"पता नहीं बचपन में किससे सुना था, लेकिन मुझे ये छठी क्लास में ही समझ आ गया था कि पढ़कर ही मैं कुछ कर सकती हूं. बस, तभी मैंने किताबों से दोस्ती कर ली थी, किताबों की संगत ने ही आज मेरी और परिवार की किस्मत पलट दी है."
गाजियाबाद के खोड़ा इलाके में रहकर पढ़ाई करने वाली रोहिणी के पास आज जब 21 लाख रुपये सालाना की नौकरी का ऑफर लेटर है, तो उन्हें अपने बचपन की वो बात याद आती है. जब उन्होंने खुद से वादा किया था कि कैसे भी वो अच्छी पढ़ाई करके अपने हालात बदल देंगी. आज उन्होंने यह करके भी दिखा दिया है. आइए जानते हैं रोहिणी मिश्रा की कहानी.
खोड़ा गाजियाबाद का वो इलाका जहां करीब 48 हजार मकानों में 12 लाख लोग रहते हैं. यहां यूपी-बिहार से आए उन प्रवासियों की ज्यादा संख्या है जो छोटे-मोटे काम करके आजीविका कमाने सालों पहले यहां आए थे. इनमें से ही एक इंद्र मोहन मिश्रा का परिवार भी यहां किराये पर रहता था. एक किराये के कमरे में उनकी पत्नी सुषमा मिश्रा, बेटी रोहिणी मिश्रा और बेटा रोहित भी रहता था.
सरकारी स्कूल से की पढ़ाई
रोहिणी बताती हैं कि खोड़ा में एक सिंगल रूम में हम चारों रहते थे. हमारी लोअर मिडिल क्लास फैमिली थी, पापा को अपनी प्राइवेट जॉब से बमुश्किल परिवार का भरण पोषण, घर का किराया मुश्किल से होता था. ऐसे में हम लोगों की पढ़ाई और भी मुश्किल काम थी. पहले हम नोएडा के 122 सेक्टर में रहते थे तो वहां किसी की सिफारिश से पिता ने एक प्राइवेट स्कूल में मेरा और भाई का एडमिशन करा दिया था. वहां हमारी न के बराबर फीस लगती थी.
वो बताती हैं कि पांचवीं के बाद पढ़ाई महंगी होने के कारण मेरा और भाई का सरकारी स्कूल में दाखिला हो गया था. वहां पर पढ़ाई चल रही थी तो ट्यूशन के लिए काफी लोड होता था.अब सीबीएसई बोर्ड से यूपी बोर्ड की पढ़ाई करनी थी तो ये मुश्किल लग रहा था. ट्यूशन पढ़ नहीं सकते थे. फिर नौवीं तक मैंने घर में मेहनत करके अपनी पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन किया.
पहली बार 10वीं में किया टॉप
मुझे पता चला कि सेक्टर 62 में योगदा सत्संग सोसाइटी से जुड़े कुछ लोग बच्चों को पढ़ा देते हैं. यहां आश्रम में कुछ लोगों से मिली तो पता चला कि आईआईटी से पढ़कर इंजीनियर बन सकते हैं, तो मैंने 9वीं में ही ठान लिया कि जेईई और फिर एडवांस का एग्जाम निकालना है. यहां से मेरी स्टडी में ग्रोथ होना शुरू हुआ. फिर दसवीं बोर्ड में साल 2018 में गौतम बुद्ध नगर में सरकारी स्कूल के टॉपर्स में पांचवीं रैंक आई. मुझे 89 पर्सेट नंबर मिले थे.
रोहिणी बताती हैं कि उस समय मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने बच्चों को पुरुस्कृत किया था लेकिन मेरी दादी उसी समय गुजर गई थीं तो मैं उनके हाथ से प्राइज नहीं ले पाई थी, फिर स्कूल ने मुझे वो पुरस्कार दिया. 12वीं में आई जिले में तीसरी रैंक मैंने उसके बाद पढ़ाई में ही पूरा फोकस कर दिया.
किताबों में ही जीने लगी थी
मैंने ठान लिया था कि कोई भी ध्यान भटका नहीं सकता. मैं बस किताबों में ही जीने लगी थी. सुबह ब्रश वगैरह करके पढ़ना शुरू करती तो दिन में जब भी समय मिलता बस पढ़ने बैठ जाती. 12वीं के साथ साथ जेईई की भी पढ़ाई कर रही थी. उस साल 12वीं बोर्ड में मेरी 84 पर्सेंट लाकर जिले में तीसरी रैंक आई. तत्कालीन डीएम सुहास एलवाई सर ने पुरस्कृत किया और न्यूज पेपर में फोटो भी आई. उसमें एक लाइन मैंने बोली थी कि मैं आगे चलकर जेईई क्लीयर करना चाहती हूं. तब तैयारी में लगी हुई थी लेकिन फर्स्ट अटेंप्ट में मेरा निकल नहीं पाया था तो 12वीं के बाद एक साल ड्राप लिया.
उस समय एक नई नई कोचिंग शुरू हुई थी तो डिस्काउंट वगैरह मिल रहा था. मैंने वहां से ही पढ़ा. मेरे पापा ने लोगों से कर्ज लेकर कोचिंग कराई. इसके बाद मेरी 7483वीं रैंक आई, इससे मेरा आईआईटी खडगपुर में सेलेक्शन हुआ.अब मेरे चार साल खत्म होने वाले हैं, यहां से मेरा प्लेसमेंट लग गया है, नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया से 21 लाख रुपये की सीटीसी ऑफर हुई है.
सबसे पहले कर्ज चुकाऊंगी
अभी तीन चार महीने की पढ़ाई और बची है. सबसे पहले कर्ज चुकाऊंगी अब जब जॉब समझिए मिल ही गई है तो मैंने तय किया है कि सबसे पहले अपना और पापा का कर्ज चुकाऊंगी. मेरे जैसे कई बच्चे तो आज भी यही सोचते हैं कि आईआईटी की महंगी पढ़ाई कैसे करेंगे? मेरी फैमिली भी 10-12 लाख फीस अफोर्ड नहीं कर सकती थी. इसलिए मैंने बैंक लोन लेकर पढ़ाई की.खैर मुझे स्कॉलरशिप वगैरह मिली है तो मुझे 12 नहीं बल्कि 6 लाख ही देना पड़ रहा है. अब मेरा भाई भी एअरफोर्स में अग्निवीर से सेलेक्ट हुआ है. माता-पिता की खुशी देखकर मन बहुत खुश है.