उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी को प्रचंड बहुमत मिली तो किसी को नहीं पता था कि बीजेपी आलाकमान गोरखपुर के फायरब्रांड सांसद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी के नवाजेगा. जानकारों की मानें तो योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे बीजेपी की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा थी. देश की सियासत में आम अवधारणा है कि यूपी का मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री पद का दावेदार मान लिया जाता है, मसलन उसकी छवि एक राष्ट्रीय नेता तौर पर होने लगती है. लिहाजा, बीजेपी स्टार प्रचारक के तौर पर योगी आदित्यनाथ का इस्तेमाल देश भर में हिंदू वोटबैंक के ध्रुविकरण के लिए करना चाहती है.
योगी आदित्यनाथ का भगवा वेश और संन्यासी की छवि बीजेपी के हिदुत्व के ब्रांड को सूट करता है. इसके अलावा उनके तीखे भाषण हिंदू ध्रुवीकरण की धार और पैनी करती है. मुख्यमंत्री बनने के साथ ही योगी आदित्यनाथ ने अपनी इस छवि को और मजबूत करने के लिए काम शुरू कर दिया, फिर चाहे गोरक्षा को लेकर उनके फैसले हों या अवैध बूचड़खानों को बंद करने का फैसला. इसके अलावा रोजाना अखबारों और टेलीविजन पर योगी आदित्यनाथ की मंदिर में पूजा और गाय को गुड़ खिलाने की तस्वीरें दिखने लगी. यह सब हो तो यूपी में रहा था, लेकिन इसका प्रभाव पूरे देश में पड़ रहा था.
स्टार प्रचारक के तौर पर योगी आदित्यनाथ का पहला प्रयोग फरवरी 2018, में लेफ्ट के गढ़ त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में हुआ. जब योगी ने 60 सदस्यीय त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में आधा दर्जन के ज्यादा रैलियां और रोड शो किए. नतीजा यह हुआ कि जिन 7 सीटों पर योगी आदित्यनाथ ने प्रचार किया बीजेपी को उसमें से 5 सीटों पर जीत दर्ज करने के साथ लेफ्ट का किला ढहा दिया.
त्रिपुरा में लेफ्ट के वर्चस्व के खात्मे के बाद योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता में जबरदस्त उछाल देखा गया. तमाम राज्यों से प्रचार के लिए पार्टी आलाकमान से योगी आदित्यनाथ को भेजने की मांग बढ़ने लगी. योगी आदित्यनाथ की बढ़ रही प्रासंगिकता को देखते हुए बीजेपी ने साल 2018 के आखिर में 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में उनका बखूबी इस्तेमाल किया. आंकड़ों के मुताबिक योगी आदित्यनाथ ने इन राज्यों में 74 जनसभाएं की. जिसमें योगी आदित्यनाथ ने सबसे ज्यादा राजस्थान में 26, छत्तीसगढ़ में 23, मध्य प्रदेश में 17 और तेलंगाना 8 सभाएं की.
योगी आदित्यनाथ को प्रचार के लिए उन सीटों पर भेजा गया जहां हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता था. छत्तीसगढ़ में योगी आदित्यनाथ ने आदिवासियों के ईसाई धर्म परिवर्तन को कांग्रेस नेतृत्व से जोड़ा, तो वहीं मध्य प्रदेश में योगी ने कांग्रेस की तरफ इशारा करते हुए कहा कि आपको अली मुबारक हमारे लिए बजरंग बली ही काफी हैं. राजस्थान में बीजेपी ने रणनीति के तहत योगी आदित्यनाथ का इस्तेमाल उन सीटों पर किया जहां से कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में थे. जबकि तेलंगाना में असदुद्दीन ओवैसी के गढ़ हैदराबाद में योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सरकार बनने पर हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर किया जाएगा और ओवैसी बंधु वैसे ही हैदराबाद छोड़कर भागेंगे जैसे वहां के निजाम भागे थे.
हालांकि इन विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कुछ खास सफलता हासिल नहीं हुई. 15 साल से चल रही मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सत्ता हाथ से चली गई. तो वहीं राजस्थान में भी बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी. लेकिन इन सबके बीच योगी आदित्यनाथ का ब्रांड बरकरार रहा. पिछले दिनों योगी आदित्यनाथ की पश्चिम बंगाल यात्रा काफी चर्चा में रही जब मुख्यमंत्री ममता ने उनके हेलीकॉप्टर को उतरने की इजाजत नहीं दी तो योगी सड़क मार्ग से ही जनसभा करने पहुंच गए.
अब देश लोकसभा चुनाव के देहरी पर खड़ा है. ऐसे में बेरोजगारी, कृषि और आर्थिक वृद्धि जैसे तमाम मुद्दे हैं जो बीजेपी के सामने मुश्किल खड़ी कर सकते हैं. लिहाजा हिंदू राष्ट्रवाद के नाम पर वोटों के ध्रुविकरण के लिए बीजेपी को एक बार फिर अपने फायरब्रांड स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ की जरूरत पड़ सकती है.