अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को धोखा दिया, अब जनता ने उन्हें धोखा (सबक) दिया. अराजकतावादी निकला, जितने वादे किए थे, उसे पूरा नहीं कर सकता था. नतीजों के रुझान आते ही करीब 10.30 बजे दिल्ली की सीमापुरी विधानसभा क्षेत्र में स्टैंड पर बस का इंतजार कर रहे मुसाफिरों की यह राय जाहिर कर ही है कि आम आदमी पार्टी ने जो बोया, वही पाया है.
राजधानी दिल्ली के चौक-चौराहों, मेट्रो, बसों आदि जगहों पर इस तरह की चर्चा आम है. जिस दिल्ली के दिल में जगह बनाकर देश फतह करने का मंसूबा पाल आम आदमी पार्टी ने महज 49 दिनों में दिल्ली की सत्ता छोड़ दी, उसे जनता ने खुद के साथ विश्वासघात माना. जनता के इस टूटे विश्वास का फायदा सीधे तौर पर बीजेपी को मिला.
कांग्रेस विरोधी लहर में दिल्ली की जनता ने आप को शासन की बागडोर दी थी, लेकिन चुनाव नतीजों से साफ है कि दिल्ली के दिल में बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी अपनी जगह बना चुके थे. अगर आप ने दिल्ली की कुर्सी नहीं छोड़ी होती तो निश्चत तौर से देश की राजधानी में उसका इस तरह सूपड़ा साफ नहीं होता.
लोकतंत्र की ताकत यही है कि जिस आप और केजरीवाल को 6 महीने पहले सिर पर बिठाया, उसकी करनी की वजह से जमींदोज करने में देर नहीं लगाई. दिल्ली में बीजेपी भले सातों लोकसभा सीट जीत रही है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि आम आदमी पार्टी का जनाधार खत्म हो गया है. आप को करीब 33 फीसदी वोट मिलता दिख रहा है, तो मोदी लहर पर सवार बीजेपी को 46 फीसदी. जबकि कांग्रेस 14 फीसदी वोट तक सिमट गई है.
दिल्ली का चुनाव प्रबंधन करने में बीजेपी ने खास फोकस किया था क्योंकि यही पहला ऐसा राज्य था जहां कांग्रेस विरोधी लहर दिखी और 15 साल से सत्ता पर काबिज पार्टी का 2013 के विधानसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया था. खुद तात्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित राजनीति के एक नए खिलाड़ी अरविंद केजरीवाल से बुरी तरह हार गईं. दिल्ली में जिन दिग्गजों के हारने की उम्मीद नहीं थी, वे तमाम नेता मात खा गए.
बीजेपी ने हर्षवर्धन को थोड़ी देरी से सीएम के लिए प्रोजेक्ट किया और बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. लेकिन सत्ता के मुहाने पर पहुंचने के बाद भी पार्टी को मायूसी हाथ लगी. हालांकि बीजेपी में अरुण जेटली सरीखे नेता इस पक्ष में थे कि अल्पमत की सरकार बनाई जाए और निर्दलियों को अपने पाले में लाकर शासन चलाया जाए, लेकिन नरेंद्र मोदी ने इसके लिए वीटो कर दिया.
मोदी का संदेश साफ था कि लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी को इस तरह का संदेश नहीं देना चाहिए कि वह सत्ता के लिए जोड़-तोड़ की राजनीति कर रही है. मोदी की रणनीति का फलसफा आखिर लोकसभा चुनाव में साफ नजर आया और कभी आप और केजरीवाल लहर में बह रही दिल्ली मोदी और भगवा लहर पर सवार हो गई.