महाराष्ट्र समेत देश के अधिकतर राज्य चाहते हैं कि केंद्र, शिक्षा के अधिकार कानून में संशोधन करे और पहली से आठवीं कक्षा के स्टूडेंट्स को फेल नहीं करने की नीति खत्म करे.
महाराष्ट्र के गृह राज्य मंत्री रंजीत पाटिल ने कहा 'केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (CABE) की हाल की बैठक में अधिकतर राज्यों ने केंद्र सरकार से फेल नहीं करने की नीति समाप्त करने का आग्रह किया क्योंकि स्टूडेंट्स परीक्षा को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं.'
उन्होंने आगे कहा कि केब की बैठक में हमने स्टूडेंट्स को उसी कक्षा में रोकने के बारे में चर्चा की. हमने केंद्र को पुरजोर तरीके से बताया कि इस नीति से अल्पावधि में चीजें आसान होती हैं लेकिन नौवीं व दसवीं कक्षा की पढ़ाई उनके लिए कठिन हो जाती है.
बैठक में प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई. महाराष्ट्र की मौजूदा शिक्षा व्यवस्था के बारे में पाटिल का कहना था ' हमने केंद्र को बताया कि महाराष्ट्र ने शिक्षा के क्षेत्र में क्या क्या कार्य किया है . इसमें बच्चों पर बस्ते का बोझ कम करने की दिशा में उठाये गए कदम शामिल हैं. हमने यह भी कहा कि एनसीसी और एनएसएस वैकल्पिक विषय बनाये जा सकते हैं.'
पाटिल का मानना है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत फेल नहीं करने की नीति एक महत्वपूर्ण आयाम है. शिक्षा का अधिकार कानून एक अप्रैल 2010 को लागू किया गया था जिसके तहत स्कूलों में छह से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करने का अधिकार दिया गया है. इस नीति का विचार यह था कि स्कूलों में बच्चों के बीच में ही पढ़ाई छोड़ने के चलन को कम किया जा सके जिसमें से कई फेल होने के कारण बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं.
इनपुट: भाषा