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चुनावी किस्‍से: जब मां-बेटे के बीच हुई थी चुनावी जंग, जानें कौन पड़ा था भारी

गोविंदपुर विधानसभा सीट और यहां के मतदाता मां और बेटे के बीच चुनावी जंग के साक्षी हैं. बात है साल 2000 के विधानसभा चुनावों की. चार बार विधायक रह चुकीं गायत्री देवी एक बार फ‍िर राजद के प्रत्‍याशी के रूप में चुनाव मैदान में थीं. मुकाबला तब रोचक हो गया जब उनके बेटे कौशल यादव कांग्रेस के टिकट पर गोविंदपुर प्रत्‍याशी बन गए. लोगों को यकीन ही नहीं हुआ कि मां-बेटा एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. लोगों को लगा कि नाम वापसी में कोई एक इन दोनों में से पर्चा वापस ले लेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

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बिहार विधानसभा
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स्टोरी हाइलाइट्स
  • जब बिहार में मां-बेटे एक दूसरे के खिलाफ लड़े थे चुनाव
  • नवादा की गोविंदपुर सीट पर मां ने बेटे के खिलाफ फूंका था चुनावी बिगुल
  • मां के हाथों विधानसभा चुनाव हार गया था बेटा

बिहार में चुनाव से जुड़े अजब-गजब दिलचस्प किस्‍सों की लंबी फेहरिस्त है. बहुत से ऐसे वाकये हैं जब एक ही परिवार के लोग चुनावी मैदान में आमने-सामने आ गए. लेकिन क्‍या आप यकीन करेंगे कि एक चुनाव ऐसा भी हो चुका है जब जीत के हौसले के साथ मां और बेटा ही एक दूसरे के सामने आ गए हों?

ऐसा ही एक किस्‍सा नवादा जिले के गोविंदपुर विधानसभा सीट से जुड़ा है. यहां एक चुनाव ऐसा भी हो चुका है जब मैदान में मां और बेटा आमने-सामने आ गए थे. मतदाता भी पेसोपेश मे फंस गए कि वो जाएं तो कधर जाएं? 

मां आरजेडी से तो बेटा कांग्रेस से 

गोविंदपुर विधानसभा सीट और यहां के मतदाता मां और बेटे के बीच चुनावी जंग के साक्षी हैं. बात है साल 2000 के विधानसभा चुनावों की. चार बार विधायक रह चुकीं गायत्री देवी एक बार फ‍िर राजद के प्रत्‍याशी के रूप में चुनाव मैदान में थीं.

मुकाबला तब रोचक हो गया जब उनके बेटे कौशल यादव कांग्रेस के टिकट पर गोविंदपुर प्रत्‍याशी बन गए. लोगों को यकीन ही नहीं हुआ कि मां-बेटा एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे. लोगों को लगा कि नाम वापसी में कोई एक इन दोनों में से पर्चा वापस ले लेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. 

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समता पार्टी को दूसरा स्‍थान 

इस रोचक लड़ाई का परिणाम भी बेहद रोचक था. मां ही बेटे पर भारी पड़ी और पांचवीं बार विधायक के तौर पर इस सीट से जीत हासिल की. बेटे कौशल दूसरे की बजाय तीसरे स्‍थान पर थे. दूसरे स्‍थान पर समता पार्टी के मोहन सिंह थे. इस त्रिकोणीय महामुकाबले ने इस सीट को राज्‍य ही नहीं बल्कि पूरे देश में चर्चित कर दिया था.  

1995 में लड़े थे अलग अलग सीटों से 

साल 2000 का चुनाव ही ऐसा मौका था जब गायत्री देवी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के टिकट पर चुनाव लड़ीं थी. इसके पहले गायत्री देवी कांग्रेस के टिकट पर गोविंदपुर से जीत हासिल करती रहीं. बेटा कौशल यादव भी कांग्रेस खेमे के सक्रिय युवा नेता थे. 1995 में मां गायत्री कांग्रेस के टिकट पर गोविंदपुर से और बेटा कौशल नवादा सीट से लड़े थे.

हालांकि इस चुनाव में दोनों को ही हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद गायत्री देवी ने 2000 के चुनाव में पाला बदलते हुए राजद का हाथ पकड़ा और बेटे को हराकर विधायक बनीं. 

बेटे ने नहीं मानी हार 

मां के हाथों पराजय का सामना करने वाले कौशल यादव गोविंदपुर में सक्रिय रहे. बाद में उन्‍होंने भी कांग्रेस का साथ छोड़ (आरजेडी) का हाथ थामा. वह आरजेडी के जिलाध्‍यक्ष भी बन गए. उन्‍हें उम्‍मीद थी कि 2005 के चुनाव में उन्‍हें ही टिकट मिलेगा. लेकिन इस बार भी टिकट लेने में मां गायत्री बेटे पर भारी पड़ीं.

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इसके बाद कौशल बागी हो गए और एक बार फ‍िर गोविंदपुर सीट पर मां के खिलाफ न‍िर्दलीय पर्चा भर दिया. उन्‍होंने पत्‍नी पूर्णिमा यादव को भी निर्दलीय प्रत्‍याशी के रूप में नवादा से चुनाव लड़वा दिया. इस बार बाजी पलट गयी. कौशल यादव और उनकी पत्‍नी, दोनों ही जीत गए. बाद में पति पत्‍नी ने सीटें बदल कर चुनाव लड़ा और कौशल नवादा और पूर्णिमा गोविंदपुर से विधायक बनीं.

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