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JDS के सामने अस्तित्व का संकट, 2014 में छिटके वोट को वापस लाने की चुनौती

जेडीएस कर्नाटक की सियासत में किंगमेकर का सपना संजोए बसपा और एनसीपी से गठबंधन कर मैदान में उतरी है. असदुद्दीन औवैसी ने भी अपनी पार्टी का समर्थन उसे दे रखा है.

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एचडी कुमारस्वामी और एचडी देवगौड़ा
एचडी कुमारस्वामी और एचडी देवगौड़ा

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने अस्तित्व को बचाने की है. जेडीएस कर्नाटक की सियासत में किंगमेकर का सपना संजोए बसपा और एनसीपी से गठबंधन कर मैदान में उतरी है. असदुद्दीन औवैसी ने भी अपनी पार्टी का समर्थन उसे दे रखा है. सवाल उठता है कि 2014 में छिटके अपने वोटबैंक को जेडीएस वापस लाने में कहां तक सफल हो पाएगी?

कर्नाटक की सियासत में 90 के दशक में देवगौड़ा की तूती बोलती थी. देवगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल ने 1994 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी. वे दो साल तक मुख्यमंत्री रहे और 1996 में तीसरे मोर्चे की सरकार बनी तो वे प्रधानमंत्री बने. इसके बाद जनता दल टूटा तो उन्होंने जनता दल (सेक्युलर) नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली.

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मौजूदा समय में जेडीएस की कमान उनके पुत्र एचडी कुमारस्वामी के हाथों में है. कुमारस्वामी पहले कांग्रेस के साथ फिर बीजेपी के साथ राज्य में सरकार बना चुके हैं. 2006 में वे बीजेपी के सहयोग से मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन ये साथ बहुत दिन तक नहीं चल सका. महज एक साल बाद बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया तो जेडीएस सरकार गिर गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा. इसके बाद 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में जेडीएस को बड़ा झटका लगा, जब बीजेपी पहली बार कर्नाटक में कमल खिलाने में सफल रही.

2013 के विधानसभा चुनाव में जेडीएस बीजेपी से बड़ी ताकत बनकर उभरी थी. येदियुरप्पा का बीजेपी से बगावत का फायदा जेडीएस को मिला मगर बहुमत से पार्टी दूर रही. सिद्धारमैया के नेतृत्व में कांग्रेस पूर्ण-बहुमत के साथ सत्ता में वापस आ गई. कांग्रेस के बाद दूसरी बड़ी ताकत के रूप में जेडीएस ने अपनी जगह बनाई.

राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से जेडीएस ने 40 सीटें जीती थीं. 2008 के चुनाव की तुलना में ये 12 सीटें ज्यादा थीं. जबकि बीजेपी को भी 40 सीटें मिली थीं. हालांकि बीजेपी को 2008 की तुलना में 72 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. वोटर शेयर के मामले में जेडीएस बीजेपी से आगे रही. जेडीएस को 20.2 फीसदी वोट मिले. तो बीजेपी को 19.9 फीसदी.

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव के एक साल के बाद ही 2014 में लोकसभा चुनाव हुए तो जेडीएस का बुरी तरह से सफाया हो गया. मोदी लहर में कांग्रेस जहां अपना वोटबैंक बचाने में सफल रही तो वहीं जेडीएस का वोटबैंक बीजेपी में शिफ्ट हो गया. बीजेपी ने 43 फीसदी वोट शेयर के साथ 17 लोकसभा सीटें जीती थीं. कांग्रेस 40.80 फीसदी वोट के साथ 9 संसदीय सीटें जीत सकी. जबकि जेडीएस को महज 11 फीसदी वोट और 2 सीटें मिलीं. इस तरह विधानसभा चुनाव के लिहाज से देखें तो जेडीएस को करीब 9 फीसदी वोट का नुकसान उठाना पड़ा था.

जेडीएस की पहुंच मुस्लिमों, पिछड़ों, वोकालिगा और दलितों के बीच खासी कम हुई है. यही वजह है कि  जेडीएस को कर्नाटक के किसी एक क्षेत्र में नहीं बल्कि सभी इलाकों में नुकसान उठना पड़ा है. दक्षिण कर्नाटक  जेडीएस का मजबूत दुर्ग माना जाता है. लेकिन लोकसभा चुनाव में जेडीएस को अपने किले में भी काफी बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था. 2013 के विधानसभा चुनाव दक्षिण कर्नाटक क्षेत्र की करीब 25 सीटों पर जेडीएस ने जीत दर्ज की थी. जबकि 2014 के चुनाव में 15 विधानसभा सीटों पर ही पार्टी आगे थी. इस तरह से एक साल में 10 विधानसभा सीटों पर पार्टी पीछे रह गई.

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जेडीएस ने अपने अस्तित्व को बचाने के लिए एनसीपी और बसपा से गठबंधन किया है. बसपा के लिए 20 और एनसपी के लिए 7 विधानसभा सीटें उसने छोड़ी हैं. जबकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने भी उन्हें कर्नाटक में समर्थन दे रखा है.

वोकालिगा समुदाय जेडीएस का मूल वोटबैंक माना जाता है. इसके अलावा राज्य में सबसे बड़े वोटबैंक दलित समुदाय को साधने के लिए बसपा से उसे समर्थन मिला है. 16 फीसदी मुस्लिमों पर भी पार्टी की नजर है. गठबंधन होने की सूरत में इन समुदायों के वोटों का बंटवारा होगा, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा. शायद यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी देवगौड़ा पर बीजेपी की सहायक की भूमिका निभाने का आरोप लगा रहे हैं. वो कहते हैं-बीजेपी की जीत के लिए जेडीएस पूरे समर्पण के साथ जुटी है.

कांग्रेस लगातार जेडीएस पर बीजेपी की बी टीम की तरह काम करने का आरोप लगा रही है.. कांग्रेस ये संदेश भेजकर मुस्लिमों के एकमुश्त वोट पाना चाहती है. कांग्रेस इस मुहिम में कामयाब होती भी दिख रही है. यही वजह है कि मुस्लिम संगठन जेडीएस की भूमिका को संदेह की नजर से देख रहे हैं. जमात-ए-इस्लामी हिंद के महासचिव सलीम इंजीनियर ने कहा कि सांप्रदायिक पार्टी को सत्ता में आने से रोकना पहला लक्ष्य है. जेडीएस की भूमिका संदेह के घेरे में है.

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कुमारस्वामी अपने पिता की विरासत की सियासत पर दावा करते रहे हैं. वो राज्य की राजनीति में किंगमेकर बनने के लिए ओल्ड मैसूर इलाके में पूरी ताकत लगा रहे हैं. जेडीएस मानकर चल रही है कि उसके हाथों में सत्ता की चाबी होगी. अपनी इस राजनीतिक आकांक्षा को पूरा करने के लिए वो 30 से 40 सीटें जीतने के लिए ही पूरा जोर लगा रही है, ताकि अपने सियासी प्लान पर अमल कर सके.

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