scorecardresearch
 

रामविलास पासवान की विरासत को किस तरह आगे ले जा रहे चिराग, 5 साल में कितनी बदली पार्टी की तस्वीर

चिराग पासवान ने लोकसभा चुनाव में यह साबित किया है कि रामविलास पासवान की सियासी विरासत के असली वारिस वही हैं. चिराग अपने पिता की विरासत को किस तरह से आगे लेकर जा रहे हैं?

Advertisement
X
वोट बेस बढ़ाने पर चिराग का फोकस (Photo: PTI)
वोट बेस बढ़ाने पर चिराग का फोकस (Photo: PTI)

पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के संस्थापक राम विलास पासवान की आज (8 अक्टूबर को) पुण्यतिथि है. अपने पिता की पुण्यतिथि पर केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया. उन्होंने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा कि पापा कहा करते थे- जुर्म करो मत, जुर्म सहो मत. जीना है तो मरना सीखो, कदम-कदम पर लड़ना सीखो.

चिराग पासवान की यह पोस्ट आई तो है अपने पिता की पुण्यतिथि पर, लेकिन बिहार में मौसम चुनावी है और एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर पेच फंसा है. चिराग पासवान की पार्टी कम से कम 43 सीटों की डिमांड पर अड़ी है. वहीं, भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि 38 सीटों पर ही चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टियों को संतुष्ट कर लिया जाए.

चिराग की पार्टी के नेता खुलकर यह तक कहने लगे हैं कि केंद्र में मंत्री पद से कहीं अधिक मैटर करता है बिहार में सम्मानजनक सीटें मिलना. 2020 के चुनाव में हमें 22 सीटें मिल रही थीं, तब हमने अकेले लड़ लिया तो इस बार क्या दिक्कत है. यानी इशारों-इशारों में एकला चलो की चेतावनी भी एलजेपी (आर) की ओर से दी जा रही है.

Advertisement

पिछला बिहार चुनाव रामविलास पासवान के निधन के बाद पहला चुनाव था. तब से अब तक, पांच साल बीत चुके हैं. ऐसे में बात इसे लेकर भी हो रही है कि रामविलास पासवान की विरासत को चिराग कैसे आगे लेकर जा रहे हैं? पिछले पांच साल में चिराग की पार्टी की तस्वीर, दशा और दिशा कितनी बदली?

बिहार चुनाव की विस्तृत कवरेज के लिए यहां क्लिक करें

बिहार विधानसभा की हर सीट का हर पहलू, हर विवरण यहां पढ़ें

5 साल में बदल गई तस्वीर

रामविलास पासवान के निधन के बाद लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई. रामविलास पासवान की बनाई पार्टी का नाम और निशान अब अतीत की बात हो चुकी है और यह दो धड़ों में बंट चुकी है. रामविलास के निधन के बाद पशुपति पारस ने चिराग को पार्टी से बाहर निकाल खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया.

यह भी पढ़ें: '2020 में अकेले लड़े थे तो अब क्या दिक्कत है...', चिराग की पार्टी के सांसद ने बढ़ाई NDA की टेंशन

पार्टी पर कब्जे की लड़ाई चुनाव आयोग पहुंची और लोक जनशक्ति पार्टी का नाम-निशान फ्रीज हो गया. पशुपति पारस ने राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) नाम से अपनी पार्टी बना ली. चिराग को भी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) नाम से अपना नया दल बनाना पड़ा.

यह भी पढ़ें: NDA में सीट शेयरिंग पर तकरार, चिराग नहीं करेंगे धर्मेंद्र प्रधान से बात, बहनोई को सौंप दी जिम्मेदारी

Advertisement

चिराग ने एक्स पर पोस्ट कर यह भी कहा है कि आपकी बनाई लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के कारवां को आगे बढ़ाने के लिए संकल्पित हूं. पार्टी के हर कार्यकर्ता और पदाधिकारियों का सपना है कि आगामी चुनाव में आपके सपनों को पूरा किया जा सके. चिराग की पार्टी साल 2021 में अस्तित्व में आई थी और इसका निशान हेलिकॉप्टर है. रामविलास पासवान की बनाई पार्टी का निशान बंगला था.

कितनी बदली दशा-दिशा

नए नाम, नए निशान के साथ दो लोक जनशक्ति पार्टियों का चुनावी मैप पर उदय हुआ. चिराग की बड़ी उपलब्धि यह रही कि वह ये साबित करने में सफल रहे हैं कि रामविलास पासवान की सियासी विरासत के असली वारिस वही हैं. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उनकी पार्टी एनडीए में शामिल हुई थी और उसके हिस्से पांच सीटें आई थीं. चिराग खुद अपने पिता की परंपरागत सीट हाजीपुर से मैदान में उतरे थे और विजयी रहे थे. पशुपति पारस की पार्टी को एनडीए में एक भी सीट नहीं मिली थी.

कैसे आगे बढ़ा रहे विरासत

चिराग पासवान अपने पिता के बेस पासवान वोट बैंक को इंटैक्ट रखने के साथ ही पार्टी का आधार बढ़ाने की रणनीति पर भी काम कर रहे हैं. बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट के नारे के साथ उनकी रणनीति जहां बिहारी अस्मिता के नाम पर सभी जाति-वर्गों को एलजेपी(आर) के पाले में लाने की है. वहीं, शाहाबाद जैसे रीजन से विधानसभा चुनाव में उतरने के संकेत यह बताते हैं कि चिराग का फोकस ऐसे इलाकों पर है, जहां पार्टी का आधार नहीं रहा है या कमजोर रहा है.

---- समाप्त ----
Live TV

  • बिहार में अबकी बार, किसकी सरकार?

Advertisement
Advertisement