
बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और भारतीय जनता पार्टी के बीच कांटे की टक्कर से इतर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. टीएमसी ने बीजेपी की ओर से राज्यसभा के नामित सदस्य और बंगाल की राजनीति के बड़े चेहरों में गिने जाने वाले स्वपन दासगुप्ता को हुगली जिले की तारकेश्वर विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है जिसका टीएमसी की ओर से विरोध किया जा रहा है.
पश्चिम बंगाल में 6 अप्रैल को होने वाले तीसरे चरण के मतदान के लिए रविवार को बीजेपी ने 26 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया था जिसमें स्वपन दासगुप्ता का नाम भी शामिल था. लेकिन अब ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की ओर से दासगुप्ता की राज्यसभा सदस्यतता को खत्म किए जाने को लेकर विशेष प्रस्ताव लाने की तैयारी हो रही है.
दासगुप्ता जो उच्च सदन के मनोनीत सदस्य हैं और भारत के संविधान की 10वीं अनुसूची के प्रावधानों के रूप में उनकी स्थिति का हवाला देते हुए टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने सबसे पहले उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ मुद्दा उठाया.
अब, मंगलवार को तृणमूल कांग्रेस के आरोपों पर सांसद स्वपन दासगुप्ता ने कहा है कि नामांकन प्रक्रिया से पहले सभी मामलों को हल कर लिया जाएगा.

सांसद मोइत्रा ने ट्विटर पर एक पोस्ट के साथ अपने इस कदम की शुरुआत की. उन्होंने कहा कि स्वपन दासगुप्ता पश्चिम बंगाल चुनावों के लिए बीजेपी के उम्मीदवार हैं. जबकि संविधान की 10वीं अनुसूची कहती है कि यदि कोई राज्यसभा का मनोनीत सांसद शपथ लेने और उसके 6 महीने की अवधि खत्म होने के बाद अगर किसी भी राजनीतिक पार्टी में शामिल होता है तो उसे राज्यसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. उन्हें अप्रैल 2016 में शपथ दिलाई गई थी, जो अभी जारी है. अब उन्हें बीजेपी में शामिल होने के लिए अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए.
उन्होंने अपनी बात साबित करने के लिए भारत के संविधान की 10वीं अनुसूची के स्क्रीनशॉट को भी लगाया. अब टीएमसी आज मंगलवार को राज्यसभा में इस मुद्दे को उठाने की योजना बना रही है.

दासगुप्ता के विवाद के केंद्र में आने की वजह भारत के संविधान की 10वीं अनुसूची का प्रावधान है. 10वीं अनुसूची की धारा 102 (2) और 191 (2) के तहत दलबदल के मुद्दे पर अयोग्यता के नियम 3 में कहा गया है कि किसी सदन का नामित सदस्य तब अयोग्य घोषित किया जाएगा यदि वह शपथ लेने और उसके 6 महीने की अवधि की समाप्ति के बाद अगर किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है.
हालांकि दासगुप्ता को अभी अपना नामांकन दाखिल करना है, लेकिन तारकेश्वर से उम्मीदवार बनाए जाने का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा था कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी की ओर से तारकेश्वर से उम्मीदवार बनाए जाने से सम्मानित महसूस कर रहा हूं. मैं एक नए, जीवंत सोनार बांग्ला अभियान के लिए उत्सुक हूं.
इस बीच सोमवार रात तक राज्यसभा की वेबसाइट पर स्वपन दासगुप्ता को एक नामित सदस्य के रूप में ही दिखाया जा रहा था.
दासगुप्ता को अप्रैल 2016 में मोदी सरकार द्वारा राज्यसभा के लिए नामित किया गया था. सुब्रमण्यम स्वामी की तरह राकेश सिन्हा और सोनल मानसिंह ने नामांकन करने के तुरंत बाद राज्यसभा के चेयरमैन को पत्र लिखा था और खुद को बीजेपी से संबंधित बताया था.
चेयरमैन ले सकते हैं फैसलाः कश्यप
इस मुद्दे पर संवैधानिक विशेषज्ञ और लोक सभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप ने कहा कि इस मुद्दे को राज्यसभा के चेयरमैन के पास ले जाना होगा और केवल वही इस मुद्दे पर निर्णय ले सकते हैं, लेकिन नियम स्पष्ट हैं. अगर उच्च सदन का एक मनोनीत सदस्य शपथ लेने के छह महीने के भीतर खुद को किसी पार्टी में शामिल नहीं करता है और आगे बढ़ता है और फिर एक राजनीतिक पार्टी की ओर से नामांकन दाखिल करता है या वह दलबदल विरोधी कानूनों के तहत अयोग्यता का सामना कर सकता है.
उन्होंने यह भी कहा कि अतीत में ऐसी कोई मिसाल नहीं है. इस मसले पर अन्य विशेषज्ञ कहते हैं कि कि टीएमसी की चुनौती मजबूत है और दासगुप्ता को अयोग्यता का सामना करना पड़ सकता है.
शीर्ष बीजेपी सूत्र भी स्वीकार करते हैं कि मोइत्रा द्वारा बताए जा रहे तथ्य सही हैं. इस परिदृश्य को देखते हुए फैसला लिया जाना है कि क्या उन्हें चुनावी मुकाबले से हटा दिया जाए या फिर अपनी राज्यसभा सीट गंवा दें.