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लाल कृष्ण आडवाणी को खुला खत: 'ये बात-बात पर बंतो बुआ की तरह रूठना बंद करें आडवाणी जी'

आदरणीय आडवाणी जी,पूरा भरोसा है कि आप स्वस्थ होंगे. आपकी बात मैं अकसर दोस्तों को बताता हूं. जितनी भूख हो, उससे एक रोटी कम खाओ. हमेशा तंदरुस्त रहोगे. आपकी तरह. पर आज मैं आपके हेल्थ पर नहीं, आपकी हरकतों पर कुछ बातें करना चाहता हूं.

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Lal Krishna Advani
Lal Krishna Advani

आदरणीय आडवाणी जी,
पूरा भरोसा है कि आप स्वस्थ होंगे. आपकी बात मैं अकसर दोस्तों को बताता हूं. जितनी भूख हो, उससे एक रोटी कम खाओ. हमेशा तंदरुस्त रहोगे. आपकी तरह. पर आज मैं आपके हेल्थ पर नहीं, आपकी हरकतों पर कुछ बातें करना चाहता हूं.

आप तो खूब पढ़ते-लिखते हैं न. अकसर अपने ब्लॉग में इसका जिक्र भी करते हैं. तो कैसा लगता है. जब आपके बारे में खबरें छपती हैं. गौर किया है आपने. पिछले छह महीने से एक ही तरह की खबरें छप रही हैं. आडवाणी इस बात पर रूठे. ये मनाने गए, वो मनाने गए. मान गए, फिर रूठे. और इन सबसे होता क्या है. यकीन मानिए आपका राजनीतिक कद तो गिरता ही है, आपकी पार्टी की भी बिना ब्याज के छीछालेदर होती है.

आडवाणी जी, मैं आपको देखता हूं तो बंतो बुआ याद आती हैं. ये बंतो बुआ हर बड़े घर में पाई जाती हैं. बुआ भूल जाती हैं कि अब इस घर में उनकी नहीं चलती. अब अम्मा बात-बात पर उनका मुंह नहीं देखती. नई बहुएं आ गई हैं. बेटियां आ गई हैं. सब अपने हिसाब से करेंगी, खाएंगी, गुनगुनाएंगी. और तब, बुआ अपने मौके की टोह में रहती हैं. और मौका आता है भाभी के बेटे के बियाह पर. शुरू हो जाते हैं बुआ के नखरे. फलानी लिवाने आएंगी, तब जाएंगे. ढिकाने माफी मांगेंगे, तब शामिल होंगे. और आखिर में अम्मा कहती हैं, तब बुआ मुंह फुलाकर मानती हैं.

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गांधी नगर का बार-बार जिक्र आ रहा है. मुझे पिछला आम चुनाव याद आ रहा है. उस दौरान एक तस्वीर छपी थी. हाथ में डंबल थामे आडवाणी की. एक जिम का उद्घाटन करते हुए. अपने संसदीय क्षेत्र में. संदेश साफ था. आडवाणी अभी बूढ़ा नहीं हुआ. और शायद इसीलिए, पार्टी और संघ ने आपकी हसरतों के सलीब को एक बार पूरे सलीके से ढोया. मगर वेटिंग के चक्कर में इतना वेट नहीं कर सकते न कि हमेशा के लिए सेट ही हो जाएं.

तो पार्टी ने आगे की राह पकड़ ली. हारे को हरिनाम और चढ़ते सूरज को सलाम किया. मगर आप हैं कि वानप्रस्थ को तैयार ही नहीं. अच्छा लगता है क्या. जब कांग्रेस वाले, जेडीयू वाले फर्जी सिंपैथी के साथ बाइट देते हैं. चच्च्चच्च करते हुए कहते हैं. बूढ़े आदमी के साथ बहुत बुरा किया बीजेपी ने.

कमाल करते हैं आप. पहले कहा, गांधी नगर से लड़ूंगा. अब पार्टी टिकट दे रही है, तो भोपाल की तरफ पाल तान दी. आपको क्या लगता है. मोदी सियासत में इतने कच्चे हैं. आपको गांधीनगर से हरवाने का जोखिम ले सकते हैं. आपको क्या लगता है. इस तरह से बार-बार रूठकर आप उस कैडर के बीच दुलारे रह पाएंगे, जिसको बार बार आपके संघर्षों की दुहाई दी जाती है. 2 से 88 सीटों तक पहुंचाने की बात कही जाती है.

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और एक बात. एक सियासी सच कहिए बल्कि. आप भी जानते हैं. अब मानना नहीं चाह रहे. और वह सच यही है कि आप अपने राजनीतिक शीर्ष पर पहुंच लौट चुके हैं. संगठन का आदमी, जिसकी जाति के ज्यादा लोग नहीं. जिसके पास जबरदस्त जुमलेबाजी वाली स्पीच नहीं. जिसके पास बतौर मंत्री बहुत शानदार ट्रैक रिकॉर्ड नहीं. वह कैसे अब भी काबिज रहे कंगूरे पर.

अब भी समय है. अपनी मंडली को सतर्क करिए. वर्ना आपके साथ-साथ वह अपनी राजनीति भी खराब कर लेंगे. पब्लिक का पता तो 16 मई को चलेगा, मगर पार्टी काडर नरेंद्र मोदी के लिए उन्माद की हद तक समर्पित है. ऐसे में ये बार-बार के नखरे नष्ट कर रहे हैं आपके किए धरे को. और आखिर में बड़ी अम्मा रूठ गईं, तो कितनी निष्ठुर हो सकती हैं, आपको पता ही है. बलराज मधोक याद हैं न.

आप फिर से लोकसभा में पहुंचें और अपने अनुभव से संसद को समृद्ध करें, ऐसी कामना के साथ.

बुजुर्गों की इज्जत करने वाला एक भारतीय

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