बंगाल की सत्ता के लिए जारी संग्राम अब वोटिंग के मुहाने पर पहुंच चुका है. पहले चरण में 30 विधानसभा सीटों पर मतदाता विधानसभा में अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए नेता चुनने को 27 मार्च को मतदान करेंगे. पहले चरण के लिए चुनाव प्रचार में करीब-करीब सभी दलों ने पूरी ताकत झोंकी. सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की ओर से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रचार अभियान का अग्रिम मोर्चे से नेतृत्व किया, वहीं विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ ही केंद्रीय मंत्रियों की पूरी फौज उतार दी.
प्रचार के दौरान बयानों के तीर भी खूब चले तो लुभावने वादे भी. मतदाता जब वोटिंग के लिए पोलिंग बूथ पर जाएंगे, तब देखना होगा कि दीदी की ममता पर यकीन करते हैं या बीजेपी के वादों पर. 2 मई को वोटों की गिनती के साथ ही यह पता चल पाएगा, लेकिन आइए एक नजर डालते हैं दोनों ही खेमों की मजबूती और कमजोरी पर.
टीएमसी की क्या है मजबूती, क्या है कमजोरी
मजबूती
कमजोरी
संभावनाएं और खतरे
बंगाल का सियासी अतीत देखें तो यह काफी स्थायित्व भरा नजर आता है. बंगाल की जनता ने जिसपर भी भरोसा किया, लंबे समय तक किया. ऐसे में ममता बनर्जी की पार्टी के लिए हैट्रिक की संभावनाएं भी हैं. ममता बनर्जी को लगी चोट, अभिषेक बनर्जी की पत्नी और अन्य रिश्तेदारों से केंद्रीय एजेंसियों की पूछताछ से भी टीएमसी को सहानुभूति के वोट मिल सकते हैं. दूसरी तरफ, पार्टी में बगावत, नेताओं का पार्टी छोड़कर जाने का सिलसिला, लोकल लेवल पर एंटी इनकम्बेंसी टीएमसी के लिए खतरा हैं.
बीजेपी की क्या है मजबूती, क्या है कमजोरी
मजबूती
कमजोरी
संभावनाएं और खतरे
बंगाल में बीजेपी के लिए 'खोने को कुछ नहीं, पाने को सारा जहां' जैसी स्थिति है. 2016 के विधानसभा चुनाव में महज तीन सीटें जीतने वाली बीजेपी के लिए बंगाल में संभावनाओं के द्वार खुले हैं. बीजेपी की सीटें बढ़ने की संभावना है. टीएमसी भी चुनाव को ममता के चेहरे पर केंद्रित करना चाहती है और बीजेपी की भी यही स्टाइल रही है कि हर चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर केंद्रित हो. चुनाव के मोदी बनाम ममता होने पर बीजेपी के लिए अच्छी संभावनाएं हैं. दूसरी तरफ बीजेपी के लिए कैडर ना होना, दूसरे दलों से आए नेताओं पर निर्भरता जैसे खतरे भी हैं.