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पहले लोकसभा चुनाव में अमित शाह की बंपर वोटों से जीत, कांग्रेस की हालत देख हार्दिक पटेल भौचक्के

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पार्टी के पुरोधा लालकृष्ण आडवाणी की बहुचर्चित सीट गांधीनगर से उतरे और साढ़े 5 लाख से ज्यादा वोटों के रिकॉर्ड मार्जिन से जीते.  ये पहला चुनाव है जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य की किसी सीट से उम्मीदवार नहीं हैं. हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के चलते पार्टी कार्यकर्ता नतीजों को लेकर थोड़ा घबराए हुए थे, लेकिन अंतिम आंकड़े देखकर सभी ने राहत की सांस ली.

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लोकसभा चुनाव में जीत के बाद कार्यकर्ताओं का अभिवादन करते अमित शाह (फोटो-ट्विटर)
लोकसभा चुनाव में जीत के बाद कार्यकर्ताओं का अभिवादन करते अमित शाह (फोटो-ट्विटर)

गुजरात के चुनावी इतिहास में ये पहली बार है जब राज्य की सभी 26 सीटों पर किसी पार्टी ने दोबारा कब्जा कर लिया. ये कारनामा बीजेपी ने कर दिखाया, इससे पहले कभी किसी पार्टी व्यक्ति या विचारधारा को लंबे वक्त तक इस तरह का समर्थन नहीं मिला.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पार्टी के पुरोधा लालकृष्ण आडवाणी की बहुचर्चित सीट गांधीनगर से उतरे और इस सीट को साढ़े 5 लाख से ज्यादा वोटों के रिकॉर्ड मार्जिन से जीता. ये पहला चुनाव है जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य की किसी सीट से उम्मीदवार नहीं हैं.

हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के चलते पार्टी कार्यकर्ता नतीजों को लेकर थोड़ा घबराये हुए थे लेकिन अंतिम आंकड़े देखकर सभी ने राहत की सांस ली. ज्यादातर कार्यकर्ता मानते है कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद पर दोबारा लाने के लिए एक अंदरुनी लहर तो थी लेकिन सभी सीटें जीतने के लिए वो आश्वस्त नहीं थे.

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मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने इस जीत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समर्पित किया है, उन्होंने ट्वीट किया, "लोगों को मोदी जी पर पूरा भरोसा है वो जानते हैं कि उनका बेटा ही केंद्र की सरकार चला सकता है और कोई दूसरा विकल्प नहीं है."

उधर हार के बाद कांग्रेस के नेता हार्दिक पटेल हैरान हैं. एक ट्वीट के जरिए उन्होंने एक वीडियो मैसेज साझा किया और कहा कि ये हार देश के किसानों और बेरोजगारों की हार है. दार्शनिक अंदाज में उन्होंने कहा कि हार और जीत जीवन का हिस्सा है और एक आजादी भारतीय की तरह वो मजलूमों और गरीबों की आवाज उठाते रहेंगे.

बीजेपी 1998 से गुजरात में सत्ता में है. मोदी 13 साल तक राज्य के सीएम थे, अब जब बीजेपी ने एक बार फिर कांग्रेस को शून्य के आंकड़े पर लाकर खड़ा किया है.

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गुजरात में कोई क्षेत्रीय दल मजबूत नहीं है. एनसीपी हर बार चुनाव से पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन करती है लेकिन उनका कोई खास प्रभाव नहीं है और वो सिर्फ 3 या 4 सीटें ही जीत पाती है. एनसीपी की पहुंच राज्य के बेहद छोटे इलाके तक ही है. जेडीयू से टूटकर मध्य गुजरात के प्रभावशाली नेता छोटू वसावा ने भारतीय ट्राइबल पार्टी नाम से एक दल बनाया, इसने राजस्थान और गुजरात में दो दो विधानसभा सीटें जीतीं. 2019 में बीटीपी ने कुल 9 कैंडिडेट उतारे, 2 छत्तीसगढ़ में और 7 गुजरात में. लेकिन किसी को जीत नसीब नहीं हुई.

इस बार गुजरात में विपक्ष के नेता परेश धनानी मैदान में थे. माना जा रहा था कि वो सौराष्ट्र की अमरेली सीट पर जीत दर्ज करेंगे, जहां किसानों को काफी नुकसान झेलना पड़ा था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और वो चुनाव हार गए. वहीं गुजरात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष भरत सिंह सोलंकी भी आणंद से चुनाव नहीं जीत पाए.

ये नतीजे इस ओर इशारे करते हैं कि कांग्रेस को अब गुजरात में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी होगी. पार्टी के सामने अभी सबसे बड़ी चुनौती अपने जमीनी कार्यकर्ताओं का हौसला बुलंद करना होगा, क्योंकि कुछ ही दिनों में निकाय चुनाव होने वाले हैं.

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