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मनपसंद मोड में नौकरी! वर्क फ्रॉम होम कल्चर ने तो औरतों की किस्मत ही बदल डाली

Work From Home Culture: कुछ बदलाव इतने धीरे से आते हैं कि वो बहुत मुखर तौर पर दिखाई नहीं देते. ऐसा ही एक बदलाव पोस्ट कोरोना नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी पर आया है. एक रिपोर्ट कहती है कि महिलाएं वर्क फ्रॉम होम कल्चर के जॉब में धड़ल्ले से आवेदन कर रही हैं. आवेदन करने वालों में उनकी संख्या काफी ज्यादा है. aajtak.in ने इसके बारे में कुछ कंपनियों से बात करके तथ्य जानें.

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प्रतीकात्मक फोटो (Getty)
प्रतीकात्मक फोटो (Getty)

Work From Home For Women, Post Covid Situation: औरत की जिंदगी इतनी आसान नहीं होती. वो पढ़ लिख ले, डिग्री पा ले, लेकिन एक दिन जब उस पर घर-पति-बच्चे की जिम्मेदारी आती है तो कहीं न कहीं उसका करियर प्रभावित हो ही जाता है. लेकिन कोरोना का बुरा दौर बीतने के बाद आए वर्क फ्रॉम होम कल्चर ने महिलाओं के लिए घर पर रहकर स्वाभ‍िमान से जीने का मौका भी दिया है. औरतें इसके लिए आगे भी आ रही हैं. भले ही ऑफिस का वर्क कल्चर महिलाओं को और भी कॉन्फिडेंट बनाता है लेकिन फिर भी करियर छोड़ने की मजबूरी से कहीं अच्छा है अपने हालातों के लिहाज से मौके मिल जाना. 
 
हाल ही में आई इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार  कोविड के बाद महिलाएं ऐसी कंपनियों में काम करने को तवज्जो दे रही हैं, जो घर से काम करने या हाइब्रिड मॉडल में काम करने की सुविधाएं दे रही हैं. रिपोर्ट में आरपीजी ग्रुप का हवाला दिया गया है, जिसमें नौकरियों के लिए आवेदन करने वालों में महिलाओं की संख्या में 15-20 फीसदी का उछाल आया है. 

RNF Technologies की हेड ऑफ ह्यूमन रिसोर्सेज गुंजन मिश्रा ने aajtak.in से बताया कि अपने यहां  हमलोग टेक एंड कंटेंट राइटिंग जैसी टीम में WFH मोड पर ऑपरेट कर रहे हैं. इसके लिए हमें लगभग 70 % ऍप्लिकेशन्स वीमेन कैंडिडेट्स की आती हैं. वही जब हम लोग WFO यानी वर्क फ्रॉम ऑफिस के लिए हायरिंग करते हैं तो सिर्फ 40% के आसपास वीमेन कैंडिडेट्स के आवेदन आते हैं. 

वो बताती हैं कि मैं पिछले सात साल से इस कंपनी में HR मैनेजर के पद पर काम कर रही हूं, हमें WFH देने का अपना अलग अनुभव मिला है, इससे कंटेंट क्वालिटी और आउटपुट अच्छा मिलता है. साथ ही महिलाएं अपना वर्क लाइफ बैलेंस भी कर सकती हैं. गुंजन कहती हैं कि मैं खुद दो बच्चों की मां हूं, और ये बाखूबी समझती हूं कि एक महिला के लिए कितना कठ‍िन है, मां के तौर पर बच्चे और घर संभालना साथ ही काम करके अपना करियर बनाना, खासकर जब बच्चे एक दो साल के हों तो ये और भी मुश्क‍िल हो जाता है. 

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अगर इसे बच्चों के प्वाइंट ऑफ व्यू से देखें तो मनोविज्ञान भी यही है कि बच्चे को एक उम्र में माता-पिता की ओर से प्रॉपर ध्यान और देखभाल की ज़रूरत होती है. अब पुरुष तो इस मामले में कम ही समझौता करते हैं, अक्सर औरतों को अपनी जॉब तक छोड़नी पड़ती है या फिर बहुत सारी working ladies को अपने छोटे छोटे बच्चे, जो कि साल- दो साल के होते हैं, उन्हें daycare facility में मजबूरन छोड़ना पड़ता है. इससे उनकी मानसिक परवरिश पर गंभीर असर पड़ता है जो आगे जाकर घातक सिद्ध हो सकता है. ऐसे में WFH का विशेषाध‍िकार ऐसी माताओं के लिए फायदेमंद होता है. अब चूंकि महिलाएं वाकई मल्टी टास्क‍िंग में पुरुषों से आगे होती हैं तो वो अपने घर की देख-रेख के साथ अपने काम पर भी सही तरह से  focus कर सकती हैं.

वो कहती हैं कि जब वर्क फ्रॉम होम के लिए महिला आवेदकों की संख्या इतनी ज्यादा  है तो हम कोश‍िश करते हैं कि हमारे एम्प्लाइज को मनचाहा वर्क‍िंग मॉडल मिले. इसलिए हमने खुशी-खुशी, जिन महिलाओं ने भी चाहा, उन्हें WFH दिया. ये ज़रूरी भी है क्योंकि अगर कर्मचारी संतुष्ट रहेंगे तभी वो फोकस होकर काम कर सकेंगे. वहीं वर्क फ्रॉम होम में हमारी भी रीच बढ़ी है, पहले जहां दिल्ली एनसीआर से ही आवेदन मिलते थे अब इंडिया के दूसरे शहरों से भी आवेदन मिल रहे हैं. 

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वर्क फ्रॉम होम करने वाली कानपुर की चयनिका निगम कहती हैं कि साल 2012 में उन्होंने नौकरी छोड़ी थी, फिर शादी के बाद वो पति के साथ दूसरे शहर चली गईं. जब जॉब तलाशने की बारी आई तब तक प्रेगनेंसी आ गई. फिर बच्चे के बाद जब वो नौकरी के लिए गईं तो जॉब में काफी गैप आ चुका था, साथ ही नौकरीदाताओं का रवैया भी इतना अच्छा नहीं था. हारकर वो फ्री लांसिंग करने लगीं. चयनिका कहती हैं कि अगर उस दौर में वर्क फ्रॉम होम कल्चर चलन में होता तो उन्हें करियर को इस तरह दोराहे में नहीं छोड़ना पड़ता. 

ताजा रिपोर्ट में एजुटेक के क्षेत्र में एक अरब डॉलर के वैल्यूएशन वाली कंपनी यूनिकॉर्न एरुडिटस ग्रुप में महिलाओं का अनुपात सभी स्तरों पर बढ़कर 51 फीसदी पर पहुंच गया है जोकि महामारी से पहले 41 फीसदी थी. एचआर टेक्नोलॉजी स्टार्टअप स्प्रिंगवर्क्स में 100 फीसदी वर्क फ्रॉम होम की सुविधा है. अब यहां पर महिलाओं का अनुपात 30 फीसदी से बढ़कर 35 फीसदी हुआ है. 

जानकार मानते हैं कि महिलाओं को नौकरी पर रखना उद्योगों की टैलंट रणनीति का प्रमुख हिस्सा बन गया है. खासकर जो करियर की दूसरी पारी की शुरुआत चाहती हैं, उन्हें घर से या कहीं से भी काम करने की सुविधा दी जा रही है, ताकि वे काम पर बनी रहें. 

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कोरोना से पहले अपने बच्चे के लिए जॉब छोड़ने वाली सारिका (बदला नाम) कहती हैं कि मेरे घर में बच्चे को देखने वाला कोई नहीं था. पति का टूरिंग जॉब था तो वहीं बेटी को लिमिटेड टाइम के लिए क्रेच में छोड़ सकते थे. कोई विश्वासपात्र केयर टेकर भी नहीं मिल रही थी. पति की सैलरी ज्यादा थी, तो आख‍िर में यही फैसला हुआ कि मैं जॉब छोड़ूं. मेरी कंपनी ने कुछ दिन मुझे वर्क फ्रॉम होम की मोहलत दी थी, लेकिन तब चलन नहीं था तो ज्यादा दिन तक यह नहीं चला. फिर मैंने जॉब छोड़ दी. अब फिर से वर्क फ्रॉम होम कल्चर में काम करने के लिए अप्लाई किया है, कई जगह बातचीत भी चल रही है. 

 

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