बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर 'जात-पात' की राजनीति चल रही है. ऐसे में बिहार के नए नेताओं की पीढ़ी में एक बदलाव देखने को मिल रहा है. वे खुद को विकास का चेहरा बताने की कोशिश कर रहे हैं और पलायन और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठा रहे हैं, जिससे राज्य दशकों से जूझ रहा है.
राजद नेता तेजस्वी यादव से लेकर जन सुराज के संयोजक प्रशांत किशोर और कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार तक, बिहार के ये युवा नेता पहली बार पलायन और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इन सभी नेताओं का लक्ष्य बिहार के 18-35 वर्ष के युवा हैं, जो बेरोजगार हैं और नौकरी की तलाश में पलायन करने को मजबूर हैं. बिहार में इस समय एक ऐसा दौर चल रहा है, जहां 70% आबादी 35 साल से कम उम्र की है.
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तेजस्वी प्रसाद
इसकी शुरुआत 2020 में हुई जब तेजस्वी यादव ने पिता और राजद प्रमुख लालू प्रसाद के बाद अकेले ही पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे. उन्होंने खुद को पर्दे के पीछे से चुनावी रणनीति बनाने तक सीमित कर लिया लेकिन पहली बार बेरोजगारी का मुद्दा उठाया और 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया.
तेजस्वी यादव उस समय बिहार के राजनीतिक हलकों में हलचल मचाने में सफल रहे थे, क्योंकि उन्होंने 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया था. इसने बिहार के बेरोजगार युवाओं की कल्पना को मोहित कर लिया, जो उनकी जनसभा के दौरान भी देखने को मिला था, जिसमें युवाओं की भारी भीड़ उमड़ती थी.
आज, तेजस्वी यादव का दावा है कि उन्होंने 2022-23 के बीच नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार में बिहार के उपमुख्यमंत्री के रूप में अपने 17 महीने के कार्यकाल के दौरान 5 लाख सरकारी नौकरियां प्रदान कीं.
आंकड़ों के मुताबिक, अखिल भारतीय औसत 3.2% बेरोजगारी दर के मुकाबले, बिहार में जुलाई 2022 और जून 2023 के बीच 3.9% बेरोजगारी दर दर्ज की गई.
2020 के चुनावों में बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे पर सवार तेजस्वी यादव बिहार में सरकार बनाने के लिए लगभग 12000 वोटों से पीछे रह गए, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि राज्य की युवा आबादी चुनाव के दौरान राजद नेता के समर्थन में सामने आई.
चूंकि बिहार अगले 6 महीनों में राज्य में एक और बड़े चुनाव के लिए तैयार है, इसलिए राजद नेता एक बार फिर बेरोजगारी और पलायन के मुद्दों पर भरोसा कर रहे हैं. उन्होंने राज्य में सरकार बनने पर बिहार में 100% अधिवास नीति लागू करने का वादा किया है और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर देने का भी वादा किया है.
प्रशांत किशोर
चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने और जन सुराज पार्टी के संयोजक प्रशांत किशोर भी राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों में चुनावी किस्मत आजमाएंगे, क्योंकि उन्होंने सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है.
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प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर, 2024 को बिहार के कोने-कोने में अपनी लगभग 2 साल की "पदयात्रा" पूरी करने के बाद अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी बनाई, जहां उन्होंने युवाओं से संपर्क बनाया और अब भ्रष्टाचार, पलायन और बेरोजगारी जैसे मुख्य मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.
प्रशांत किशोर ने वादा किया है कि अगर 2025 में उनकी सरकार बनी तो बिहार के बेरोजगार युवाओं को नौकरी की तलाश में दूसरे राज्यों में नहीं जाना पड़ेगा, बल्कि उन्हें यहीं नौकरी मिलेगी. पूर्व चुनाव रणनीतिकार ने कई मौकों पर राज्य में रोजगार के अवसरों की कमी को लेकर सीएम नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव पर निशाना साधा है.
कन्हैया कुमार
कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार भी पलायन और बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर मैदान में उतरे और हाल ही में उन्होंने बिहार में "पलायन रोको-नौकरी दो" पदयात्रा की. बिहार में कांग्रेस अपनी चुनावी संभावनाओं को पुनर्जीवित करने और युवा कन्हैया कुमार के माध्यम से संगठन को फिर से जीवंत करने की कोशिश कर रही है, जो राज्य के युवाओं से जुड़ने की कोशिश भी कर रहे हैं.
कन्हैया कुमार ने अपनी पदयात्रा के दौरान नीतीश कुमार पर पिछले 20 वर्षों में राज्य को विफल करने और रोजगार के अवसर पैदा न करने का आरोप लगाया, जिसके कारण युवा बिहारियों की एक बड़ी आबादी नौकरी की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करने को मजबूर हुई.