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Mizoram Exit Poll: 6 दलों के गठबंधन से निकली पार्टी, पुराना चेहरा, नया नाम... ZPM ने कैसे रच दिया इतिहास?

मिजोरम की नई-नवेली पार्टी जेडपीएम एग्जिट पोल के नतीजों में इतिहास रचती नजर आ रही है. पांच साल पहले जो लालदुहोमा निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे, छह दलों के गठबंधन से निकली उनकी पार्टी मिजोरम में इतिहास रचती नजर आ रही है तो इसके पीछे क्या है?

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जेडपीएम प्रमुख लालदुहोमा (फाइल फोटो)
जेडपीएम प्रमुख लालदुहोमा (फाइल फोटो)

मिजोरम विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार 3 दिसंबर को खत्म होगा लेकिन उससे पहले एग्जिट पोल के अनुमान सामने आ गए हैं. एग्जिट पोल के अनुमानों में जोराम पीपुल्स मूवमेंट यानी जेडपीएम सरकार के जनादेश के संकेत हैं. इंडिया टुडे एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल में जेडपीएम को 49 फीसदी वोट के साथ 40 सदस्यों वाली मिजोरम विधानसभा में 28 से 35 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है. मिजोरम विधानसभा में बहुमत के लिए जादुई आंकड़ा 21 सदस्यों का है. एग्जिट पोल में जेडपीएम सरकार के संकेत के बाद पार्टी अब राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आ गई है.

जेडपीएम की चर्चा की वजह ये भी है कि महज पांच साल पुरानी पार्टी इतने कम समय में बड़ा करिश्मा कैसे कर गई, जैसा एग्जिट पोल के अनुमानों में नजर आ रहा है. 2018 के चुनाव में जेडपीएम को चुनाव आयोग से मान्यता नहीं मिली थी जिसकी वजह से पार्टी के प्रमुख और सीएम उम्मीदवार रहे लालदुहोमा को खुद भी निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतरना पड़ा था. अब मिजोरम की गद्दी तक ये नई-नवेली पार्टी पहुंचती नजर आ रही है तो इसकी वजहें क्या हैं?

पूर्वोत्तर की राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार जोसफ लेप्चा ने कहा कि जेडपीएम भले ही नया नाम लग रहा हो, पार्टी को चुनाव आयोग से पांच साल पहले ही मान्यता मिली हो लेकिन इसकी लीडरशिप मिजोरम की जनता के लिए नई नहीं है. लालदुहोमा मिजोरम की सियासत का पुराना नाम हैं. इंदिरा गांधी के समय से सियासत में सक्रिय हैं और कांग्रेस से लेकर जोरामथंगा तक, सूबे में एक्टिव हर दल की मजबूती-खामियां जानते हैं. लालदुहोमा ने जमीन पर काम किया और जोरामथंगा सरकार के खिलाफ लगातार मुखर रहकर माहौल बनाया, खुद को मजबूत विकल्प के रूप में पेश किया.

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लालदुहोमा की चर्चा हो ही गई है तो उनका पॉलिटिकल बैकग्राउंड की बात भी जरूरी है. 1977 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे लालदुहोमा इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते उनके सिक्योरिटी इंचार्ज भी रहे हैं. मिजोरम से उग्रवाद समाप्त कराने, शांति स्थापित कराने में भी लालदुहोमा की भूमिका की चर्चा होती है. लालदुहोमा भारतीय पुलिस सेवा से इस्तीफा देकर सियासत में आए थे और पहली बार कांग्रेस के टिकट पर 1984 में सांसद निर्वाचित हुए थे. लालदुहोमा ने साल 1988 में कांग्रेस छोड़ दी और वे दल-बदल अधिनियम के तहत संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने वाले पहले सदस्य बने.

छह पार्टियों के गठबंधन ने ले लिया राजनीतिक दल का रूप

लालदुहोमा ने जोराम नेशनलिस्ट पार्टी नाम से अपना दल बनाया और उसके बैनर तले सियासत में सक्रिय रहे. जेडएनपी ने पांच अन्य छोटे दलों को साथ लेकर जेडपीएम नाम से गठबंधन किया और यही गठबंधन आगे चलकर राजनीतिक पार्टी में तब्दील हो गया. पिछले चुनाव में लालदुहोमा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री लालथनहलवा को हराकर चर्चा में आए थे. लालदुहोमा तब जेडपीएम को चुनाव आयोग से मान्यता नहीं मिलने के कारण निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे. जेडपीएम को मान्यता मिली और लालदुहोमा पार्टी के अध्यक्ष बन गए. इसे आधार बनाकर उन्हें विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य ठहरा दिया गया और मिजोरम विधानसभा की सदस्यता गंवाने वाले पहले विधायक के रूप में भी उनका नाम दर्ज हो गया.

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जोसफ लेप्चा इसे ही लालदुहोमा की राजनीति के लिए संजीवनी बताते हैं. उन्होंने कहा कि लालदुहोमा न सिर्फ सेरछिप सीट से उपचुनाव में फिर विधानसभा पहुंचे, इसे बड़ा मुद्दा बनाने में भी उनकी पार्टी सफल रही. एक वजह पूर्वोत्तर की जनता का सियासी मिजाज भी है. यहां के लोगों को दिल्ली की सरकार के साथ रहना पसंद है लेकिन दिल्ली कंट्रोल्ड सरकार नहीं. पूर्वोत्तर के लोग बीजेपी और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों की जगह क्षेत्रीय दल को वरीयता देते हैं तो उसकी जड़ में केंद्र-राज्य में टकराव टालने की सोच भी होती है. क्षेत्रीय पार्टियां केंद्र में जिसकी सरकार बने, उसके साथ हो लेती हैं लेकिन बीजेपी-कांग्रेस में किसी एक को चुनें तो उसका केंद्र की विरोधी दल वाली सरकार के साथ जाना संभव नहीं.

काम आया मतदान से चार दिन पहले आया लालदुहोमा का बयान

एग्जिट पोल के अनुमान अगर नतीजों में तब्दील होते हैं तो उसके पीछे भी ये फैक्टर प्रभावी नजर आता है. जेडपीएम जोरामथंगा की सरकार को दिल्ली कंट्रोल्ड के तौर पर प्रचारित करने और खुद को विकल्प के रूप में पेश करने में सफल रही. मणिपुर मुद्दे को लेकर कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव पर जोरामथंगा की पार्टी का अपनी गठबंधन सहयोगी बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ वोट करना हो या ये बयान कि हम बीजेपी से डरते नहीं हैं, इसी इमेज को तोड़ने की कोशिश के तौर पर देखे गए.

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मिजोरम में सात नवंबर को मतदान होना था और उससे चार दिन पहले जेडपीएम प्रमुख लालदुहोमा का एक बयान आया था. लालदुहोमा ने ये साफ कहा था कि हम बीजेपी या कांग्रेस के साथ गठबंधन करने नहीं जा रहे हैं. हम स्वतंत्र क्षेत्रीय दल की अपनी पहचान के साथ कायम हैं और अपनी स्वतंत्रता बनाए रखेंगे. उन्होंने साथ ही ये भी जोड़ा था कि जेडपीएम की सरकार केंद्र के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध रखते हुए समर्थन या विरोध मुद्दों के आधार पर ही करेगी. वोटिंग से चार दिन पहले आया ये बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि तब कांग्रेस जोरामथंगा और लालदुहोमा की पार्टी को बीजेपी का एजेंट बताते हुए हमलावर थी.

चुनावी रणनीति पर लालदुहोमा के सियासी कौशल की छाप

परसेप्शन की लड़ाई में जेडपीएम फूंक-फूंक कर कदम रखती नजर आई ही, चुनाव रणनीति पर भी लालदुहोमा के सियासी कौशल की छाप साफ नजर आई. लालदुहोमा ने सितंबर महीने तक उम्मीदवारों के नाम तय कर उनसे तैयारियों में जुट जाने के लिए कह दिया था. एक तरफ पार्टी के उम्मीदवार जमीन पर तैयारी में जुटे थे तो दूसरी तरफ पार्टी वोटों का बिखराव रोकने के लिए रणनीतिक स्तर पर भी तैयारियों में जुटी नजर आई. जेडपीएम ने हमार पीपुल्स कन्वेंशन (एचपीसी) के साथ भी गठबंधन किया और साथ ही लोकप्रिय चेहरों को पार्टी से जोड़ने पर भी फोकस किया.

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लालदुहोमा की पार्टी ने भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व खिलाड़ी जेजे लालपेखलुआ को अपने साथ जोड़ा और कांग्रेस समेत दूसरे दलों के पुराने दिग्गजों को भी साथ लेने में गुरेज नहीं किया. मिजोरम कांग्रेस के दिग्गज नेता और सूबे की सरकार में मंत्री रह चुके केएस थंगा समेत दूसरे दलों के कई नेताओं ने चुनावी साल में जेडपीएम का दामन थाम लिया. पार्टी को इसका भी चुनाव में लाभ मिलता दिख रहा है. जेडपीएम की आइडियोलॉजी एंटी करप्शन, एंटी ड्रग्स स्मगलिंग की है और मिजोरम की जनता एग्जिट पोल के अनुमानों के मुताबिक लालदुहोमा की नीतियों पर भरोसा करती नजर आ रही है.

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