
साल 2019 में बिहार की 5 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे. इसमें से एक सीवान जिले की दरौंदा विधानसभा सीट थी. इस सीट पर बीजेपी से बागी हुए करनजीत उर्फ व्यास सिंह ने निर्दलीय जीत हासिल की थी. हालांकि, अब व्यास सिंह एक बार फिर बीजेपी में हैं और इस बार पार्टी ने दरौंदा विधानसभा से उन्हें टिकट दिया है. लेकिन बीजेपी के इस फैसले से एनडीए नेताओं में जबरदस्त नाराजगी है. नाराजगी का आलम ये है कि बीजेपी और जेडीयू के स्थानीय नेताओं ने एक निर्दलीय उम्मीदवार रोहित कुमार अनुराग के समर्थन का ऐलान कर दिया है.
कौन-कौन कर रहा विरोध
दरअसल, बीजेपी उम्मीदवार करनजीत उर्फ व्यास सिंह का विरोध करने वालों में सबसे बड़ा नाम जेडीयू नेता अजय सिंह का है. अजय सिंह सीवान जेडीयू के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं. वहीं, उनकी पत्नी कविता सिंह सीवान जिले की सांसद भी हैं. बीजेपी उम्मीदवार का विरोध करने वालों में अजय सिंह के अलावा जीतेंद्र स्वामी भी हैं. जीतेंद्र स्वामी सीवान बीजेपी के कद्दावर नेता माने जाते हैं. उन्होंने खुले तौर पर करनजीत उर्फ व्यास सिंह के विरोध का ऐलान किया है. ये दोनों नेता निर्दलीय उम्मीदवार रोहित कुमार अनुराग के समर्थन में वोट मांग रहे हैं. आपको यहां बता दें कि दरौंदा की सियासत में भले ही रोहित कुमार अनुराग नया नाम हो लेकिन जीतेंद्र स्वामी उनके भाई हैं. जीतेंद्र स्वामी के पिता उमाशंकर सिंह महाराजगंज के पूर्व सांसद थे. वह पांच बार विधायक और सांसद रहे.

क्यों कर रहे विरोध
बीजेपी उम्मीदवार करनजीत उर्फ व्यास सिंह के विरोध की वजह जानने के लिए थोड़ा फ्लैशबैक में जाना होगा. दरअसल, बीते साल के दरौंदा विधानसभा पर हुए उपचुनाव में ये सीट जेडीयू के खाते में गई थी और पार्टी ने अजय सिंह को टिकट दिया था. अजय सिंह को जब टिकट मिला तो बीजेपी नेता करनजीत उर्फ व्यास सिंह बागी बन गए. असल में व्यास सिंह इस सीट से टिकट चाहते थे लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. इसके बाद करनजीत सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. ऐसे में बीजेपी ने उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. व्यास सिंह के निर्दलीय चुनाव लड़ने की वजह से जेडीयू उम्मीदवार अजय सिंह को हार मिली. स्थानीय स्तर पर बीजेपी और जेडीयू नेताओं का मानना है कि दरौंदा सीट पर अजय सिंह की हार की वजह करनजीत उर्फ व्यास सिंह हैं.

महागठबंधन से कौन?
अगर महागठबंधन की बात करें तो ये सीट माले के खाते में गई है. इस सीट से माले ने अमरनाथ यादव को टिकट दिया है. अमरनाथ यादव सीवान में माले के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं. वह अलग-अलग विधानसभा से विधायक रह चुके हैं. जबकि लोकसभा चुनाव में भी किस्मत आजमा चुके हैं. इसके अलावा पप्पू यादव के जनअधिकार पार्टी से शैलेंद्र यादव भी चुनाव के मैदान में हैं. शैलैंद्र कुमार यादव के पिता शिवप्रसन्न यादव बिहार विधान परिषद् में जेडीयू के सदस्य रह चुके हैं.
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क्यों हुआ था उपचुनाव
2015 विधानसभा चुनाव में भी इस सीट से जेडीयू की उम्मीदवार कविता सिंह को जीत मिली थी. लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में कविता सिंह जेडीयू के टिकट पर मैदान में उतरीं. यहां भी उन्होंने जीत हासिल की. इसके बाद कविता सिंह ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. इसी वजह से यह सीट खाली हुई और पिछले साल उपचुनाव हुआ औरव्यास सिंह को निर्दलीय जीत मिली.
अतीत खुद को दोहरा रहा!
अब बीजेपी और जेडीयू के नाराज नेता ठीक वही कर रहे हैं जो पिछले साल करनजीत उर्फ व्यास सिंह ने किया था. कहने का मतलब ये है कि अतीत खुद को दोहरा रहा है. बहरहाल, इसका फायदा किसको मिलेगा ये 10 नवंबर को चुनावी नतीजों के साथ पता चल जाएगा.