ईरान और इजरायल के बीच 12 दिन से चला आ रहा युद्ध अब खत्म होने की ओर है. अब ईरान की ओर से भी सीजफायर का ऐलान कर दिया गया है. ईरान-इजरायल में अमेरिका की एंट्री और ईरान की ओर से यूएस बेस पर अटैक किए जाने के बाद माना जा रहा था कि ये युद्ध अभी लंबा चल सकता है. साथ ही इस जंग में दूसरे देशों की भी एंट्री हो सकती है. ऐसे में सवाल है कि अगर ये युद्ध लंबा चलता तो क्या होता और इसका भारत पर क्या असर पड़ता. तो जानते हैं अगर ये जंग लंबी चलती तो क्या असर होता...
जंग जारी रहती तो क्या होता?
अगर ये जंग लंबे समय तक चलती तो भारत-ईरान के कारोबार पर काफी असर होता. ईरान में भारत की ओर से चावल, चाय, केला, चना निर्यात किया जाता है और ऐसे में इसके व्यापार पर काफी असर हो सकता था. आपको बता दें कि ईरान को भारत से बासमती का कुल 15 फीसदी निर्यात होता है और असम से करीब 25 हजार टन चाय का निर्यात होता है. इसपर सीधा असर देखने को मिल सकता था. लगातार चल रहे युद्ध से इजरायल से भी कारोबार पर असर देखने को मिलता.
वहीं, सऊदी, यूएई और कतर से एलपीजी सप्लाई देखने को मिल सकता था. भारत के पास 16 दिन की सप्लाई भर भंडारण है और युद्ध के वक्त में एलएनजी की सप्लाई बाधित होने से बड़ा असर देखने को मिलता. अगर युद्ध चलता रहता तो खाद, बिजली, सीएनसी की कीमतों में बढ़ावा हो सकता था और एलपीजी सिलेंडर की कीमतों में भी बदलाव देखने को मिल सकता था. मिडिल ईस्ट से 66 फीसदी एलपीजी गैस का आयात होता है. भारत मिडिल ईस्ट देशों में 8.6 अरब डॉलर का सामान निर्यात करता है जबकि 33.1 अरब डॉलर का आयात करता है, जिसपर सीधा असर देखने को मिल सकता था.
होर्मुज स्ट्रेट बंद होता तो ये होता असर
ईरान दुनिया का 9वां सबसे बड़ा तेल उत्पादक है, जो रोज 33 लाख बैरल कच्चे तेल का उत्पादन करता है. कच्चे तेल के ग्लोबल कारोबार का 24 प्रतिशत और नेचुरल गैस के कारोबार का 20 प्रतिशत से अधिक इसी होर्मुज स्ट्रेट के रास्ते से होता है. इसमें से 84 प्रतिशत क्रूड और 83 प्रतिशत गैस एशियन देशों में जाता है, जिसमें चीन भारत जापान दक्षिण कोरिया जैसे देश 69 फीसदी तेल ले लेते हैं.
ईरान के अलावा इराक, सऊदी, यूएई, कुवैत, कतर, ओमान इन देशों से होने वाला कारोबार भी इसी रास्ते से होता है. बता दें कि भारत अपनी जरूरत का 85 प्रतिशत कच्चा तेल और 54 प्रतिशत नेचुरल गैस का आयात करता है. ऐसे में ये होर्मुज स्ट्रेट बंद हो जाता तो एशिया ही नहीं पूरी दुनिया की इकॉनोमी पर उसका असर पड़ता.
हालांकि, भारत के लिए थोड़ी राहत की बात ये है कि भारत को फिलहाल कच्चे तेल सप्लाई के अन्य स्रोत हैं, जिसमें एक तो खाड़ी देशों का स्रोत है. 4 साल पहले जो भारत रूस से 1.96 फीसदी और इराक से 25.66 फीसदी तेल खरीद रहा था वो 2022-23 में अपनी जरूरत के कुल तेल में से रूस से 21.49 फीसदी, इराक से 21.38 फीसदी और सऊदी से 16.68 फीसदी तेल लेने लगा. 2023-24 में भारत ने 35.87 फीसदी तेल का आयात रूस से किया और 24-25 में 39 फीसदी से अधिक तेल का आयात रूस से हो रहा था.