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झारखंड चुनाव: AJSU से अलग होकर बीजेपी के लिए बढ़ी चुनौती

भारतीय राजनीति का ये नया दौर है जहां लगभग हर तरह की स्थापित धारणाएं टूट रही हैं. यहां पर न सिर्फ राष्ट्रीय राजनीति का परिदृश्य बदला है बल्कि राज्य स्तर की राजनीति भी नये पैटर्न पर चल रही है. कुछ साल पहले तक बीजेपी ज्यादातर राज्यों में सत्ताधारी दलों को मुख्य रूप से चुनौती देती थी, लेकिन अब वो इन राज्यों में मुख्य पार्टी बन गई है. इन राज्यों में बीजेपी में एक नई चुनौती का सामना कर रही है और बीजेपी को ये चुनौती उनकी सहयोगी पार्टियां ही दे रही हैं.

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झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास (फोटो-PTI/TWITTER)
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास (फोटो-PTI/TWITTER)

  • AJSU से अलग होने के बाद बीजेपी के लिए चुनौती
  • नुकसान पाटने के लिए बीजेपी को करनी होगी मेहनत
  • सुदेश महतो की पार्टी का राज्य में अच्छा जनाधार

भारतीय राजनीति का ये नया दौर है जहां लगभग हर तरह की स्थापित धारणाएं टूट रही हैं. यहां पर न सिर्फ राष्ट्रीय राजनीति का परिदृश्य बदला है बल्कि राज्य स्तर की राजनीति भी नये पैटर्न पर चल रही है. कुछ साल पहले तक बीजेपी ज्यादातर राज्यों में सत्ताधारी दलों को मुख्य रूप से चुनौती देती थी, लेकिन अब वो इन राज्यों में मुख्य पार्टी बन गई है. इन राज्यों में बीजेपी भी एक नई चुनौती का सामना कर रही है और उसे ये चुनौती सहयोगी पार्टियां ही दे रही हैं.

जब महाराष्ट्र में शिवसेना ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया तो इसके झटके झारखंड में भी महसूस किए गए. चुनाव से ठीक पहले झारखंड में बीजेपी की सहयोगी रही ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (AJSU) ने उससे नाता तोड़ लिया. 19 साल पहले जब बिहार से अलग होकर झारखंड का निर्माण हुआ तो दो चीजें यहां की राजनीति में बेहद अहम रहीं. पहली, यहां पर अबतक किसी भी पार्टी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है. दूसरा, निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्य के एक मात्र ऐसे सीएम हैं जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया है. बीजेपी ने 2014 में AJSU के सहयोग से बहुमत का आंकड़ा हासिल किया था.

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ऐसे में अब जब कि झारखंड में बीजेपी-आजसू का गठबंधन टूट चुका है, तो 'अबकी बार-65 पार' का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी की राजनीति पर इसका कितना असर होगा, ये भी काफी अहम है.

देश बनाम राज्य का चुनाव

बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन के आधार पर विधानसभा में 65 का लक्ष्य पर तय किया है. इस चुनाव में बीजेपी-AJSU ने राज्य में 14 में 12 सीटें जीती थीं और 56 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. इस चुनाव में सिर्फ बीजेपी को ही 52 प्रतिशत वोट मिले थे. अगर लोकसभा चुनाव में बीजेपी-आजसू के इस प्रदर्शन को विधानसभा सीटों के हिसाब से देखें तो निष्कर्ष निकलता है कि बीजेपी और आजसू 63 विधानसभा सीटों पर आगे है जबकि कांग्रेस, जेएमएम, जेवीएम और आरजेडी 18 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है.

हाल ही में हुए हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी को वोटों का नुकसान झेलना पड़ा है. हरियाणा में बीजेपी को 22 प्रतिशत वोटों की हानि हुई है, जबकि महाराष्ट्र में उसे 9 फीसद वोटों का नुकसान हुआ है.

बीजेपी पर आजसू का असर

अगर हम पिछले तीन विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो पाते हैं कि झारखंड की 81 सीटों में से 26 ऐसी सीटें हैं जहां AJSU को वोट मिलता रहा है. हालांकि, यह वोट शेयर बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं है. ये 26 सीटें ऐसी हैं जहां पिछले तीन चुनावों में आजसू को औसतन 5 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं.

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2009 में AJSU 40 सीटों पर चुनाव लड़ी और 5 फीसदी वोट हासिल किए, लेकिन सुदेश महतो की ये पार्टी 5 सीटें जीतने में कामयाब रही. जिन 26 सीटों की चर्चा हमने ऊपर की है वहां आजसू का वोट शेयर 2009 में 14 प्रतिशत रहा और इस पार्टी ने 5 सीटें जीतीं. ये इलाके ज्यादातर छोटानागपुर क्षेत्र के आदिवासी इलाके हैं. इनमें सिंहभूम, रांची, रामगढ़, पलामू, बोकारो जिले आते हैं. ये इलाके नक्सल प्रभावित भी रहे हैं.

बीजेपी इस इलाके में थोड़ी कमजोर रही है. 2009 में इस इलाके में बीजेपी को सिर्फ 17 फीसदी वोट मिले, लेकिन आजसू से गठबंधन की वजह से उसका वोट शेयर बढ़कर 23 प्रतिशत हो गया. आजसू और बीजेपी का वोट शेयर कुल मिलाकर 35 फीसदी हो गया.

नया परिदृश्य

झारखंड में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी ने गठबंधन की घोषणा कर दी है. पिछले चुनाव में ये सभी पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थीं. इस बार अगर AJSU अपना वोट बैंक बरकरार रखने में कामयाब रहती है तो बीजेपी को इससे नुकसान हो सकता है. इस बार आजसू से गठबंधन टूटने की वजह से बीजेपी और जेएमएम-कांग्रेस के बीच वोटों का अंतर मात्र 14 प्रतिशत रह जाएगा और इसकी वजह से बीजेपी को कुछ सीटों का नुकसान हो सकता है. capture-2222_111819104642.jpg

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राज्यों में विस्तार, बीजेपी की नई रणनीति

राष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्व बढ़ाने के बाद बीजेपी की योजना राज्यों में पार्टी को मजबूत करने की है. इसी वजह से बीजेपी झारखंड में अपने सहयोगी AJSU को ज्यादा सीटें नहीं देना चाह रही है. अगर जोन-2 की बात करें (55 सीटें) तो इस इलाके में बीजेपी की पकड़ मजबूत है. यहां पर दूसरी पार्टियां 2014 के प्रदर्शन को कायम रखती हैं तो भी बीजेपी कांग्रेस और झामुमो को संयुक्त रुप से मिले वोटों से 8 प्रतिशत आगे रहेगी.

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हालांकि, हाल के चुनाव के नतीजे दिखाते हैं कि बीजेपी लोकसभा के इलेक्शन में जितनी मजबूत थी उतनी मजबूत विधानसभा के चुनाव में नहीं रही है. झारखंड एक ऐसा राज्य है जहां की 28 फीसदी आबादी आदिवासी है, और यहां पर जेएमएम, जेवीएम और आजसू का आदिवासी वोटों पर अच्छा खासा प्रभुत्व है. ऐसे हालात में एक ऐसे साझीदार का बीजेपी द्वारा साथ छोड़ना जिसका इन वोटों पर अच्छी पकड़ है बीजेपी के लिए हानिकारक साबित हो सकता है.

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