''सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए''
ये वो पंक्तियां हैं जिन्हें किसी ना किसी बड़े राजनीतिक घटनाक्रम के दौरान दोहराया जाता है. युवा दिलों की आवाज़ कहे जाने वाले दुष्यंत कुमार का आज जन्मदिन है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बिजनौर में 1 सितंबर, 1933 को पैदा हुए दुष्यंत ने अपनी कलम से कुछ ऐसा जादू बिखेरा कि हर कोई कायल हो गया.
आज की पीढ़ी दुष्यंत की कायल है, युवाओं ने भले ही दुष्यंत को सामने से देखा या सुना ना हो लेकिन सोशल मीडिया पर उनकी बातें हमें देखने को मिलती रहती हैं. दुष्यंत ने 30 दिसंबर, 1975 को अंतिम सांस ली थी.
अब दुष्यंत का जन्मदिन है तो इस मौके पर आप उनके कुछ शेर पढ़िए, ये शेर आपको आज के राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों की याद दिलाएंगे.
1. ''अब तो इस तालाब का पानी बदल दो,
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं.''
2. ''एक क़ब्रिस्तान में घर मिल रहा है
जिस में तह-ख़ानों से तह-ख़ाने लगे हैं.''
3. ''रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो.''
4. ''आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख,
घर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख.''
5. ''तुम्हारे पांव के नीचे कोई ज़मीन नहीं,
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं.''
6. ''थोड़ी आंच बची रहने दो, थोड़ा धुंआ निकलने दो,
तुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफिर आएंगे.''
7. ''गूंगे निकल पड़े हैं ज़बां की तलाश में,
सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिए.''
8. ''जिस तबाही से लोग बचते थे,
वो सर-ए-आम हो रही है अब.''
9. ''कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीअ'त से उछालो यारो.''
10. ''ज़िंदगी जब अज़ाब होती है,
आशिक़ी कामयाब होती है.''