scorecardresearch
 

पहले से पढ़ा रहे बीएड अभ्यर्थी प्राइमरी टीचर बने रहेंगे या नहीं ? सुप्रीम कोर्ट ने किया साफ

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने स्पष्ट किया कि जिन बी.एड अभ्यर्थियों ने ऐसे पदों के लिए आवेदन किया था और उनका चयन उसके फैसले से पहले हो गया था, उन्हें उच्च न्यायालय में उनके मामले के निपटारे तक अंतरिम संरक्षण दिया जाएगा. पढ़ें- पूरी खबर...

Advertisement
X
Case related to B ED candidates before Supreme Court
Case related to B ED candidates before Supreme Court

बीएड अभ्यर्थियों से संबंधित मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने आज स्पष्ट कर दिया गया है कि उसका निर्णय जिसमें कहा गया था कि बीएड अभ्यर्थी प्राथमिक विद्यालयों में श‍िक्षक पद के लिए अयोग्य हैं, भविष्यसूचक प्रकृति का है तथा पूरे देश पर लागू होता है. न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने स्पष्ट किया कि जिन बी.एड अभ्यर्थियों ने ऐसे पदों के लिए आवेदन किया था और उनका चयन उसके फैसले से पहले हो गया था, उन्हें उच्च न्यायालय में उनके मामले के निपटारे तक अंतरिम संरक्षण दिया जाएगा. 

समझ‍िए कौन से अभ्यर्थी बने रहेंगे श‍िक्षक 

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार 11 अगस्त 2023 के अहम फैसले से पहले तमाम B.Ed डिग्री धारक प्राथमिक शिक्षक के तौर पर अपनी सेवा में बने रहेंगे. शर्त यह है कि उनकी नियुक्ति किसी भी अदालत में विचाराधीन न हो. साथ ही वे सभी बी.एड शिक्षक जिनकी नियुक्ति इस शर्त पर हुई थी कि वो कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगी, वे सेवा में नहीं रहेंगे. उनकी नियुक्ति को कोर्ट ने अवैध माना है.

कोर्ट ने साफ किया कि अगस्त 2023 का उसका आदेश पूरे देश भर पर लागू होता है इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने NCTE के 2018 के उस नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया था जिसके जरिये B.Ed केंडिडेट भी प्राइमरी स्कूल टीचर्स की नौकरी के लिए योग्य हो गए थे. कोर्ट ने माना था कि B.Ed डिग्री वाले प्राइमरी स्कूलों के बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन नहीं दे पाएंगे, क्योंकि वो इसके लिए विशेष तौर पर प्रश‍िक्षि‍त  नहीं होते है.

Advertisement

इससे पहले क्या हुआ

पिछले साल 2023 अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान उच्च न्यायालय के उस फैसले को बरकरार रखा था जिसमें कहा गया था कि बैचलर ऑफ एजुकेशन (बी.एड.) डिग्री धारक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षण पदों के लिए योग्य नहीं हैं. शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया था कि भारत में प्राथमिक शिक्षा का संवैधानिक अधिकार न केवल 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करता है, बल्कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का प्रावधान भी करता है. 

अदालत ने पाया कि बी.एड. डिग्री धारकों के पास प्राथमिक स्तर पर पढ़ाने के लिए आवश्यक शैक्षणिक प्रशिक्षण का अभाव है, जिससे युवा छात्रों के लिए शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता होने की संभावना है. न्यायालय ने यह भी कहा कि कानूनी प्रावधानों और एजुकेशनल स्टैंडर्ड्स के साथ विरोधाभासी नीतिगत निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं, जो मौलिक अधिकार के रूप में प्राइमरी एजुकेशन में क्वालिटी की अनिवार्यता को मजबूत करता है.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement