अगर ये कहा जाए, कि दुनिया को चलाने में मुख्य भूमिका मजदूरों की होती है तो ये कहना गलत नहीं होगा. 1 मई को दुनिया के कई देश मजदूर दिवस मनाते हैं. भारत में पहली बार 1 मई 1923 को हिंदुस्तान किसान पार्टी ने मद्रास में मजदूर दिवस मनाया था. 1 मई को 80 से ज्यादा देशों में राष्ट्रीय छुट्टी होती है. वहीं, कनाडा में मजदूर दिवस सितंबर के पहले सोमवार को मनाया जाता है. इन दिन को लेबर डे, मई दिवस, श्रमिक दिवस और मजदूर दिवस भी कहा जाता है. ये दिन पूरी तरह श्रमिकों को समर्पित है.
कब से हुई थी मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत
अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस (Labour Day) की शुरुआत मई 1886 में अमेरिका के शिकागो से हुई थी. धीरे-धीरे यह दुनिया के कई देशों में फैल गया. भारत ने भी इसे अपना लिया. भारत में पहली बार 1 मई 1923 को लेबर डे यानी मजदूर दिवस सेलिब्रेट किया गया था.
मजदूर दिवस को कामगार दिन, कामगार दिवस, अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में जाना जाता है. वहीं, अमेरिका में आधिकारिक तौर से सितंबर के पहले सोमवार को मजदूर दिवस मनाया जाता है. हालांकि, मई डे की शुरुआत अमेरिका से ही हुई थी.
जब उठी थी 8 घंटे काम करने की मांग
1886 में मई डे के मौके पर 8 घंटे काम की मांग को लेकर 2 लाख मजदूरों ने देशव्यापी हड़ताल कर दी थी. उस दौरान काफी संख्या में मजदूर सातों दिन 12-12 घंटे लंबी शिफ्ट में काम किया करते थे और सैलरी भी कम थी. बच्चों को भी मुश्किल हालात में काम करने पड़ रहे थे. अमेरिका में बच्चे फैक्ट्री, खदान और फार्म में खराब हालात में काम करने को मजबूर थे.
इसके बाद मजदूरों ने अपने प्रदर्शनों के जरिए सैलरी बढ़ाने और काम के घंटे कम करने के लिए दबाव बनाना शुरू किया. 1889 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय महासभा की बैठक हुई. इस दौरान प्रस्ताव पारित किया गया कि तमाम देशों में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाएगा.