वह लड़का अरुणाचल प्रदेश का था. उसकी आंखें थोड़ी छोटी थीं. नाक चपटी थी. बाल कुछ अलहदा स्टाइलिश से थे. लेकिन उसके अंगों की बनावट मजाक उड़ाने और फिर उसे पीट पीटकर मार डालने के लिए पर्याप्त थी.
कॉलेज में पढ़ता था निडो तानियाम. नई उमर का लड़का. लाजपतनगर के एक दुकानदार ने पहले उसके बालों पर फिकरा कसा. निडो को गुस्सा आया तो उसने दुकान का कांच तोड़ दिया. पुलिस उसे थाने ले गई, दुकानदार को 10 हजार रुपये का हर्जाना दिलवाया और फिर वापस लाजपत नगर मार्केट में छोड़ गई. भरे बैठे थे दुकानदार. निडो पर डंडे और रॉड लेकर हमला बोल दिया. लहू का जायका कैसा है यह दिल्ली बताती है. मुनव्वर का शेर ऐसा तो नहीं था, पर आज ऐसा पढ़ने का मन करता है. दिल्ली ने बता दिया. मार-मार कर उसकी जान ले ली.
हो सकता है आगे कुछ और तथ्य सामने आएं, पर अब तक घटना का यही ब्यौरा मिला है. क्षोभ से भर जाने को मन करता है. अगर आप दिल्लीवाले हैं तो तय कीजिए कि कैसे रिएक्ट करेंगे. करेंगे भी या नहीं? कैंडी क्रश खेलना बंद कीजिए, दो मिनट निकालकर ये सवाल पढ़ लीजिए, जिनके जवाब शायद किसी आकाशगंगा में गुम हो गए हैं.
5 दिन पहले इसी दिल्ली के केंद्र में 26 जनवरी मनाते हुए हमने गाया, 'झंडा ऊंचा रहे हमारा' और 'ऐ मेरे वतन के लोगों'. ये किसके वतन के लोग हैं? जिन्होंने मारा वे किस वतन के थे. जो मरा वह किस वतन का था? 84 में भी कोई मरा था, 2002 में भी बहुत मरे थे. आपको समानता दिखती है? ऐसे में कैसे ऊंचा रहे झंडा? विजयी विश्व तिरंगा. यह किसकी 26 जनवरी है? यह किसका 15 अगस्त है? मैं पूछना चाहता हूं.
देश के पूर्वोत्तर में सात राज्य हैं. सेवन सिस्टर्स. दिल्ली की सात सौतेली बहनें. क्या उनकी है 26 जनवरी? यह सिर्फ सियासी मसला नहीं है. आप मानें या न मानें, पर यह उस नस्ली नफरत की झलक है, जो आपके जेहन में बहुत भीतर धंसी हुई है. एकता में अखंडता? क्या मजाक करते हैं साहब! आपको तो वे चाइनीज नजर आते हैं? भाईचारा? फालतू की बात है. उनके लिए खास किस्म के संबोधन और जुमले गढ़ रखे हैं आपने. पीठ पीछे नहीं, सामने चिल्ला चिल्लाकर बोलते हैं आप. मॉडर्न इंडिया? सब बकवास. वरना नॉर्थ ईस्ट की लड़कियों को देखकर ज्यादातर मौकों पर आप एक ही किस्म के ख्यालों से क्यों भर जाते. वे ख्याल जो वासना की कीचड़ में सने होते हैं और जिनकी अति रेप और हिंसा जैसे जघन्य अपराधों तक जाती है . नॉर्थ ईस्ट की महिलाओं के कपड़ों और चेहरों में आप उकसावा खोज लेते हैं. आपको क्यों लगता है कि उनमें से ज्यादातर यहां वेश्या बनने आती हैं? उनको किराए पर घर देने में हिचकते क्यों हैं आप?
और फिर गुस्साया-सताया नॉर्थ ईस्ट का कोई बाशिंदा, तुम्हें 'यू इंडियंस' कह दे, तो तुम्हारा उपराष्ट्रवाद फनफना कर उमड़ आता है. देशद्रोही, बाहरी, अलगाववादी, न जाने कौन-कौन से तमगे बांट देते हो लगे हाथ. जब दिल्ली को 'रेप कैपिटल' लिखा जाता है तो तुम्हारी भुजाएं फड़कने लगती हैं. कोई तथाकथित बाहरी दिल्ली में अधिकार से रहता है तो तुम्हारे सीने में जलन होने लगती है.
तो यूं कर लेते हैं कि दिल्ली में अलग-अलग कालोनियां बना लेते हैं. एक में यूपी-बिहार वाले रहेंगे, एक में नॉर्थ-ईस्ट वाले, एक में मुसलमान, एक में सिख, एक में महिलाएं. और फिर एक थोड़ी संभ्रांत वाली बना लेना दिल्ली वालों की. जब कोई किसी काम से दूसरे के इलाके में जाएगा तो बांह पर बैज लगाकर जाएगा, जिस पर उसका धर्म, जाति, क्षेत्र, लिंग लिखा होगा ताकि उसकी मुख्तलिफ पहचान सनद रहे. लेट्स वेलकम हिटलरशाही.
ऐ दिल्ली, तू बता कि तेरे पास फख्र करने के लिए क्या है? चार-छह ऐतिहासिक इमारतें, पुराने खंडहर? या तेरी छाती पर उगा हुआ वो गोल संसद भवन? मॉल, मेट्रो, बहन की गाली, क्या? किस बात पर इतना अभिमान है तुझे? कौन सा रहस्यमयी दंभ है तुझे, पता तो चले?
क्या कोई विजय जॉली अब पूरे लाजपतनगर को कालिख से रंगने जाएगा? क्या करेंगे वे लोग जो मोमबत्तियां लेकर इंडिया गेट पहुंचे थे पिछली बार? वे जिन्होंने सीने पर पानी की ताकतवर बौछारें झेली थीं एक मुर्दा हो चुकी अनजान लड़की के लिए? क्या करेंगे हमारे प्रतिनिधि, हमारे नेतागण, टीवी चैनलों पर एकाध बाइट देने के सिवा? कोई मोदी या राहुल अपने भाषण में निडो तानियाम नाम के उस भारतीय को याद करेगा? शिंदे किसको कहेंगे येड़ा? कोई एनजीओ वाला भी सुध लेगा या नही? मेरे इन सवालों का जवाब दिया जाए.
यह सब हुआ लाजपत नगर पुलिस थाने के क्षेत्र में. उस थाने के क्षेत्र में जो बाकी थानों के लिए आदर्श बताया जाता है. ठीक कहा न बस्सी साहब! दिल्ली पर किसका हक है? पहला हक और दूसरा हक जैसा कुछ है क्या? दावा सब ठोंकते हैं. दिल्ली वाले भी, गुजरात वाले भी. कल बंगाल वाले भी हक जताकर चले गए. हक कौन तय करेगा? दिल्ली वालों का पसंदीदा जुमला है, 'तू जानता नहीं, मेरा बाप कौन है?' पुलिस वाला पकड़ लेगा तो चालान नहीं भरेंगे, बाप की धौंस देंगे. आज मैं पूछना चाहता हूं, 'तेरा बाप कौन है दिल्ली?'
इससे पहले कि किसी की जहरीली जुबान हरकत में आए और अनाप-शनाप कहे, बता दूं कि मैं भी दिल्ली का बाशिंदा हूं और इस बात पर इंतहा की हद तक शर्मिंदा हूं.