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सरकारी कर्मचारी अपने बच्चों को सरकारी स्‍कूलों में पढ़ाएं: कोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि सरकारी कर्मचारी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए राज्य के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित प्राइमरी स्‍कूलो में भेजें.

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goverment school
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि सरकारी कर्मचारी, निर्वाचित जनप्रतिनिधि, न्यायपालिका के सदस्य एवं वे सभी अन्य लोग सरकारी खजाने से वेतन एवं लाभ मिलता है, अपने बच्चों को पढ़ने के लिए राज्य के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित प्राइमरी स्‍कूलो में भेजें.

न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने यह फैसला सुनाते हुए यह भी कहा कि आदेश का उल्लंघन करने वालों के लिए दंडात्मक प्रावधान किये जाएं. अदालत ने कहा, उदाहरण के लिए यदि किसी बच्चे को किसी ऐसे प्राइवेट स्‍कूल में भेजा जाता है जो कि यूपी बोर्ड की ओर से संचालित नहीं है तो ऐसे अधिकारियों या निर्वाचित प्रतिनिधियों की ओर से फीस के रूप में भुगतान किये जाने वाली राशि के बराबर धनराशि प्रत्येक महीने सरकारी खजाने में तब तक जमा की जाए जब तक कि अन्य तरह के प्राइमरी स्कूल में ऐसी शिक्षा जारी रहती है.

अदालत ने कहा, इसके अलावा ऐसे व्यक्तियों को, यदि वे सेवा में हैं तो उन्हें कुछ समय (जैसा मामला हो) के लिए अन्य लाभों से वंचित रखा जाये जैसे वेतन वृद्धि, प्रमोशन या जैसा भी मामला हो.

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अदालत ने इसके साथ ही कहा कि यह एक उदाहरण है. अदालत ने कहा कि सरकार की ओर से उचित प्रावधान किये जा सकते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उपरोक्त व्यक्तियों को इसके लिए बाध्य किया जाए कि वे अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा बोर्ड की ओर से संचालित प्राइमरी स्‍कूलों में दिलायें.

यह आदेश उमेश कुमार सिंह एवं अन्य की ओर से दायर उस याचिका पर आया जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश में 2013 और 2015 के लिए सरकारी प्राइमरी स्‍कूलों एवं जूनियर हाईस्कूल के लिए सहायक शिक्षकों के चयन की प्रक्रिया को चुनौती दी थी.

इनपुट: भाषा

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