पूर्वी बंगाल का नोआखाली जिला जिन्ना के 'डायरेक्ट एक्शन प्लान' की भेंट चढ़ा था. मुस्लिम बहुल इस जिले में हिंदुओं का व्यापक कत्लेआम हुआ था.
कलकत्ता में 72 घंटों के भीतर 6 हजार से अधिक लोग मारे गए थे. 20 हजार से अधिक घायल हो गए थे. 1 लाख से अधिक बेघर हो गए थे. इसे ग्रेट कलकत्ता किलिंग भी कहा जाता है.
इस कत्लेआम की शुरुआत मुस्लिम लीग द्वारा 'डायरेक्ट एक्शन डे' की घोषणा से हुई थी. ये 'सीधी कार्रवाई' मुस्लिम लीग का अभियान था, जो पाकिस्तान को देश के रूप में भारत से अलग करने के लिए चलाया गया था. कहा जाता है कि लीग के उकसाने पर ही ये दंगे हुए.
हिंदू कुछ और ज्यादा हिंदू हो गए थे और मुसलमान कुछ और ज्यादा मुसलमान. सदियों पुरानी हिंदू-मुस्लिम एकता की भव्य इमारत को अंग्रेजी तंत्र का दीमक चाट चुका था.
जिन्ना पाकिस्तान बनाने की उतावली में पागलपन की हद तक पहुंच गए थे. 15 अगस्त, 1946 को उन्होंने हिंदुओं के खिलाफ 'डायरेक्ट एक्शन' (सीधी कार्रवाई) का फरमान जारी कर दिया. हिंदू महासभा भी 'निग्रह-मोर्चा' बनाकर प्रतिरोध की तैयारियों में जुट गई. गृहयुद्ध की सारी परिस्थितियां सामने थीं.
हिंदुस्तान की धड़कनों को पहचानने वाले महात्मा गांधी आने वाले समय की भयंकरता समझ रहे थे. बापू ने आखिरी वाइसराय माउंट बेटन से अपनी दूसरी मुलाकात में साफ-साफ कह दिया, 'अंग्रेजी तंत्र की 'फूट डालो और शासन करो' की नीति ने वह स्थिति बना दी है, जब सिर्फ यही विकल्प बचे हैं कि या तो कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए अंग्रेजी राज ही चलता रहे या फिर भारत रक्त स्नान करे.
पंद्रह दिन तक तो बाकी दुनिया को इस नरसंहार की कानोकान खबर तक नहीं पहुंची. इसे नियति की विडंबना ही कहेंगे कि जिन मुसलमानों ने यह बर्बर कृत्य किया, दरअसल नोआखाली के वे गरीब, अशिक्षित, बहकाए हुए मुसलमान मुश्किल से पचास वर्ष पूर्व के धर्म-परिवर्तित हिंदू थे.
नोआखाली नरसंहार ने समूचे हिंदुस्तान को स्तब्ध कर दिया. हिंदू-मुस्लिम एकता के गांधी के प्रयासों को यह एक बहुत बड़ा धक्का था. बापू के लिए परीक्षा की असली घड़ी आ गई थी. उन्होंने तुरंत दिल्ली से नोआखाली जाने का निर्णय लिया. वहां अनशन किया और फिर ये नरसंहार रुक सका.