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दो बार माउंट एवरेस्ट चढ़ने वाली अनिता, अब यहां की चढ़ाई कर रचेंगी इतिहास

चाइना और नेपाल दोनों रास्तों से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बन चुकी अनीता कुंडू का अगला लक्ष्य छह महाद्वीपों की ऊंची चोटी पर चढ़ने का है.

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Mountaineer Anita Kundu
Mountaineer Anita Kundu

चाइना और नेपाल दोनों रास्तों से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बन चुकी अनीता कुंडू का अगला लक्ष्य छह महाद्वीपों की ऊंची चोटी पर चढ़ने का है. अभियान की शुरूआत इस साल मार्च से होगी जिसे अगले साल सितंबर तक पूरा करने की उम्मीद जताई जा रही है.

जानें कौन हैं अनिता

अनिता कुंडू हरियाणा के हिसार की रहने वाली हैं. वह एक जगह से आती हैं जहां लड़कियों को खुली छूट नहीं दी जाती. लेकिन विपरित परिस्थितियों के चलते वह भारत की पहली महिला बनीं जिन्होंने नेपाल और चीन दोनों साईड से विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर पहुंचकर भारत का नाम रौशन किया.

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ऐसे शुरू की माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई

अनिता कुंडू ने 11 अप्रैल 2017 को चीन की तरफ से चढ़ाई शुरू की थी. बताया जाता है कि उस वक्त एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाले ग्रुप में 8-10 सदस्य थे. इनमें अनिता एकमात्र महिला पर्वतारोही थी. बता दें, चढ़ाई के दौरान जल्द ही अनीता से संपर्क टूट गया था. लेकिन कुछ दिनों बाद फिर खबर आई कि वह शिखर से कुछ 1,100 मीटर की दूरी पर थी और फिर उन्होंने माउंट एवेरेस्ट पर भारतीय ध्वज फहराया.

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वहीं कई भारतीयों ने एवरेस्ट फतह करके भारत का नाम रौशन किया है. एवरेस्ट पर सांस जमाने वाली ठंड होती है. वहां जरा भी गलती की गुंजाइश नहीं होती है. अगर किसी ने भूल से कोई गलती कर दी तो उसे अपनी जान देकर उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है.

अनीता का अब तक का सफर

साल 2008 में अनीता हरियाणा पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भर्ती हुई. 2011 में उन्होंने लेह-लद्दाख की 22 हजार फीट ऊंची चोटी पर चढ़ाई की. 2011 में ही अनीता ने उत्तराखंड की सतोपंथ की 23 हजार फीट ऊंची चोटी पर चढ़ाई की थी. इसके बाद अनीता ने नेपाल के रास्ते से 18 मई 2013 को एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया. साल 2015 में अनीता चाइना की ओर से एवरेस्ट फतेह करने के लिए गई. लेकिन भूकंप के कारण चाइना सरकार ने अभियान बीच में ही रद्द करा दिया था.

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कर्ज लेकर किया मिशन पूरा

अनीता एक मिडिल क्लास परिवार से ताल्लुक रखती है. उनका सपना पर्वतारोही बनने का था. लेकिन परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह पर्वतारोही बनने का खर्चा उठा सके. माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए उन्हें रिश्तेदारों से कर्ज लेना पड़ा था.

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