17 साल की उम्र में जीजा ने चेहरे से बुर्का हटाकर रेशमा का खूबसूरत चेहरा जला दिया था. नफरत की आग में जल रहा वो व्यक्ति रेशमा और उसकी बहन को जलाकर पूरे परिवार का हौसला तोड़ना चाहता था. इस घटना ने रेशमा को पूरी तरह झकझोर दिया था. कभी आत्महत्या करने की सोच रही रेशमा कुरैशी ने कैसे खुद को संभाला और पहुंच गई न्यूयॉर्क फैशन वीक के रैंप तक, इनकी कहानी जानकर आप हैरान रह जाएंगे. शनिवार को इंडिया टुडे माइंड रॉक्स 2019 के सेशन ब्रेकिंग द फ्रंटियर्स: वुमेन ऑन ए मिशन (Breaking the Frontiers: Women on a Mission) में रेशमा ने अपनी पूरी दास्तां कुछ यूं सुनाई.
रेशमा बताती हैं कि 19 मई, 2014 को इलाहाबाद में उसके जीजा ने अपने साथियों के साथ मिलकर उस पर तेजाब फेंका था. रेशमा बताती हैं कि जीजा उनकी बहन को मारते-पीटते थे. वो बहन का साथ देती थीं, पिता भी बहुत परेशान हो गए थे. फिर बहन और अपने दोनों बच्चों को लेकर घर आ गई. यहां उन्होंने बेटे का एडमिशन स्कूल में करवा दिया. जीजा ने उसी दौरान बच्चों को अपने यहां ले गए. इस पर हम लोग कोर्ट गए तो फैसला हमारे पक्ष में हुआ कि बच्चे मां के पास रहेंगे.
घटना वाले दिन मैं बहन के साथ रेलवे स्टेशन के पास से निकल रही थी. तभी अचानक जीजा अपने तीन भाईयों के साथ अचानक सामने आ गया. पहले उन्होंने बहन पर तेजाब फेंका, तेजाब के हाथ पर गिरे, मैं भाग पाती इससे पहले जीजा ने मेरा बुर्का हटाकर मेरे चेहरे पर तेजाब फेंक दिया, मेरा चेहरा बुरी तरह जलने लगा था. हम कई घंटे चीखते रहे, किसी ने हमारी मदद नहीं की. आखिर में एक व्यक्ति ने हमें अस्पताल पहुंचाया. घटना के पांच घंटे बाद इसकी एफआईआर लिखी गई.
अपना चेहरा देखा तो आत्महत्या का ख्याल आया
रेशमा ने बताया कि घटना से मेरी बाईं आंख की रोशनी चली गई थी. मेरा चेहरा भी बुरी तरह से झुलस गया था. घर में शीशे में चेहरा देखा तो मरने का ख्याल आने लगा. परिवार वालों और पिता ने समझाया कि अगर मैं ऐसा कदम उठाती हूं तो उसके हौसले बढ़ जाएंगे, फिर वो सभी के साथ ऐसा कर सकता है.
फिर यूं बदली जिंदगी
रेशमा बताती हैं कि इसी दौरान मेरी मुलाकात रिया शर्मा से हुई. वो मेक लव, नॉट स्कार अभियान चला रही थीं. वो मुझसे मिलीं तो तीन घंटे तक मुझे गले लगाए रखा. मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास वापस लाईं, इनके साथ के बाद ही मुझे न्यूयॉर्क फैशन वीक के रैंप तक जाने का वक्त मिला. वहां पहुंचकर मुझे भीतर से महसूस हुआ कि अभी मेरी जिन्दगी खत्म नहीं हुई है. वो कहती हैं कि बस मैं ये चाहती हूं कि समाज की सोच और कानूनी प्रक्रिया में बदलाव जरूर होना चाहिए.