scorecardresearch
 

क्या थी लक्ष्मीबाई कॉलेज की वो कंट्रोवर्स‍ियल रिसर्च, जिसमें गोबर पोतने को लेकर मचा बवाल

प्रिंसिपल ने कहा कि नई शिक्षा नीति कहती है कि सस्टेनेबल डेवलपमेंट और हमारी संस्कृति-ज्ञान परंपरा के बीच पुल बनना चाहिए. शिक्षा जीवन से और अपनी जड़ों से जुड़ी होनी चाहिए. हमने यही कोशिश की कि प्रकृति के माध्यम से समाधान तलाशें. 

Advertisement
X
लक्ष्मीबाई कॉलेज की वो क्लासरूम जिसे लेकर हुई कंट्रोवर्स‍ी
लक्ष्मीबाई कॉलेज की वो क्लासरूम जिसे लेकर हुई कंट्रोवर्स‍ी

एक वायरल वीडियो ने दिल्ली के लक्ष्मीबाई कॉलेज को चर्चा में ला दिया है. सोशल मीडिया पर दावा किया गया कि कॉलेज की क्लासरूम में 'गोबर से पुताई' की जा रही है. सोशल मीड‍िया में कई तरह के कमेंट आए, कुछ इसकी तारीफ में और कुछ तंज में. लेकिन इस पूरी कंट्रोवर्सी के पीछे की असल कहानी क्या है? क्या वाकई गोबर से पुताई हुई थी? कॉलेज प्र‍िंस‍िपल डॉ प्रत्यूष वत्सला और इस रिसर्च में शामिल टीम ने बताई पूरी सच्चाई. 

डॉ प्रत्यूष वत्सला ने कहा कि मामला जैसा दिख रहा है, ये वैसा है नहीं. लक्ष्मीबाई कॉलेज के कैंपस में सेकेंड फ्लोर पर बने कुछ पोर्टा केबिन्स क्लासरूम के तौर पर इस्तेमाल होते हैं. गर्मियों में इन पोर्टा केबिन्स में हीट स्ट्रेस की समस्या रहती है. ऐसे में कॉलेज की EVS (पर्यावरण अध्ययन) फैकल्टी ने स्थानीय, प्राकृतिक और कम खर्चीले उपायों पर विचार करना शुरू किया. प्रिंसिपल ने कहा कि नई शिक्षा नीति कहती है कि सस्टेनेबल डेवलपमेंट और हमारी संस्कृति-ज्ञान परंपरा के बीच पुल बनना चाहिए. शिक्षा जीवन से और अपनी जड़ों से जुड़ी होनी चाहिए. हमने यही कोशिश की कि प्रकृति के माध्यम से समाधान तलाशें. 

‘गोबर प्लास्टर’ या ‘मिट्टी का स्पर्श’? क्या हुआ था असल में?

वो कहती हैं कि सोशल मीडिया पर जो वीडियो वायरल हुआ, वह रविवार को बनाया गया था. उस दिन कॉलेज बंद रहता है. मैंने खुद फैकल्टी ग्रुप में एक देसी प्रयास की झलक शेयर की. मैंने खुद भी फील लेने के लिए मिट्टी-गोबर व अन्य पदार्थों से तैयार इस प्लास्टर को दीवार पर लगाया. मेरा इरादा क्लासरूम की दीवारों पर एथनिक फील और कूलिंग इफेक्ट के लिए मिट्टी आधारित प्लास्टर के ट्रायल का था.

Advertisement

उस वीडियो में जो दिखा, वो सिर्फ एक पहल थी, ये कोई फुल-फ्लेज्ड गोबर पुताई नहीं थी. उस मिश्रण में 40% क्ले सॉइल, थोड़ा जिप्सम, स्ट्रा और बहुत ही कम मात्रा में काउ डंग की स्लरी थी. वैसे भी ये कोई नई चीज नहीं, इससे पहले भी ऐसी कई सफल रिसर्च हो चुकी हैं. यह प्रयोग न तो पहली बार हुआ है और न ही बिना रिसर्च के हुआ है. इससे पहले  IIT दिल्ली, CEPT यूनिवर्सिटी अहमदाबाद और कुछ अंतरराष्ट्रीय स्टडीज़ में मिट्टी और गोबर आधारित प्लास्टर को थर्मल इन्सुलेटर, ब्रीदेबल मटेरियल और इको-फ्रेंडली सॉल्यूशन के रूप में स्वीकार किया गया है. 

पहले भी हुई हैं रिसर्च

प्रिंस‍िपल ने कहा कि राजस्थान, गुजरात और हिमाचल के कई ग्रीन आर्किटेक्चर प्रोजेक्ट्स में इस तरह के प्लास्टर से 3-5°C तक टेम्परेचर कम पाया गया है. यह कम कार्बन फुटप्रिंट और स्थानीय संसाधनों के प्रयोग का भी उदाहरण है. स्टडी के तहत एक रूम को टेस्ट स्पेस के तौर पर चुना गया. अगले ही द‍िन वहां छात्राओं ने पेंटिंग भी बनाई और तापमान मापने की प्रक्रिया भी शुरू हुई. इससे पहले भी हमने कैंपस में गोकुल नाम से एक स्पेस तैयार किया था. बच्चे इन चीज़ों को पसंद कर रहे हैं. उनसे भी बातचीत होती रही है. क्लासरूम को एथनिक फील देना गिवेन कंडीशन में मुमकिन था. हम इसका असर भी माप रहे हैं. 

Advertisement

स्टूडेंट्स और एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?

कुछ छात्रों ने सोशल मीडिया पर नाराज़गी जताई, वहीं कुछ ने इसे “थोड़ा हटकर और दिलचस्प” कहा. एक्सपर्ट्स का कहना है कि कॉलेज में रिसर्च और एक्सपेरिमेंट होते ही रहते हैं, जब तक वे छात्रों पर थोपी न जाएं या उनकी सेहत पर असर न डालें, इन्हें खुले मन से देखा जाना चाहिए. गौरतलब है कि बुधवार को इस पुताई के विरोध में छात्रसंघ ने प्रिंसिपल के कमरे की दीवारों पर गोबर लेप दिया था. इसके बाद इस खबर ने और भी तूल पकड़ लिया था. फिलहाल प्रिस‍िंपल ने इस बारे में कोई स्टेप नहीं लिया है. 

---- समाप्त ----
Live TV

TOPICS:
Advertisement
Advertisement