इस साल बिहार में चुनाव होने वाला है. ऐसे में हर एक राजनीतिक दल की नजर वहां के सबसे बड़े वोट बैंक पर है. बिहार में सबसे ज्यादा वोटर अतिपिछड़ा समाज से आते हैं. इसी के इर्द-गिर्द बिहार की पूरी चुनावी राजनीति घूमती रहती है. सदियों से हाशिये पर रहे इस तबके को पहली बार जिस शख्स ने पहचान दिलाई, उसकी चर्चा किए बिना बिहार चुनाव की बात करना बेमानी होगी. ये शख्सियत कोई और नहीं बल्कि इसी समाज से आने वाले कर्पूरी ठाकुर थे.
कर्पूरी ठाकुर एक ऐसा नाम हैं, जिन्हें बिहार में समाजवाद का असल पुरोधा माना जाता है. वैसे तो उन्होंने छात्र जीवन से अपने इस विचारधारा को धार देने लग गए थे, लेकिन आजादी के बाद पहले आम चुनाव के दौरान उनकी बढ़ती लोकप्रियता ने उनकी चुनावी राजनीति के लिए रास्ता बना दिया था.
इस पर न चाहते हुए भी सिर्फ जनभावना के सम्मान के लिए उन्हें चलना पड़ा और इसे रास्ते ने उन्हें आगे 'जननायक' के मुकाम तक पहुंचाया, लेकिन पहली बार उनके चुनाव लड़ने का किस्सा दिलचस्प है, कैसे एक धमकी से उन्होंने राजनीतिक पारी का आगाज किया और सत्ता के सिंहासन तक जा पहुंचे...
कैसे 'जननायक' बनें कर्पूरी ठाकुर
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वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह ने अपनी किताब 'The Jannayak' में एक वाकये का जिक्र किया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि कैसे एक धमकी ने कर्पूरी ठाकुर के चुनाव लड़ने के लिए तैयार कर दिया. संतोष सिंह लिखते है - कर्पूरी की बढ़ती लोकप्रियता ने ताजपुर से उम्मीदवार के रूप में उनका नाम लगभग तय कर दिया था. उन्हें सर्व सम्मति से चुनाव लड़ने के लिए चुना गया था.
उस समय दरभंगा जिले के ताजपुर (अब समस्तीपुर जिले का हिस्सा) विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं की मांग थी कि कर्पूरी ठाकुर ही उनके उम्मीदवार बनें. सोशलिस्ट पार्टी के जिला मंत्री सियाराम शर्मा को जिम्मेदारी दी गई थी कि वे कर्पूरी ठाकुर का नाम ताजपुर के उम्मीदवार के रूप में आगे करें. कर्पूरी ठाकुर का गांव पितौंझिया ताजपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत ही आता था.
चुनावी राजनीति में नहीं आना चाहते थे ठाकुर
सियाराम शर्मा ने ताजपुर विधानसभा क्षेत्र के लिए कर्पूरी ठाकुर के नाम का प्रस्ताव दिया. जब इस बात की भनक ठाकुर जी को लगी तो उन्होंने इस प्रस्ताव को साफ शब्दों में ठुकरा दिया. इससे उनके पार्टी कार्यकर्ताओं के काफी निराशा हुई. इसके बाद बिहार के जमुई जिले से सटे झाझा में हुई पार्टी प्रतिनिधियों की राज्य स्तरीय बैठक में एक बार फिर सर्वसम्मति से कर्पूरी ठाकुर को ही उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया गया. इस बार फिर कर्पूरी ठाकुर ने मना कर दिया.
संतोष सिंह अपनी किताब में लिखते हैं कि समाजवादी आंदोलन के एक क्रांतिकारी और सशक्त नेता थे योगेंद्र शुक्ल, जो एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे. वह अपने बेबाक स्वभाव (बोलते हुए कभी-कभी गाली भी दे देते थे) और गुस्से के लिए काफी मशहूर थे.
फिर मिली गंगा में फेंक देने की धमकी
झाझा में होने वाली बैठक में योगेंद्र शुक्ल भी मौजूद थे. जब कर्पूरी ठाकुर के चुनाव लड़के के प्रस्ताव को अस्वीकर कर दिया तो योगेंद्र शुक्ल ने अपने चिर-परिचित बेबाक अंदाज में कर्पूरी ठाकुर से कहा- अगर तुमने चुनाव लड़ने से इनकार किया तो मैं तुम्हें अभी के अभी उठाकर गंगा नदी में फेंक दूंगा. अगर तुम्हें चुनाव लड़ने में दिलचस्पी ही नहीं है तो तुम चुनावी राजनीति में आए ही क्यों?
आशीर्वाद में मिला 5 रुपये का चंदा
इस धमकी या अधिकारपूर्ण निर्देश जो भी कह लें, इसके बाद कर्पूरी ठाकुर आश्वस्त हो गए कि अब उन्हें चुनाव लड़ना ही होगा. यहां एक बार फिर कर्पूरी ठाकुर ने शर्त रख दी कि वो अपने चुनावी खर्चे के लिए किसी के पास पैसे मांगने नहीं जाएंगे. वे सांकेतिक तौर पर केवल प्रभावती देवी (जयप्रकाश नारायण की पत्नी) के पास गए, जिन्होंने उन्हें आशीर्वाद के रूप में पांच रुपये दिए.
पहले ही चुनाव में बनैली रियासत की रानी को दी मात
1952 के इस चुनाव में उनका सामना कांग्रेस की उम्मीदवार रामसुकुमारी देवी से हुआ. रामसुकुमारी देवी समस्तीपुर के बनैली रियासत के अंतिम राजा कामख्या सिंह की पत्नी थीं. कांग्रेस की इस दिग्गज उम्मीदवार को कर्पूरी ठाकुर ने 2431 वोट से हराया. तब कर्पूरी ठाकुर उन चंद समाजवादियों में से एक थे, जिनके सिर इस चुनाव में जीत का सेहरा बंधा था.
दो बार बने बिहार के मुख्यमंत्री
फिर एक के बाद एक उन्होंने नौ विधानसभा चुनाव जीते और इन चुनावों में उन्हें कभी हार नहीं मिली. 1970 के दशक में कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री बने. उन्होंने पहली बार 10वीं तक मुफ्त शिक्षा का प्रावधान किया. उन्होंने 1977 में एक बार लोकसभा चुनाव में भी जीत हासिल की. इस चुनाव में उन्होंने समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र से इंदिरा कांग्रेस के उम्मीदवार यमुना प्रसाद को हराया था. इसके बाद उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में दूसरी और अंतिम बार लोकसभा चुनाव के लिए 1984 में किस्मत आजमाई, लेकिन इस बार उन्हें पहली और आखरी हार का सामना करना पड़ा.
अंतिम बार अपनी पार्टी से बने विधायक
नौवीं और अंतिम बार उन्होंने सीतामढ़ी के सोनबरसा से लोकदल के उम्मीदवार के रूप में 1985 में विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इस तरह नौ विधानसभा चुनावों में लगातार जीत हासिल करने वाले वो एक अजेय एमएलए बन गए.
इस तरह एक धमकी ने कर्पूरी ठाकुर को प्रत्यक्ष तौर पर जनता का प्रतिनिधि बनकर जनता के लिए काम करने का मौका दिया और इस तरह उनके सिर पर जननायक का ताज सजा.