
पिछले कुछ महीनों से हिंसा से जूझ रहे मणिपुर की चर्चाएं संसद में जोर शोर से हो रही है. वहां के हालातों ने हर आम खास व्यक्ति के जीवन पर विपरीत असर डाला है. लेकिन हिंसा प्रभावित मणिपुर के हालातों के असर से वहां का छात्र समुदाय भी अछूता नहीं है. इस संकट के बीच एक कम्यूनिटी के तौर पर मणिपुर के छात्रों को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. यहां चल रहे इंटरनेट प्रतिबंध, कर्फ्यू और प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण युवा छात्रों को काफी मानसिक आघात पहुंचा है.
खासकर उन छात्रों को जो आजकल मणिपुर विश्वविद्यालय की सेमेस्टर परीक्षाओं में शामिल हो रहे हैं, उनके लिए ये परीक्षा किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है. कई ऐसे छात्र भी हैं जो स्थिति के कारण राहत शिविरों में रहने के लिए मजबूर हो हैं लेकिन फिर भी अपने भविष्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वे इन हालातों में भी एग्जाम दे रहे हैं. इंडिया टुडे ने छात्रों से बातचीत करके उनके हालात जाने.
इम्फाल कॉलेज की अंतिम वर्ष की छात्रा 21 वर्षीय मोनिका मैत्रम दो दिन पहले छठे सेमेस्टर की राजनीति विज्ञान की परीक्षा में बैठी थी. उन्होंने बताया कि मई के पहले सप्ताह से चुराचांदपुर में उनका घर, जहां उनके माता-पिता भी थे, वो जला दिया गया था. भले ही उस दौरान वो इम्फाल में अपनी मौसी के साथ रह रही थीं, लेकिन उनके दिमाग पर इसके बुरे असर को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता.
मोनिका ने कहा कि यह हमारे लिए कठिन है. मैं इस संकट के कारण पढ़ाई में ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही हूं. जिस घर में मेरे माता-पिता रहते थे वह जल गया है और मैं परीक्षा पर ध्यान कैसे केंद्रित कर सकती हूं? दूसरी तरफ मैं मणिपुर विश्वविद्यालय में अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई जारी रखना चाहती हूं. एक अन्य छात्र ऋषिकांत ने कहा कि पहाड़ी इलाकों से आने वाले कई छात्रों को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.

वो बताते हैं कि कर्फ्यू के कारण पहाड़ी इलाकों से आने वाले छात्रों के सामने और बड़ी मुसीबत ये है कि वो परीक्षा की तैयारी के लिए कहीं भी इंटरनेट का उपयोग नहीं कर सके. हमारे लिए कुछ डाउनलोड करना संभव नहीं था और न ही एप्लिकेशन जैसा कुछ सबमिट करना संभव था. कुछ सीमित इंटरनेट कनेक्शन हैं लेकिन वे भी सभी के लिए नहीं हैं. ऋषिकांत ने इन हालातों में भी चौथे सेमेस्टर के इतिहास की परीक्षा में हिस्सा लिया.
एक राहत शिविर में रह रहे छात्र शीतलजीत ने कहा कि यह हमारे जैसे लोगों के लिए मुश्किल है. तीन मई से मैं अपने माता-पिता के साथ एक राहत शिविर में हूं, कोई इंटरनेट नहीं, बात करने के लिए कोई लोग नहीं, यह मुश्किल था. चौथे सेमेस्टर की छात्रा ग्लीना ने कहा कि छात्रों को एक मानसिक आघात का सामना करना पड़ा है. चाहे कर्फ्यू हो या गोलीबारी, इसका असर छात्रों पर पड़ा है.
ग्लीना ने कहा कि बंदूक, गोलियों की आवाजों ने स्टूडेंट्स को बहुत आघात पहुंचाया है. मुझे उम्मीद है कि कॉलेज फिर से खुलेंगे ताकि छात्र अपने शैक्षणिक संस्थानों में वापस आ सकें.
छात्र जीतली ने इस सेमेस्टर में इतिहास परीक्षा दी. वो कहते हैं कि अब राहत शिविर में रहना बेहद मुश्किल हो गया है. उनका कहना है कि वह तोरबुंग में थे लेकिन मई महीने से माता-पिता के साथ रह रहे हैं. जीतली ने कहा कि हमारे पास किताबें या इंटरनेट नहीं हैं. राहत शिविर में यह बेहद कठिन है, हमारे पास उन राहत शिविरों में परीक्षा से संबंधित किसी भी चीज़ पर चर्चा करने के लिए कोई नहीं है. परीक्षाओं में देरी हो सकती है, मुझे लगता है कि शिक्षा प्रणाली और मंत्री असफल हो गए हैं.
विश्वविद्यालय ने पहले छठा सेमेस्टर आयोजित किया और अब वे चौथा सेमेस्टर आयोजित कर रहे हैं. अधिकारियों ने दावा किया कि छात्रों के लिए समय में छूट दी गई है, यानी परीक्षाएं सुबह 10 बजे से शुरू होंगी, न कि सामान्य समय सुबह 9 बजे से. अधिकारियों ने बताया कि सरकार ने कॉलेजों या केंद्रों से कहा है कि जिन छात्रों को कोई निश्चित कॉलेज नजदीक लगता है, उन्हें उसमें बैठने की इजाजत दी जाए.