बंगाल और कविता दोनों जिस एक नाम के बगैर अधूरे लगते हैं, वो हैं कवि रवींद्र नाथ टैगोर... उनकी कविताओं के साथ साथ उनके जीवन ने भी लाखों करोड़ों लोगों को एक नई दिशा दी है. नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कवि, उपन्यासकार, नाटककार, चित्रकार, और दार्शनिक रवींद्रनाथ टैगोर की आज 160वीं जयंती है. आइए उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें जानें.
रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म का जन्म 7 मई सन 1861 को कोलकाता में हुआ था. वे ऐसे मानवतावादी विचारक थे, जिन्होंने साहित्य, संगीत, कला और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में अपनी अनूठी प्रतिभा का परिचय दिया. रवींद्रनाथ अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे. बचपन में उन्हें प्यार से 'रबी' बुलाया जाता था. आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था.
रवींद्रनाथ टैगोर एशिया के प्रथम व्यक्ति थे, जिन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. रवींद्रनाथ टैगोर दुनिया के संभवत: एकमात्र ऐसे कवि हैं, जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया. टैगोर को प्रकृति का सानिध्य काफी पसंद था. उनका मानना था कि छात्रों को प्रकृति के सानिध्य में शिक्षा हासिल करनी चाहिए. अपने इसी सोच को ध्यान में रख कर उन्होंने शांति निकेतन की स्थापना की थी.
बचपन से कुशाग्र बुद्धि के रवींद्रनाथ ने देश और विदेशी साहित्य, दर्शन, संस्कृति आदि को अपने अंदर समाहित कर लिया था. उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में अपूर्व योगदान दिया और उनकी रचना गीतांजलि के लिए उन्हें साहित्य के नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
जीवन के 51 वर्षों तक उनकी सारी उपलब्धियां कलकत्ता और उसके आसपास के क्षेत्र तक ही सीमित रही. 51 वर्ष की उम्र में वे अपने बेटे के साथ इंग्लैंड जा रहे थे. समुद्री मार्ग से भारत से इंग्लैंड जाते समय उन्होंने अपने कविता संग्रह गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद करना प्रारंभ किया.
रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है. हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत से प्रभावित उनके गीत मानवीय भावनाओं के विभिन्न रंग पेश करते हैं. गुरुदेव बाद के दिनों में चित्र भी बनाने लगे थे. रवींद्रनाथ ने अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, चीन सहित दर्जनों देशों की यात्राएं की थी. 7 अगस्त 1941 को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का निधन हो गया.
रवींद्रनाथ टैगोर को उनके कविता-संग्रह गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था. नोबेल पुरस्कार जीतने वाले वो पहले भारतीय थे. लेकिन क्या आपको पता है कि कभी कविगुरु ने अपना एक सम्मान लौटा भी दिया था जो कि अंग्रेजी सत्ता के दौर में विशिष्ट माना जाता था. वो जार्ज पंचम द्वारा दी गई नाइटहुड की उपाधि थी.
ऐसा बतााया जाता है कि साल 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में टैगोर ने नाइट हुड की उपाधि त्याग दी थी, ये उपाधि उन्हें साल 1915 में किंग जॉर्ज पंचम ने दी थी. इसके लिए उन्होंने भारत के तत्कालीन ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड को संबोधित एक पत्र लिखा था इस पत्र में लखिा था कि "वह समय आ गया है जब सम्मान के बिल्ले हमारे अपमानजनक संदर्भ में शर्मनाक है और मैं अपने देश का एक नागरिक होने के नाते सभी विशेष उपाधियों को त्यागता हूं.