गरीबी को झेलकर 12वीं तक की पढ़ाई की, पूरे जिले में टॉप किया, परिवार का नाम हुआ. बोंडा जनजाति की लड़की का यहां तक पहुंचना आसान नहीं था. इसके पीछे कड़ी मेहनत और पढ़ाई की लगन थी. लोग 12वीं टॉपर से पहचानने लगे थे लेकिन अब उसी लड़की को लोग मजदूर लड़की से पहचानते हैं. 12वीं का रिजल्ट आने का बाद जो खुशी हुई थी, अब दुख ही दुख है. क्योंकि इतने नंबर लाने के बाद भी मजदूरी ही करनी पढ़ रही है. जी हां, यह सच्ची कहानी है ओडिशा के कर्मा की.
जिला अधिकारियों ने मिलकर दी थी बधाई
दरअसल, कर्मा खैरापुट ब्लॉक के मुदुलीपाड़ा पंचायत के पडीगुड़ा गांव के मूल निवासी हैं. ओडिशा के मलकानगिरी की बोंडा जनजाति की ब्राइट स्टूडेंट कर्मा मुदुली कभी पूरे जिले में 12वीं में टॉपर रही थी. उसने 2022 में ओडिशा एचएसई +2 कॉमर्स स्ट्रीम में 82.66% अंक हासिल किए थे. कलेक्टर से लेकर राज्यपाल तक, सभी ने शानदार उपलब्धि के लिए बोंडा जनजाति की लड़की कर्मा की प्रशंसा की थी. कर्मा को आगे की पढ़ाई के लिए स्थानीय प्रशासन से सभी सहायता का वादा किया गया था.
12वीं के बाद क्या हुआ जो करनी पड़ी मजदूरी?
12वीं क्लास में जिला टॉपर बनने के बाद, अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिलना ज्यादा मुश्किल नहीं था. कर्मा ने हायर स्टडीज के लिए भुवनेश्वर में अपने स्नातक के लिए रमा देवी महिला विश्वविद्यालय में दाखिला लिया. एडमिशन लिया, पढ़ाई शुरू हुई, लेकिन इससे जारी रखने की समस्या पहाड़ लगने लगी. राजधानी में रहना आसान नहीं था. पढ़ाई, किताबें, खाने-पीने का खर्चा उठाना मुश्किल होता चला गया. जब कोई रास्ता नहीं दिखा तो कर्मा वापस अपने घर लौट आई. पढ़ाई अब बंद हो चुकी थी. इसलिए कर्मा ने मजदूरी करने का फैसला लिया. उसने काम करना शुरू कर दिया.
सोशल मीडिया पर हुई वायरल तो आगे आया प्रशासन
किसी सोशल मीडिया यूजर ने कर्मा की मजदूरी वाली कहानी शेयर की तो प्रशासन उसकी मदद करने आगे आया है. सोशल मीडिया में फॉर्म पर वायरल होने बाद जिला कल्याण अधिकारी (DWO), मलकानगिरी, प्रफुल्ल कुमार भुजबल उससे मिलने उसके घर आए. उन्होंने आजतक को बताया कि कर्मा को 13,000 रुपये का वार्षिक वजीफा (पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति) मिल रहा था, जिसमें छात्रावास के लिए 10,000 रुपये और स्कूल फीस के लिए 3,000 रुपये शामिल थे, और यह भी स्वीकार किया कि यह राशि उसके खर्चों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थी.
उन्होंने कहा कि उनके परिवार को बोंडा विकास एजेंसी, मुदुलीपाड़ा की OPELIP योजना के तहत आजीविका सहायता भी मिल रही है, जबकि उनके माता-पिता एमबीपीवाई योजना के तहत वृद्धावस्था पेंशन प्राप्त कर रहे हैं.
मंगलवार को कार्य स्थल का दौरा करने वाले मल्कानगिरी डीडब्ल्यूओ और खैरपुट डब्ल्यूईओ के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने अधिकारियों को बताया कि विश्वविद्यालय में मासिक खर्च लगभग 3,000 रुपये था. सूत्रों के मुताबिक उन्होंने अब कर्मा के भविष्य के अध्ययन और मुख्यमंत्री राहत कोष (सीएमआरएफ) से सहायता के लिए हर संभव मदद का आश्वासन दिया है.