
फर्रुखाबाद जनपद का राजनीतिक इतिहास काफी पुराना है. यह क्षेत्र कांग्रेस से लेकर समाजवादियों तक का गढ़ रहा है. फर्रुखाबाद, समाजवादी नायक राममनोहर लोहिया की कर्मस्थली भी रही है. वो यहां से सांसद भी रहे थे. वहीं पूर्व राष्ट्रपति डॉ ज़ाकिर हुसैन व राष्ट्रीय कवियत्री महादेवी वर्मा की जन्मस्थली भी है. फर्रुखाबाद जनपद में चार विधानसभाएं हैं. फर्रुखाबाद सदर, भोजपुर, अमृतपुर व कायमगंज(सु).
यहां हम जानेंगे फर्रुखाबाद सदर सीट का हाल. मौजूदा दौर में फर्रुखाबाद सदर सीट पर बीजेपी का कब्ज़ा है. यहां से मेजर सुनील दत्त द्विवेदी विधायक हैं. फर्रुखाबाद सदर सीट पर 1951 से लेकर अब तक अधिकांश बार इस सीट पर कांग्रेस ने ही जीत दर्ज की है. यहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला जनसंघ व भारतीय जनता पार्टी से ही रहा है. लेकिन मंडल की राजनीति के बाद से कांग्रेस कमज़ोर पड़ी और समाजवादी पार्टी मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई.
2012 के परिसीमन के बाद जनपद की विधान सभाओं का भूगोल बदल गया. सदर सीट में परिसीमन से पहले शहरी क्षेत्र के साथ गंगा के पार का भी इलाका जुड़ा था. लेकिन परिसीमन के बाद गंगा के पार का इलाका नई सृजित विधान सभा अमृतपुर मे जुड़ गया. अब सदर विधानसभा में शहरी क्षेत्र के साथ साथ शहर से सटे ग्रामीण क्षेत्र को जोड़ा गया है.

फर्रुखाबाद की राजनीतिक पृष्ठभूमि
फर्रुखाबाद जनपद कानपुर मंडल का ज़िला है. जो कानपुर से 140 किलोमीटर व सूबे की राजधानी लखनऊ से 210 किलोमीटर व देश की राजधानी दिल्ली से 325 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जनपद की मुख्य सीट फर्रुखाबाद सदर है. सदर विधानसभा का सृजन देश के पहले आम चुनाव के समय से ही हुआ था. राजनीतिक रूप से इस सीट का इतिहास काफी महत्वपूर्ण है. सदर सीट पर प्रारम्भ से ही कांग्रेस व जनसंघ व उसके बाद भाजपा से सीधा मुकाबला रहा. लेकिन वर्ष 1997 में एक राजनीतिक हत्या के बाद समीकरण तेज़ी से बदले और कांग्रेस लड़ाई से बाहर होती चली गयी. वर्ष 1997 में भाजपा के कद्दावर नेता व मौजूदा विधायक ब्रह्म दत्त द्विवेदी की हत्या हुई और हत्या का आरोप स्थानीय नगरपालिका परिषद के पति विजय सिंह पर लगा. विजय सिंह ने भी 2002 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में इस सीट पर जीत दर्ज की.
सदर सीट पर वर्ष 1957 में रामकृष्ण सारस्वत कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जीते. वहीं 1962 में दयाराम शाक्य ने जनसंघ प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की. 1967 व 1969 के चुनाव में महरम सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की. 1974 में विमल प्रसाद तिवारी ने कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की. वर्ष 1977 में ब्रह्म दत्त द्विवेदी ने जनता पार्टी प्रत्याशी के रूप मे जीत दर्ज कर कांग्रेस प्रत्याशी विमल प्रसाद तिवारी को शिकस्त दी थी.

वहीं 1980 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी विमल प्रसाद तिवारी ने जीत दर्ज कर भाजपा प्रत्याशी ब्रह्म दत्त द्विवेदी को चुनाव में हराया. 1985 के चुनाव में ब्रह्म दत्त द्विवेदी ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज कर कांग्रेस प्रत्याशी विमल प्रसाद तिवारी को चुनाव हराया. वहीं 1989 के आम चुनाव में फिर से कांग्रेस प्रत्याशी विमल प्रसाद तिवारी ने जीत दर्ज कर भाजपा प्रत्याशी ब्रह्म दत्त द्विवेदी को चुनाव में शिकस्त दी.
वहीं 1991व 1993 व 1996 के आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी ब्रह्म दत्त द्विवेदी ने जीत दर्ज कर हैट्रिक लगाई. ब्रह्म दत्त द्विवेदी की जीत की हैट्रिक के बाद द्विवेदी भाजपा में एक कद्दावर नेता के रूप मे उभर कर आए और भाजपा सरकार में मंत्री भी बने. लेकिन फरवरी1997 में वर्तमान विधायक ब्रह्म दत्त की हत्या कर दी गयी.
द्विवेदी की हत्या के बाद सदर सीट पर बड़ा परिवर्तन आया और द्विवेदी की हत्या के आरोपित हुए विजय सिंह भी एक नेता के रूप में उभर कर सामने आए. द्विवेदी की हत्या के बाद 1997 के उप चुनाव में में उनकी पत्नी प्रभा द्विवेदी ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज कर सूबे की सरकार में मंत्री बनीं. लेकिन 2002 के आम चुनाव में प्रभा द्विवेदी को उनके पति की हत्या के आरोपी विजय सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में हरा कर जीत दर्ज की.

निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज कर विजय सिंह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. 2007 व 2012 के चुनाव में विजय सिंह ने स्व. ब्रह्म दत्त द्विवेदी के बेटे व मौजूदा विधायक सुनील दत्त द्विवेदी भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त दी. वहीं 2007 में विजय सिंह ने समाजवादी पार्टी से चुनाव जीत कर सीट से इस्तीफा दिया और उपचुनाव में बसपा के अनन्त मिश्र ने जीत दर्ज की थी. वहीं वर्ष 2017 की भाजपा लहर में सुनील दत्त द्विवेदी ने भाजपा प्रत्याशी के रूप में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर विजय सिंह को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया और बसपा प्रत्याशी उमर खान दूसरे स्थान पर रहे.
फर्रुखाबाद सदर सीट पर भाजपा की राजनीति वर्ष 1977 से एक ही परिवार में चली आ रही है. वर्तमान भाजपा विधायक सुनील दत्त द्विवेदी के पिता स्व. ब्रह्म दत्त द्विवेदी व उनकी माता श्रीमती प्रभा द्विवेदी भी भाजपा की राजनीति में सक्रिय रहकर इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.
फर्रुखाबाद सदर सीट का सामाजिक ताना बाना
फर्रुखाबाद सदर सीट गंगा जमुनी तहजीब का केंद्र भी माना जाता है. जहां बहुसंख्यक के साथ साथ अल्पसंख्यक के साथ अनुसूचित वर्ग का भी सामाजिक ताना बाना मज़बूत बना हुआ है. वर्ष 2017 के अनुसार इस सीट पर कुल मतदाता 3,54,286 हैं. जिसमें से 1,92,578 मतदाता पुरुष व 1,61,686 महिला मतदाता व 22 अन्य मतदाता हैं. सदर सीट पर अनुमानित 55 हज़ार मतदाता ब्राह्मण समाज से व 25हज़ार वैश्य व 70हज़ार मुस्लिम व 18हज़ार क्षत्रिय, 24हज़ार यादव, 20हज़ार कुर्मी, 20हज़ार बाथम, 38हज़ार लोधी, 35 हज़ार शाक्य व 50 हज़ार अनुसूचित वर्ग के मतदाता हैं.

विधायक रिपोर्ट कार्ड
फर्रुखाबाद सदर सीट से 2017 में भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी से चुनाव जीत कर आए 55 वर्षीय मेजर सुनील दत्त द्विवेदी भाजपा के कद्दावर नेता स्व.नेता ब्रह्म दत्त द्विवेदी के पुत्र हैं. जिनकी शैक्षणिक योग्यता स्नातक है. मेजर सुनील दत्त द्विवेदी सेना में मेजर पद पर भी सेवा दे चुके हैं. पिता की मृत्यु के बाद उनकी विरासत को सम्भालते हुए वे राजनीति में आए और 2007 व 2012 के चुनाव हारने के बाद 2017 के चुनाव में जीत दर्ज कर पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ रहे हैं.
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वे सरल-सौम्य और जनता के बीच में मेजर साहब के नाम से मशहूर हैं. इन्होंने बीते साढ़े चार सालों में जनता के बीच रह कर काम किया है. जनता के लिए साफ व ठंडे पानी के लिए जगह जगह पर मशीन लगवाने से लेकर क्षेत्र में बिजली की समस्या के समाधान पर भी काम कर रहे हैं. शहर में बिजली की भूमिगत तार डलवाने के लिए भी प्रयासरत हैं. वहीं क्षेत्र में सड़क आदि के निर्माण भी कराए हैं. कोरोना काल में आम जनता के बीच रह कर इन्होंने काम किया. कोरोना काल में लोगों को इलाज से लेकर ऑक्सीजन मुहैया कराने में भी इनकी अच्छी भूमिका नज़र आई. लॉकडाउन में आम जनता को राशन आदि से भी काफी मदद की.

विविध
फर्रुखाबाद जनपद की राजनीति में बड़ा बदलाव वर्ष 1997 में भाजपा के कद्दावर नेता ब्रह्म दत्त द्विवेदी की हत्या के बाद प्रारम्भ हुआ. 1997 से पहले फर्रुखाबाद मध्य, उत्तर प्रदेश में भाजपा की राजनीति का केंद्र बिंदु था. लेकिन द्विवेदी की राजनीतिक हत्या के बाद सबकुछ बदल गया. द्विवेदी की हत्या के आरोप में विजय सिंह वर्तमान में आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे हैं.