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बीजेपी में शामिल हुए मिथुन चक्रवर्ती, अल्ट्रा लेफ्ट से दक्षिणपंथी तक ऐसा रहा सफर

मिथुन चक्रवर्ती का जन्म 16 जुलाई 1950 को एक लोअर मिडिल क्लास बंगाली परिवार में हुआ था. उनके बचपन का नाम गौरांग चक्रवर्ती था. बाद में उन्होंने अपना नाम बदलकर मिथुन चक्रवर्ती कर लिया.

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बीजेपी में शामिल हुए मिथुन चक्रवर्ती (फोटो- पीटीआई)
बीजेपी में शामिल हुए मिथुन चक्रवर्ती (फोटो- पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • एक जमाने में नक्सल आंदोलन से थे प्रभावित
  • पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए हुए थे अंडरग्राउंड

मिथुन चक्रवर्ती, एक जमाने में 'अर्बन नक्सली' के तौर पर जाने जाते थे. लेकिन बाद में वो अल्ट्रा लेफ्ट से सेंटर लेफ्ट, सेंटरिस्ट और अब दक्षिणपंथी हो गए. रविवार को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में पीएम मोदी की रैली के मंच पर मिथुन लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए थे. वरिष्ठ बीजेपी नेता और बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय को विश्वास है कि मिथुन चक्रवर्ती के साथ जुड़ने से बंगाल चुनाव में उनकी पार्टी को और मजबूती मिलेगी.  

फिल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती ने ब्रिगेड परेड ग्राउंड में भीड़ को अपने चिरपरिचित अंदाज में संबोधित करते हुए कहा कि मैं सिर्फ सांप नहीं हूं, मैं कोबरा हूं. मेरा एक ही दंश काफी है. पीएम मोदी ने फिल्म अभिनेता की प्रशंसा करते हुए कहा कि मिथुन की जिंदगी एक मिसाल है. उन्होंने संघर्ष के बल पर अपनी सफलता का परचम लहराया. लोकनाथ बाबा के आशीर्वाद से अब वो अपना अनुभव बंगाल की जनता के साथ साझा करना चाहते हैं. 

दरअसल 17 फरवरी को सरसंघचालक मोहन भागवत ने मिथुन चक्रवर्ती के मुंबई स्थित आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की थी. तभी से उनके बीजेपी में शामिल होने को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म था. हालांकि मिथुन चक्रवर्ती ने इस मुलाकात को राजनीति से इतर बताते हुए मोहन भागवत के साथ अपना आध्यात्मिक संबंध बताया था. 

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कई लोग मिथुन चक्रवर्ती को असली अर्बन नक्सली बताते रहे हैं. हाल के दिनों में इस टर्म का प्रयोग वाम दल के लोगों के लिए किया जाता है. बीजेपी समर्थक और संघ परिवार लगातार इस बात पर जोर देते रहे हैं कि 'अर्बन नक्सल' राष्ट्र की संप्रभुता के लिए वास्तविक और बड़ा खतरा है. 

मिथुन चक्रवर्ती का जन्म 16 जुलाई 1950 को एक लोअर मिडिल क्लास बंगाली परिवार में हुआ था. उनके बचपन का नाम गौरांग चक्रवर्ती था. बाद में उन्होंने अपना नाम बदलकर मिथुन चक्रवर्ती कर लिया. उनका झुकाव नक्सली आंदोलन की कट्टर विचारधारा से रहा. जैसा कि 1960 के दशक में हजारों बंगाली युवाओं पर रहा था. 

इस मूवमेंट में हिंसा के बाद जब पुलिस की कार्रवाई शुरू हुई तो मिथुन चक्रवर्ती समेत आंदोलन में सक्रिय सभी लोग अंडरग्राउंड हो गए. नक्सलियों पर पुलिसिया कार्रवाई की वजह से मिथुन लंबे समय तक छिपते रहे. 

इस दौरान मिथुन के परिवार में एक बड़ा हादसा हुआ. उनके भाई का निधन हो गया. इस बात का उन्हें गहरा सदमा लगा और परिवार संभालने की जिम्मेदारी मिथुन पर आ गई. यहीं से उनका नक्सल मूवमेंट से मोहभंग हुआ.

इसके बाद मिथुन चक्रवर्ती, पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) में पढ़ाई के लिए पहुंचे. हालांकि यहां भी उनके अतीत ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. 70 के दशक में जब वह पुणे से पढ़ाई पूरी कर करियर बनाने मुंबई पहुंचे तो वहां भी इसी तरह के अनुभवों का सामना करना पड़ा था. पत्रकार अली पीटर जॉन से बात करते हुए अभिनेता ने खुद भी इस बात को स्वीकार किया था. 

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(पत्रकार रशीद किदवई ‘‘नेता अभिनेता: बॉलीवुड स्टार पावर इन इंडियन पॉलिटिक्स’’ के लेखक हैं.) 

 

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