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चिराग और मांझी की हसरत होगी पूरी? समझें- बिहार में NDA के 5 पार्टनर्स में कौन कितना ताकतवर

बिहार में 2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच केवल 12,000 वोटों का अंतर था. एनडीए में भाजपा, जेडीयू, एलजेएपी, एचएएम और आरएलएम शामिल हैं. विश्लेषण बताता है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की विभिन्न पार्टियों की चुनावी ताकत उनके प्रदर्शन से मेल नहीं खाती. 

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बिहार में एनडीए के घटक दल लोजपा-राम विलास ने 40 सीटों पर दावा किया है. (Photo: X/@BJP4Bihar)
बिहार में एनडीए के घटक दल लोजपा-राम विलास ने 40 सीटों पर दावा किया है. (Photo: X/@BJP4Bihar)

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन के बीच केवल 12,000 से अधिक वोटों (कुल मतदान के 0.03 प्रतिशत) का अंतर था. इन आकंड़ों को देखकर कह सकते हैं कि दोनों गठबंधनों के बीच मुकाबला बहुत करीबी था, जिसमें एनडीए की जीत हुई. लेकिन आज तक के विश्लेषण से पता चलता है कि एनडीए की जीत के बावजूद, गठबंधन की विभिन्न पार्टियों की ताकत उनके प्रदर्शन से मेल नहीं खाती. 

यह विश्लेषण दो मुख्य आधारों पर किया गया है. पहला- पिछले चार चुनावों में हर पार्टियों ने कितनी सीटों पर पहला या दूसरा स्थान हासिल किया. दूसरा- विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में जिस पार्टी को 30 फीसदी या उससे ज्यादा वोट मिले. बिहार में एनडीए में पांच पार्टियां हैं- भाजपा, जनता दल (यूनाइटेड) (JDU), लोक जनशक्ति पार्टी- राम विलास (LJP-RV), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM), और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM). 

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बिहार चुनावों में लोजपा का प्रदर्शन

लोजपा ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए से बाहर रहने का फैसला किया और सिर्फ एक सीट जीती. हालांकि, पार्टी 18 विधानसभा क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रही थी और 3 विधानसभा सीटों पर 30 प्रतिशत या उससे अधिक वोट हासिल किए. पार्टी इस बार एनडीए में वापस आ गई है और सीट बंटवारे में बड़ी हिस्सेदारी की मांग कर रही है. 

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चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी- राम विलास एनडीए में आती-जाती रही है. 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले उनकी पार्टी में विभाजन हो गया था (चाचा पशुपति पारस ने एलजेपी पर दावा किया था). और पहले के चुनावों में– जब एलजेपी एकजुट थी– उसने राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के साथ भी चुनाव लड़ा था. नतीजतन, इसका ऐतिहासिक प्रदर्शन शायद इसकी वर्तमान ताकत को सही ढंग से प्रतिबिंबित न करे. 

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हालांकि, पिछले चार विधानसभा चुनावों में लोजपा ने 15 निर्वाचन क्षेत्रों में 30 प्रतिशत या उससे अधिक वोट हासिल किया है. यह संख्या उन निर्वाचन क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए काफी ज्यादा है जहां पार्टी पहले या दूसरे स्थान पर रही. 

भाजपा और जदयू की ताकत एक बराबर 

विश्लेषण से पता चलता है कि भाजपा और नीतीश कुमार की जदयू की चुनावी ताकत लगभग बराबर है. उन निर्वाचन क्षेत्रों पर विचार करें जहां दोनों दलों को 30 प्रतिशत या उससे अधिक वोट मिले, तो भाजपा के खाते में 98 सीटें आती हैं, जबकि जदयू के खाते में 97 सीटें.

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पहले और दूसरे स्थान पर रहने वाले पैमाने के आधार पर भी बीजेपी और जदयू एक बराबर ताकतवर दिखती हैं. बिहार की 152 सीटें ऐसी हैं, जिन पर भाजपा पहले या दूसरे स्थान पर रही और जद(यू) के लिए यह संख्या 151 है. इस विश्लेषण के लिए, हमने मजबूत सीटों को दर्शाने के लिए जीत और उपविजेता रहने की औसत संख्या को जोड़ा है. 

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रिपोर्टों के अनुसार, आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में जेडी(यू) 102 सीटों पर और भाजपा 101 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. यह इस तथ्य के बावजूद है कि 2020 के विधानसभा चुनावों में, जेडी(यू) ने केवल 15 प्रतिशत से कुछ अधिक वोट के साथ केवल 43 सीटें जीती थीं. इसके विपरीत, भाजपा ने लगभग 20 प्रतिशत वोटों के साथ 74 सीटें हासिल कीं. हालांकि, जेडी(यू) के पक्ष में जो बात काम कर सकती है, वह है पिछले चुनावों में उसका अच्छा प्रदर्शन, जिससे गठबंधन के भीतर उसकी बार्गेनिंग पावर बढ़ी है. 

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एनडीए में शामिल अन्य दलों का प्रदर्शन

जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, जिसने बिहार में अब तक दो विधानसभा चुनाव (2015 और 2020) लड़े हैं, कुछ क्षेत्रों में, खासकर गया और औरंगाबाद जिलों में, प्रभाव बनाए हुए है. दूसरी ओर, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा अपेक्षाकृत नई पार्टी है. पहले इसका नाम राष्ट्रीय लोक समता पार्टी हुआ करता था. यह दल भी अलग-अलग समय पर एनडीए और महागठबंधन, दोनों का हिस्सा रहा है.

कुल मिलाकर, हमारा विश्लेषण बताता है कि भाजपा और जेडी(यू) दोनों ही बिहार में एनडीए की मुख्य ताकत बने हुए हैं। अन्य सहयोगी दलों को अपनी चुनावी ताकत मुख्यतः इन्हीं दो प्रमुख दलों के साथ अपने जुड़ाव से मिलती है. किसी भी सीट-बंटवारे के फार्मूले में बीजेपी और जेडी(यू) द्वारा इन तत्थ्यों को ध्यान में रखने की संभावना है, भले ही चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेता एनडीए में बड़ा हिस्सा मांग रहे हों.

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