जय जनादेश. दिल्ली के चुनाव नतीजे देखने के बाद पहला शब्द यही निकलता है मुंह से. और इसकी सबसे बड़ी वजह है आंदोलन से उपजी पार्टी आम आदमी पार्टी का शानदार प्रदर्शन. आम आदमी पार्टी अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में पहली बार चुनाव लड़ते हुए दिल्ली की 70 सीटों में से 27 सीटें जीतती नजर आ रही है.
सतही तौर पर देखें तो यह एक ठीक-ठाक प्रदर्शन लगता है नंबरों के लिहाज से, क्योंकि लोकतंत्र में सत्ता हासिल करने वाली जीत का मान ज्यादा होता है. मगर अगर इस व्याख्या के साथ एक जीरो जोड़ दें. तो तर्क बदल जाते हैं. जीरो यानी सतह से शुरुआत. जीरो यानी जीरो से 27 तक का सफर. आइए जानें इस यादगार सफर को जनपथ से शुरू कर राजपथ तक ले जाने वाली 10 वजहें क्या रहीं.
1: भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल
दिल्ली में जनलोकपाल बिल पर चले आंदोलन के सहारे अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जबरदस्त माहौल बनाया. उन्होंने सीधे कांग्रेस नेतृत्व पर हमले किए. कथित जल निगम घोटाले को सामने लाए और यह बताया कि कैसे दिल्ली में निजी बिजली कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा रहा है.

2: अरविंद की छवि
साधारण सी शर्ट-पैंट पहनने वाले अरविंद केजरीवाल की शैक्षणिक पृष्ठभूमि और साफ-सुथरी छवि आम आदमी पार्टी के लिए तुरुप का इक्का साबित हुई. लोगों को लगा कि सिस्टम से परेशान एक आम आदमी गांधी टोपी लगाकर देश बदलने की बात कर रहा है. आश्चर्य नहीं कि लोगों ने सोचा हो कि यह कैसा नेता है जो जनता के लिए जिंदगी दांव पर लगाकर अनशन करता है, प्रदर्शनों में लाठी खाता है और जमीन पर ही सो जाता है. आम आदमी पार्टी के नए-नवेले प्रत्याशियों को भी अरविंद की छवि की वजह से वोट मिले. उनके आरटीआई के आंदोलन की पृष्ठभूमि भी काम आई.

3: झाड़ू की ब्रांडिंग
पार्टी का नाम आम आदमी पार्टी. पार्टी का चुनाव निशान झाड़ू. पार्टी के तौर तरीके, घर घर जाकर प्रचार करना. चौराहों पर चुनाव निशान दिखाना. ये सब कुछ इस अजूबे लोकतंत्र के लिए नया और यादगार था.जब अरविंद बोलते, आप को तय करना है कि क्या करना है, तो हर कोई इस आंदोलन, इस राजनीतिक दल और इसकी मुहिम से जुड़ाव महसूस करने लगता. उन्हें लगता है कि ये झाड़ू राजनीतिक गंदगी बुहारने का एक तरीका है. दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती में टैंकर से पानी लेने आई एक महिला से जब एक पत्रकार ने पूछा- 'आप अरविंद केजरीवाल को जानती हैं?' उसने 'ना' में सिर हिलाया. रिपोर्टर का अगला सवाल था, 'झाड़ू वालों को जानती हैं?' महिला तपाक से बोली, 'हां-हां, जानती हूं.' झाड़ू सफाई का हथियार है, केजरीवाल ने इसे राजनीतिक सफाई का हथियार बनाकर प्रचारित किया.
4: गजब का राजनीतिक साहस
जीत के लिए क्या चाहिए. सबसे पहले साहस. अरविंद केजरीवाल ने जिस दिन कहा कि मैं दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ूंगा. उस दिन साहस को एक नया मुहावरा मिला. लोग कहते दिखे, अरविंद का विधानसभा पहुंचना जरूरी है, उन्हें कोई सेफ सीट चुननी चाहिए थी. मगर ये व्यक्ति और आंदोलन अपने यकीन पर टिका रहा. और इस साहसी छवि ने लोगों के मन में आप के प्रति यकीन और सम्मान भर दिया.

5: शुचिता और पारदर्शिता
आम आदमी पार्टी ने सिर्फ राजनीतिक शुचिता की बात नहीं की. अपने तौर तरीकों में इसे दिखाया भी. आप को मिला 10 रुपये का चंदा भी कुछ ही सेकंडों में पार्टी की वेबसाइट पर नजर आता था. इतना ही नहीं पार्टी ने चुनाव लड़ने के लिए भी आम लोगों से ही लैपटॉप से लेकर कुर्सी तक की मदद मांगी. गौर करिए कि 10 रुपये देने वाला भी इस पार्टी के साथ जुड़ाव महसूस करने लगा. लोगों को लगा कि जीतने के बाद भी ये ऐसी पारदर्शिता बरतेंगे.
6: कम्युनिकेशन में BJP-कांग्रेस से कहीं आगे
टीम केजरीवाल जानती थी कि राजनीति कर्म के साथ वचन का भी खेल है. उनका कम्युनिकेशन शानदार रहा. टीम में मनीष सिसौदिया और शाजिया इल्मी से पूर्व पत्रकार, योगेंद्र यादव सा राजनीतिक टिप्पणीकार और कुमार विश्वास सा जुमलेबाज मौजूद था. और इन सबके ऊपर थे विनीत दिखने वाले अरविंद केजरीवाल. रेडियो पर आते संदेश हों या ऑटो के पीछे पोस्टर, सब जगह टीम कम्युनिकेशन के मामले में अव्वल नजर आई. यहां तक कि स्टिंग ऑपरेशन सामने आने के बाद भी उनके नेता दुबके नहीं रहे, सामने आए और काउंटर अटैक किया.

7: पढ़ा-लिखा समझदार काडर
आम आदमी पार्टी ने चुनाव में सबसे ज्यादा सक्रिय रहने वाले युवाओं को अपने साथ जोड़ा. ये सब तरह के थे. निचले तबके के, गरीब, मध्य वर्ग के प्रफेशनल, महिलाएं. इस नए तैयार काडर के जरिए आम आदमी पार्टी ने घर-घर जाकर प्रचार का तरीका अपनाया और बड़ी रैलियों के बजाय नुक्कड़ सभा, सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर मैसेज सरीखे नए तरीके अपनाए. गांधी टोपी पहनकर ताली बजाते हुए आप कार्यकर्ता दिल्ली की संकरी गलियों तक भी प्रचार करने गए. कई युवा उम्मीदवारों को चुनाव में उतारना भी काम कर गया.
8: नरेंद्र मोदी के खुले विरोध से बचे
कांग्रेस से त्रस्त वोटरों में बहुत सारे ऐसे थे जो मूल रूप से बीजेपी समर्थक थे, लेकिन दिल्ली में AAP में उन्हें उम्मीद की किरण नजर आती थी. यानी 'देश में मोदी और दिल्ली में केजरीवाल' का नारा बुलंद करने वाले लोगों को साधने के लिए AAP ने बड़ी चालाकी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ ज्यादा बयानबाजी नहीं की. अरविंद से जितनी बार मोदी पर प्रतिक्रिया मांगी गई, उन्होंने बस इतना कहा कि मोदी दिल्ली में चुनाव नहीं लड़ रहे.

9: बिजली, पानी औऱ महंगाई के मुद्दे को एड्रेस किया
दिल्ली में यही तीन मूल मुद्दे थे. 80 रुपये किलो प्याज खा चुका वोटर कांग्रेस को वोट नहीं दे सकता था. लेकिन इन तीनों मुद्दों पर वायदे करने के मामले में आम आदमी पार्टी BJP से कहीं आगे रही. बीजेपी ने कहा कि वह बिजली बिल 30 फीसदी कम करेंगे, तो AAP ने कीमतें 50 फीसदी घटाने का वादा किया.
10: शीला दीक्षित के एंटी इंकमबैंसी का फायदा उठाया
15 साल से सत्ता में काबिज शीला दीक्षित के खिलाफ दिल्ली में जबरदस्त लहर थी. सामान्य परिस्थितियों में इसका फायदा बीजेपी को जाना चाहिए था. लेकिन आम आदमी पार्टी की रणनीति ने ऐसा नहीं होने दिया. शीला पर हमले करने के मामले में AAP बीजेपी से भी आगे रही. इसलिए एंटी इंकमबैंसी का फायदा बीजेपी के बजाय आम आदमी पार्टी को ज्यादा मिला.
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