गांधी ने इसके विरोध में यरवदा (पूना) जेल में 18 अगस्त, 1932 को 20 सितम्बर, 1932 से आमरण अनशन करने की घोषणा कर दी. गांधी का कहना था कि इससे अछूत हिन्दू समाज से अलग हो जायेंगे, जिससे हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म विघटित हो जायेगा. साथ ही उन्होंने इसका विरोध करते हुए कई प्रयास किए.