और नाहिद हसन मृगांका सिंह को बुआ कहते हैं. इस इलाके की एक और दिलचस्प बात ये है कि एक तरफ मुस्लिम गुर्जरों का समर्थन हुकुम सिंह और उनके परिवार को मिलता रहा है तो दूसरी तरफ नाहिद हसन के परिवार को भी हिंदू गुर्जर सिर-आंखों पर बिठाते रहे हैं. 


 

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