दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर भारी संख्या में किसान जुटे हैं. नये कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के धरने में महेंद्र सिंह टिकैत के गांव से बुजुर्ग भी आए हैं. ठंड की रात में फ्लाईओवर के नीचे बैठकर वो किसानों को टोपी बेचते हैं. ये कोई आम शख्सीयत नहीं, बल्कि भारतीय किसान यूनियन की पहली टोपी डिजाइन करने वाले वो शख्स हैं जो किसान आंदोलनों में अब तक छह बार जेल जा चुके हैं.
भारतीय किसान यूनियन से जुड़ा तकरीबन हर किसान जगवीर को जानता है, सिर्फ जानने तक नहीं बल्कि हर उम्र के लोग इनकी इज्जत करते हैं. 87 साल के बुजुर्ग जगवीर कौशिक के संघर्ष की दास्तां करीब 40 साल पुरानी है. वो खुद बताते हैं कि भारतीय किसान यूनियन की पहली टोपी मैंने ही बनाई थी. किसानों को संगठित तौर पर आंदोलन में एकजुट दिखाने का इससे नायाब रास्ता और भला क्या हो सकता था.
वो बताते हैं कि कैसे भारतीय किसान यूनियन की नींव डालने वाले महेन्द्र सिंह टिकैत से वो प्रभावित थे. वो खुद भी उन्हीं गांव के हैं. टिकैत ने जब संगठन की स्थापना के बाद अपने कुछ साथियों को भारतीय किसान यूनियन के लिए टोपी बनाने के लिए कहा तब कई लोगों ने टोपी बनाकर दिखाई जिनमें जगवीर कौशिक भी शामिल थे. उनकी बनाई हुई टोपी सबको पसंद आ गई. यहां तक कि भारतीय किसान यूनियन की नींव रखने वाले महेंद्र सिंह टिकैत स्वयं भी इनकी बनाई टोपी ही पहनते थे.
पहली बार 5 मिनट में बिक गईं 100 टोपियां
जगवीर कौशिक आज भी वो पल नहीं भूलते जब उन्होंने सिर्फ 100 टोपियां बनाई थीं, जो दो रुपए के भाव से 5 मिनट में बिक गईं. तब से 33 साल से उनकी टोपियां लगातार किसानों को भा रही हैं.
कैसी है टोपी
भाकियू की इस टोपी में सिर के ऊपर की तरफ सफेद रंग है जो कि शांति का संदेश देता है और चारों तरफ हरा रंग हरियाली का. जगवीर कहते हैं कि किसानों के लिए उनके खेतों की हरियाली और उनके जीवन की शांति सबसे जरूरी है.
संगठन के हैं सक्रिय सदस्य
कौशिक सिर्फ टोपी ही नहीं बेचते, बल्कि वो संगठन के जमीनी आंदोलनकारियों में से एक रहे हैं. वो इस संगठन के शुरुआती दिनों में जुड़े रहे. जगवीर कौशिक ने बताया कि वह मेरठ से लेकर लखनऊ तक के सभी किसान आंदोलनों के गवाह रहे हैं और सभी जगह किसान आंदोलनकारियों को टोपी मुहैया कराई है.
6 बार गए जेल
पिछले 33 सालों में किसान यूनियन से जुड़े लाखों किसानों ने इनकी बनाई टोपी पहनी. ये शायद ही ऐसा कोई मौका होता है जहां आंदोलनस्थल पर वो खुद न पहुंच पाए हों, लेकिन इनकी टोपियां जरूर पहुंची हैं. 87 साल की उम्र में भी जगवीर कौशिक का हौसला आज भी कायम है. उनका कहना है कि मैं किसान आंदोलनों में छह बार जेल की हवा भी खा चुका हूं.
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