उत्तर प्रदेश में दलितों का गढ़ माने जाना वाला आगरा क्षेत्र लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी काफी अहम है. 2018 में देशभर में केन्द्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ दलितों की नाराजगी खुलकर सामने आई. SC/ST एक्ट को लेकर दलित केन्द्र सरकार से नाराज थे, जिसक लेकर देश में प्रदर्शन हुआ. उत्तर प्रदेश की 80 सीटें चुनाव के लिहाज से अहम है, ऐसे में दलित वोटों को देखते हुए आगरा अहम हिस्सा है, आगरा आरक्षित सीट है. ये सीट अभी भारतीय जनता पार्टी के रामशंकर कठेरिया के पास है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव प्रचार भी आगरा से ही शुरू कर रहे हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अपने प्रचार की शुरुआत यहां से ही की.
आगरा लोकसभा सीट का इतिहास
एक समय में आगरा लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी, लेकिन पिछले करीब दो दशकों में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी या समाजवादी पार्टी ही जीत पाई है. 1952 से लेकर 1971 तक यहां से कांग्रेस ने जीत दर्ज की. जबकि इमरजेंसी के बाद देश में कांग्रेस विरोधी लहर में चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय लोक दल ने यहां पर जीत दर्ज की.
हालांकि, उसके बाद हुए लगातार दो चुनाव 1980, 1984 में फिर यहां पर कांग्रेस ही जीती. लेकिन उसके बाद कांग्रेस दोबारा इस सीट पर वापसी नहीं कर पाई. 1989 में जनता दल ने इस सीट पर कब्जा किया. उसके बाद देश में हुए लगातार तीन लोकसभा चुनाव 1991, 1996 और 1998 में भारतीय जनता पार्टी यहां से जीती.
1999 और 2004 में समाजवादी पार्टी की ओर से बॉलीवुड अभिनेता राज बब्बर ने यहां पर चुनाव जीता. अब राज बब्बर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं. 2009 और 2004 में भारतीय जनता पार्टी के रामशंकर कठेरिया यहां से बड़े अंतर से जीते.
आगरा लोकसभा सीट का समीकरण
आगरा दलित और मुस्लिम वोटरों का गढ़ माना जाता है. यहां करीब 37 फीसदी वोटर दलित और मुस्लिम ही हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां 18 लाख से अधिक वोटर थे, जिसमें 10 लाख पुरुष और 8 लाख महिला वोटर शामिल हैं. 2014 में यहां कुल 59 फीसदी मतदान हुआ था, इनमें 5161 वोट NOTA में गए थे.
आगरा लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें एतमादपुर, आगरा छावनी, आगरा दक्षिण, आगरा उत्तर और जलेसर शामिल हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी.
इस बार आगरा क्यों अहम?
आगरा लोकसभा चुनाव से इस बार काफी अहम माना जा रहा है. बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने लोकसभा चुनाव अभियान की शुरुआत एटा से की, राजनीतिक हल्कों में ऐसा भी कहा जा रहा है कि मायावती इसी सीट से लोकसभा चुनाव भी लड़ सकती हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने मिशन उत्तर प्रदेश की शुरुआत यहां से कर रहे हैं.
इसके अलावा आगरा में ही 10वीं क्लास में पढ़ने वाली दलित लड़की की जिंदा जलाकर हत्या कर दी गई थी, जिसके कारण राजनीतिक माहौल काफी गर्माया था. ये मुद्दा चुनाव में भी काफी अहम हो सकता है.
2014 में चला भारतीय जनता पार्टी का जादू
2014 में भारतीय जनता पार्टी के रामशंकर कठेरिया ने प्रचंड जीत हासिल की थी. रामशंकर कठेरिया को यहां करीब 55 फीसदी वोट मिले थे, जबकि उनके सामने बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार को सिर्फ 26 फीसदी वोट मिले थे. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के सामने पिछले प्रदर्शन को दोहराना एक चुनौती होगा, वो भी तब जब देशभर में दलित उनसे नाराज चल रहे हैं.
2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे
रामशंकर कठेरिया, भारतीय जनता पार्टी, कुल वोट मिले 583716, 54.5 फीसदी
नारायण सिंह सुमन, बहुजन समाज पार्टी, कुल वोट मिले 283453, 26.5 फीसदी
महाराज सिंह ढांगर, समाजवादी पार्टी, कुल वोट मिले 134708, 12.6 फीसदी
सांसद रामशंकर कठेरिया का प्रोफाइल
स्थानीय सांसद रामशंकर कठेरिया अपने बयानों के कारण हमेशा चर्चा में रहते हैं. वह इस समय अनुसूचित जाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं. केंद्र सरकार में जिस दौरान रामशंकर कठेरिया मानव संसाधन मंत्रालय में राज्य मंत्री थे, तब उनके ऊपर फर्जी डिग्री का आरोप लगा था. रामशंकर कठेरिया की ग्रेजुएशन डिग्री में मार्क्स में गड़बड़ी पाई गई थी. हालांकि, विवाद के बाद हुए कैबिनेट विस्तार में उन्हें हटा दिया गया था.

कठेरिया आगरा लोकसभा सीट से लगातार दो बार चुनाव जीत चुके हैं. राजनेता होने के अलावा रामशंकर कठेरिया एक लेखक भी हैं, उन्होंने समाज से जुड़े कई मसलों पर कुछ किताबें भी लिखी हैं.
रामशंकर कठेरिया लगातार दो बार आगरा से सांसद चुने गए हैं. 16वीं लोकसभा में उन्होंने कुल 32 बहस में हिस्सा लिया, इस दौरान उन्होंने 31 सवाल पूछे. सरकार की ओर से उन्होंने दो बिल पेश किए. अनुसूचित जाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के अलावा कठेरिया संसद की कमेटियों के सदस्य भी हैं. सांसद निधि के तहत मिलने वाले 25 करोड़ रुपये के फंड में से उन्होंने कुल 97.65 फीसदी रकम खर्च की.