केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने वर्कला स्थित शिवगिरी मठ में आयोजित 93वें शिवगिरी तीर्थयात्रा (Sivagiri Pilgrimage) के अवसर पर समाज में बढ़ती सांप्रदायिकता और कट्टरपंथ पर तीखा हमला बोला. इस कार्यक्रम में उनके साथ कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी शामिल हुए. अपने संबोधन में मुख्यमंत्री विजयन ने श्री नारायण गुरु के दार्शनिक विजन को याद करते हुए चेतावनी दी कि आज राजनीतिक रूप से पुराने 'चातुर्वर्ण्य' सिस्टम को आधुनिक कानूनी व्यवस्था के रूप में फिर से स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं.
न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक मुख्यमंत्री ने इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि त्रावणकोर रियासत के शासनकाल में शक्ति केवल ब्राह्मणों और क्षत्रियों के हाथों में केंद्रित थी, जबकि बहुसंख्यक आबादी अपमान और गुलामी में जी रही थी. उन्होंने कहा, "उस समय ब्राह्मणवाद को चुनौती देना मुक्ति की ओर पहला कदम था. जाति केवल एक सामाजिक संरचना नहीं थी, बल्कि यह उत्पादन के संबंधों, व्यवसायों, मजदूरी और अधिकारों को नियंत्रित करती थी."
उन्होंने आगे कहा कि उस दौर में जाति ही कानून थी, जहां उच्च जाति के व्यक्ति के लिए सजा के प्रावधान अलग थे और निचली जातियों के लिए अत्यंत कठोर, यहां तक कि मृत्युदंड तक का प्रावधान था.
विजयन ने शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे बदलावों पर निशाना साधते हुए कहा कि जहां केरल सार्वजनिक शिक्षा को मजबूत करने को प्राथमिकता दे रहा है, वहीं देश के कुछ हिस्सों में बच्चों को सदियों पीछे धकेलने की कोशिश हो रही है. उन्होंने कहा, "शिक्षा में अतार्किक विचारों और मिथकों को बढ़ावा देना श्री नारायण गुरु के तर्कसंगत दर्शन का अपमान है. गुरु ने जिन अंधविश्वासों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, उन्हें ही आज पाठ्यक्रम में शामिल करने की कोशिशें हो रही हैं."
93 साल पहले शुरू हुए इस तीर्थदान के महत्व को बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि तीन साल बाद श्री नारायण गुरु की समाधि के 100 साल पूरे होने वाले हैं. उन्होंने आह्वान किया कि गुरु का संदेश जो जाति और धार्मिक विभाजनों के सख्त खिलाफ था आज के समय में और भी प्रासंगिक है. हर व्यक्ति की यह जिम्मेदारी है कि वह उन शक्तियों का विरोध करे जो समाज को बांटने और पुरानी दमनकारी व्यवस्थाओं को वापस लाने की कोशिश कर रही हैं.