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क्या 'सेफ' होने के लिए 'एक' होगी उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी?

असली-नकली शिवसेना और एनसीपी की लड़ाई में एकनाथ शिंदे और अजित पवार की पार्टियां भारी पड़ती दिख रही हैं. उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टियां मिलकर भी उतनी सीटों तक नहीं पहुंच पा रहीं जितनी सीटों पर अजित की पार्टी लीड कर रही है. क्या एक होने के लिए उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टियां एक होंगी?

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शरद पवार और उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो)
शरद पवार और उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो)

महाराष्ट्र चुनाव नतीजों के रुझान में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाली महायुति बड़ी जीत की ओर है. महायुति 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा की 221 सीटों पर आगे चल रही है जो तीन चौथाई बहुमत के आंकड़े 216 से भी अधिक है. कांग्रेस की अगुवाई वाली महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के उम्मीदवार 56 सीटों पर आगे चल रहे हैं. उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना (यूबीटी) 19,और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) 14 सीटों पर आगे चल रही है. ताजा रुझानों के बाद सबसे अधिक बात उद्धव ठाकरे और शरद पवार और उनकी अगुवाई वाली पार्टियों के भविष्य को लेकर हो रही है.

अपने ही धड़ों से पिछड़े दोनों दल

उद्धव ठाकरे और शरद पवार की अगुवाई वाली पार्टियां असली-नकली की लड़ाई माने जा रहे इन विधानसभा चुनावों में अपने ही दल से निकलीं शाखों यानी धड़ों से भी पिछड़ती दिख रही हैं. ताजा रुझानों में एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना 56 सीटों पर आगे चल रही है तो वहीं अजित पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) 38 सीटों पर बढ़त बनाए हुई है. अगर यही रुझान नतीजों में बदलते हैं तो असली दल की लड़ाई में उद्धव और शरद पवार पर शिंदे और अजित पवार भारी पड़ते दिख रहे हैं.

पूरा एमवीए जहां 53 सीटों पर लीड कर रहा है जो शिंदे की पार्टी के भी बराबर नहीं है. अजित की बात करें तो लोकसभा चुनाव में फिसड्डी साबित हुई एनसीपी (एपी) इस बार शरद और उद्धव की जोड़ी पर अकेले भारी पड़ती दिख रही है. एनसीपी (एपी) खबर लिखे जाने तक 38 सीटों पर आगे चल रही है. यह शरद पवार और उद्धव की पार्टियों को मिलाकर 33 सीटों की बढ़त से कहीं अधिक है. 

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असली की जंग हारने के बाद क्या करेंगे उद्धव-शरद?

उद्धव ठाकरे और शरद पवार अपनी पार्टियों के नाम-निशान पर कब्जे की जंग चुनाव आयोग में पहले ही हार गए थे. दोनों नेताओं को जनता की अदालत से फैसला अपने पक्ष में आने की उम्मीद थी. लोकसभा चुनाव के नतीजों ने यह उम्मीद जगाई भी लेकिन विधानसभा चुनाव में मोमेंटम पूरी तरह से शिफ्ट हो गया. ऐसे में अब सवाल है कि जनता की अदालत में असली-नकली की लड़ाई हारने के बाद उद्धव ठाकरे और शरद पवार क्या करेंगे?

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क्या सेफ होने के लिए एक होंगी दोनों पार्टियां?

महाराष्ट्र चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक नारा चर्चा का केंद्रबिंदु बना रहा- 'एक हैं तो सेफ हैं.' राजनीति के जानकार अब दोनों नेताओं और उनकी पार्टियों का सियासी भविष्य भी इसी नारे के इर्द-गिर्द बता रहे हैं. शरद पवार और उद्धव की पार्टियां मिलकर भी उतनी सीटों तक पहुंचती नहीं नजर आ रहीं जितनी सीटों पर शिंदे की शिवसेना लीड कर रही है. ऐसे में अब उद्धव ठाकरे और शरद पवार के लिए 20 के आसपास के संख्याबल के साथ अपनी-अपनी पार्टियों में फिर से जान फूंकना पांच साल विपक्ष में रहते हुए आसान नहीं होगा.

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इन दोनों नेताओं के सामने अब तीन विकल्प बताए जा रहे हैं. पहला विकल्प ये है कि दोनों ही नेता अपनी-अपनी पार्टियों का विलय कर लें. शरद पवार छोटे-छोटे दलों के विलय की पैरवी करते भी रहे हैं. हालांकि, यह उद्धव ठाकरे के लिए कठिन फैसला होगा. दूसरा विकल्प ये बताया जा रहा है कि दोनों दल अपने से अलग हुए धड़ों के साथ चले जाएं और मर्जर कर लें. हालांकि, उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे की ईगो फाइट को देखते हुए ऐसा होगा, ये लगता नहीं है. लेकिन एक फैक्ट ये भी है कि सियासत में दोस्ती हो या दुश्मनी, स्थायी नहीं होते. तीसरी राह एकला चलो की है जिस पर दोनों दल फिलहाल बढ़ रहे हैं.

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