मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) सुनील अरोड़ा सोमवार को जम्मू कश्मीर के दो दिन के दौरे पर हैं. वे लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की जमीनी स्थिति का जायजा लेंगे. सूत्रों ने बताया कि सीईसी की अगुवाई में चुनाव आयोग का एक दल अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव की तैयारियों का भी जायजा लेगा.
चुनाव आयोग की टीम नई दिल्ली से श्रीनगर पहुंच गई है. लोकसभा चुनाव की तैयारियों का जायजा लेने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा की अगुआई में पहुंची टीम अलग अलग राजनीतिक दलों, आला सुरक्षा और प्रशासनिक अधिकारियों से मुलाकात करेगी. टीम में तीन सदस्य हैं जिनसे 10 पार्टियों के नेता मुलाकात करेंगे. इनमें 7 राष्ट्रीय और 3 स्थानीय पार्टियों के नेता होंगे.
चुनाव आयोग की टीम चार मार्च को श्रीनगर में और पांच मार्च को जम्मू में सरकारी अधिकारियों और राजनीतिक दलों के नुमाइंदों के साथ बैठकें भी करेगी. सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है कि विधानसभा भंग होने के बाद नया चुनाव छह महीने के अंदर कराया जाना चाहिए. जम्मू कश्मीर के मामले में यह समय सीमा मई, 2019 में खत्म हो रही है.
राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने नवंबर, 2018 में विधानसभा भंग कर दी थी. उससे पहले पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने अपने विरोधी उमर अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) और कांग्रेस के समर्थन से राज्य में सरकार बनाने का दावा किया था. महबूबा ने 87 सदस्यीय विधानसभा में 56 विधायकों के समर्थन का दावा किया था.
Election Commission to review poll preparedness in Jammu & Kashmir on 4th & 5th March ahead of Lok Sabha elections; EC to meet police, district administration & political parties during their visit to the state. pic.twitter.com/4Q4gYfwv6J
— ANI (@ANI) March 4, 2019
उसके ठीक बाद पीपुल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद लोन ने भी सरकार बनाने का दावा किया था. सज्जाद की पार्टी के दो विधायक थे और उन्होंने बीजेपी के 25 विधायकों और 18 से अधिक अन्य विधायकों का समर्थन होने का दावा किया था. जम्मू कश्मीर में दिसंबर 2018 से राष्ट्रपति शासन लगा है. उससे पहले वह छह महीने तक राज्यपाल शासन में था.
28 दिसंबर को लोकसभा में हंगामे के बीच जम्मू एवं कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की घोषणा को मंजूरी दी गईय विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध किया और इसे 'असंवैधानिक' बताया. केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिह की ओर से पेश किए गए प्रस्ताव के पारित होने के बाद, सुमित्रा महाजन ने कहा कि हालांकि यह पारित हो गया है और मंजूर किया जा चुका है, फिर भी वह एक 'विशेष मामले' में इसपर बहस की इजाजत दे रही हैं. चर्चा की शुरुआत करते हुए, कांग्रेस नेता शशि थरूर ने प्रस्ताव का विरोध किया था और कहा कि राज्य विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने का मौका दिए बगैर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया.