बिहार चुनाव करीब आ रहे हैं और नेताओं के सियासी पर्यटन की रफ्तार भी अब तेज हो रही है. टिकट के दावेदार अपनी वर्तमान पार्टियों में धमक, पकड़ और स्थिति का आकलन कर वैकल्पिक ठिकानों की तलाश में जुट गए हैं. टिकट की दावेदारी कमजोर पड़ती देख, पार्टी से उतना समर्थन नहीं मिलता देख पाला बदल की शुरुआत भी अब हो गई है. इस लिस्ट में ताजा नाम है यूट्यूबर मनीष कश्यप का.
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थामने वाले मनीष कश्यप ने हाल ही में पार्टी छोड़ने का ऐलान किया था. अब उनकी जन सुराज में एंट्री तय मानी जा रही है. मनीष कश्यप को लेकर खबर है कि वह 23 जून को आधिकारिक रूप से जन सुराजी बन जाएंगे. मनीष कश्यप का पश्चिम चंपारण जिले की चनपटिया विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरना भी करीब-करीब तय बताया जा रहा है.
मनीष कश्यप की पहचान राजनेता से अधिक एक यूट्यूबर के रूप में रही है. वह 2020 में भी चनपटिया सीट से ही विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. 2020 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार रहे मनीष कश्यप की दलगत राजनीति में यह दूसरा ही दल होगा, लेकिन वह जन सुराज और प्रशांत किशोर की पॉलिटिक्स में टिक पाएंगे? यह सवाल बिहार के सियासी गलियारों में चर्चा का केंद्र बना हुआ है.
पीके की पॉलिटिक्स में टिकेंगे मनीष?
चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर की पॉलिटिक्स युवा केंद्रित है. मनीष कश्यप भी युवा हैं और जाति-समुदाय की भावना से परे जाकर हर जाति-वर्ग के युवाओं में वह लोकप्रिय भी हैं. मनीष कश्यप भी युवाओं की, पलायन की और जनता से जुड़े मुद्दे उठाते हैं. पीके की जन सुराज का फोकस भी सीधे जनता को कनेक्ट करने वाले मुद्दों पर है. इन तमाम समानताओं के बावजूद प्रशांत किशोर और मनीष की राजनीति का अंदाज जुदा है. मनीष कश्यप कई ऐसे मुद्दों पर मुखर रहे हैं, जिनसे पीके और उनकी पार्टी दूरी बनाकर चलती रही है.
मनीष कश्यप के 'जन सुराजी भविष्य' पर सवाल केवल विषमताओं के कारण नहीं उठ रहे. मनीष, पीके के खिलाफ भी हमलावर रहे हैं. तीन महीने पहले ही मनीष कश्यप ने एक इंटरव्यू में पीके पर निशाना साधते हुए कहा था कि वह भले ही एक कुशल रणनीतिकार माने जाते हों, उनकी रणनीतियां हमेशा कारगर नहीं रही हैं. पीके सीमांचल में अवैध घुसपैठ और जनसांख्यिकीय बदलाव पर एक शब्द नहीं बोलते. एमके स्टालिन जैसे नेताओं के साथ संबंध होने के बावजूद तमिलनाडु में हिंदी भाषा के अपमान पर वह चुप रहे.
मनीष के लिए मजबूरी का नाम है जन सुराज?
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि मनीष कश्यप हमेशा ही खुद के लिए राष्ट्रवादी, सनातनी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते रहे हैं. वह खुद भी यह कहते रहे हैं कि मेरी विचारधारा बीजेपी से मेल खाती है और इसीलिए पार्टी जॉइन किया. अब वह जन सुराज में शामिल होने जा रहे हैं तो इसके पीछे टिकट की मजबूरी है. बीजेपी का गढ़ चनपटिया सीट से वह टिकट चाह रहे थे. बीजेपी में सीट स्तर पर सर्वे का काम पूरा हो चुका है.
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उन्होंने आगे कहा कि मनीष को टिकट का आश्वासन तो छोड़िए, पीएमसीएच में बंधक बनाकर पीटे जाने पर बीजेपी के किसी एक नेता का मोरल सपोर्ट तक नहीं मिला. बीजेपी से टिकट की आस धुंधली पड़ी, तो निर्दलीय भी जोर आजमा चुके मनीष ने जन सुराज के संस्थापक सदस्यों में से एक वाईवी गिरि से मिलकर पार्टी में अपने लिए जगह तलाशनी शुरु कर दी. जन सुराज मनीष के लिए मजबूरी का नाम है. इस दल में उनके विधानसभा चुनाव के बाद तो छोड़िए, टिकट नहीं मिला तो पहले भी टिके रहने पर संदेह है.
2020 में मनीष को मिले थे कितने वोट
चनपटिया विधानसभा सीट पर पिछले चुनाव में बीजेपी के उमाकांत सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के अभिषेक रंजन को 13 हजार वोट से अधिक के अंतर से हरा दिया था. तब निर्दलीय उम्मीदवार त्रिपुरारी कुमार तिवारी उर्फ मनीष कश्यप तीसरे स्थान पर रहे थे. मनीष को तब 9239 वोट मिले थे और उनका वोट शेयर 5.26 फीसदी रहा था.
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जिससे बनी थी पहचान, उसी ने कराई बीजेपी से एग्जिट
मनीष कश्यप की पहचान सिस्टम पर सवालों की वजह से बनी थी. मनीष ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और वह रोड, पुल आदि की डिजाइनिंग खामियों को उजागर करने वाले यूट्यूबर के तौर पर पहचान बनाने में सफल रहे. सिस्टम पर सवाल उठाने, कठघरे में खड़े करने की यही आदत बीजेपी से उनकी एग्जिट की भी वजह बन गई.
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मनीष कश्यप ने 19 मई को पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (PMCH) पहुंचकर मरीजों की समस्याएं उठाईं. मनीष की जूनियर महिला डॉक्टर्स के साथ तीखी बहस हुई और डॉक्टर्स ने बंधक बनाकर उनकी पिटाई कर दी. स्वास्थ्य विभाग बीजेपी कोटे के मंत्री मंगल पाण्डे के ही पास है, ऐसे में पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भी इस पूरे मामले में कन्नी काट गए. अपनी ही पार्टी के इस रवैये से आहत मनीष को बीजेपी छोड़ने का ऐलान करना पड़ गया.