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चित्रकूट से ग्राउंड रिपोर्ट: क्या अनुप्रिया के ससुराल में ही फंसी BJP ? आदिवासियों की नाराजगी है वजह

चित्रकूट के मानिकपुर सीट पर कोल आदिवासियों की नाराजगी बढ़ती जा रही है. इसके पीछे वन विभाग का नोटिस वजह है. चित्रकूट में ही अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की ससुराल है.

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नोटिस दिखाते कोल आदिवासी
नोटिस दिखाते कोल आदिवासी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • मानिकपुर में आदिवासियों को वन विभाग का नोटिस
  • जमीन खाली करने के लिए विभाग ने भेजा नोटिस

उत्तर प्रदेश में पांचवें चरण का चुनाव प्रचार आज थमने वाला है. इस चरण में जिन जिलों में चुनाव होना है, उसमें चित्रकूट भी शामिल है. चित्रकूट में ही अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की ससुराल है. लोगों का कहना है कि कोल आदिवासियों की नाराजगी की वजह से बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है. 

मऊ-मानिकपुर ब्लॉक के करीब 40 हजार आबादी वाले कोल आदिवासियों को बेघर होने का डर सता रहा है, क्योंकि वन विभाग ने उन्हें 2021 के अंत में बेदखली का नोटिस दिया है. मानिकपुर-मऊ ब्लॉक में 230 वर्ग किलोमीटर में रानीपुर वन्यजीव अभयारण्य है, जिसे 1977 में स्थापित किया गया था. मानिकपुर विधानसभा क्षेत्र के 22 पंचायतों में रहने वाले आदिवासियों को नवंबर 2021 से बेदखली के नोटिस मिलने शुरू हो गए हैं. उन्हें दो तरह के नोटिस दिए जा रहे हैं. एक नोटिस में कहा गया है कि नोटिस मिलने के तीन दिनों के भीतर उन्हें जमीन खाली करनी होगी, वहीं दूसरे में निपटान का विकल्प दिया है. 

ये नोटिस मानिकपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले आदिवासियों के गांवों जैसे कि टिकुरी, अमरपुर, मस्कटा, रानीपुर, उंचडीह आदि को भेजे गए थे. इस मामले में आजतक से बात करते हुए अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के माता दयाल ने कहा कि हमें अपनी जमीन छोड़ने के लिए कहा गया है, वे जबरदस्ती कर रहे हैं.

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'जमीन नहीं छोड़ेंगे चाहे हमें मार दिया जाए'

माता दयाल ने कहा, 'अब चुनाव आ गया है, और वे पैसे और शराब देकर हमें जीतने की कोशिश करेंगे, लेकिन हम ऐसी बातों के झांसे में नहीं आएंगे. हम अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे.' नोटिस पाने वाले 36 वर्षीय सुगन ने कहा, 'इस धरती पर हक सबका है, हम लोग यहां के मूल निवासी हैं, हम जमीन नहीं छोड़ेंगे चाहे हमें मार दिया जाए.'

इन आदिवासियों के लिए उत्पीड़न कोई हालिया मुद्दा नहीं है. वे ब्रिटिश काल से ही सरकारों के इस तरह के उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं. राम मिलन ने कहा, 'हम 2013 से उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं. वे हमारी जमीन लेना चाहते हैं और हमें धमकाते हैं, हम लड़ रहे हैं क्योंकि हम इस जगह के मूल निवासी हैं, और अंतिम सांस तक लड़ेंगे.'

कोल आदिवासियों का क्या है इतिहास?

कोल ज्यादातर वनवासी हैं जो मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं. ज्यादातर हिंदू धर्म के अनुयायी होते हैं और खुद को शबरी का वंशज बताते हैं, जिन्होंने भगवान राम और भगवान लक्ष्मण को जामुन खिलाए थे. इस पौराणिक कथा के अनुसार इस जनजाति का जंगल से घनिष्ठ संबंध है.

कोल आदिवासियों के साथ कब से शुरू हुई ज्यादती?

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लंबे समय तक जंगल में रहने के बावजूद कोलों का इतिहास कहीं दर्ज नहीं है. इन आदिवासियों के साथ उच्च जातियों या जमींदारों ने बुरा व्यवहार किया. ये आदिवासी लंबे समय से जल विद्युत परियोजनाओं और रानीपुर वन्यजीव अभयारण्य जैसे वन्यजीव अभयारण्यों जैसे विकास के नाम पर अपने आवास से विस्थापित हुए हैं.

आज भी वे जंगल से चुनकर लाई गई लकड़ी 50 रुपये प्रति बंडल के हिसाब से बेचने को मजबूर हैं. आदिवासियों का दावा है कि अगर वे खेती का विकल्प चुनते हैं, तो भी वन विभाग के अधिकारी उन्हें रोकने के लिए गड्ढे खोदते हैं. नीरज रावत ने कहा, 'हमने खेती करने की कोशिश की, लेकिन वे आते हैं और गड्ढा खोदते हैं.'

जमीन बचाने के साथ ST बनने की लड़ाई

कोल आदिवासियों को अपनी जमीन बचाने के लिए एक और लड़ाई लड़नी है. वह है खुद को अनुसूचित जनजाति के श्रेणी में आने की. दरअसल, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के तहत अनुसूचित जनजाति के आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा की जाती है.

उत्तर प्रदेश में कोल आदिवासी अनुसूचित जाति में हैं. जिसका अर्थ है कि उन्हें जमीन से बेदखली रोकने के लिए 75 साल का निवास साबित करना होगा, जो कि एक वर्ग के लिए कोई आसान काम नहीं है. कोल लंबे समय से उत्तर प्रदेश में एसटी दर्जे की मांग कर रहे हैं. इस बीच अब उन्हें बेदखली का नोटिस मिल गया है, जिसका असर आगामी चुनाव पर पड़ेगा.

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आदिवासियों को सपा और अखिलेश से उम्मीद!

मतदान के सवाल पर आजतक से बात करते हुए सुगन कहते हैं, 'भरोसा किसी के ऊपर नहीं है क्योंकि 40-50 साल से किसी ने हमारे लिए कुछ नहीं किया. हम लोगों को जो एसटी का दर्जा देगा हम उसे वोट डालेंगे. इस बार वोट जरूर डालेंगे और वह भी समाजवादी पार्टी को, क्योंकि अखिलेश ने कुछ काम किया था.'

आदिवासियों के साथ काफी समय बिताने वाले अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान (एबीएसएसएस) के एनजीओ के समन्वयक गजेंद्र यादव ने कहा, 'पहले उन्होंने वर्तमान सरकार को वोट दिया, लेकिन इस बार वे नाराज हैं. उनमें से कुछ का मानना ​​है कि सपा बदलाव लाएगी क्योंकि एक बार मुलायम सिंह यादव ने इन लोगों को एसटी का दर्जा देने का काम शुरू किया था. हालांकि, मैं किसी राजनीतिक दल पर विश्वास नहीं करता, वे केवल अपने फायदे के लिए बातें करते हैं.'

 

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